भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के दर्शन कर रही दुनिया, बौद्ध देशों से गहरे हो रहे भारत के सांस्कृतिक संबंध
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष, पीपरहवा रेलिक्स, अब भूटान में प्रदर्शित किए जा रहे हैं, जिससे वहां की जनता अभिभूत है। ये अवशेष भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और थाईलैंड, वियतनाम और रूस में भी प्रदर्शित किए जा चुके हैं। इनका उत्तरप्रदेश और बिहार से गहरा संबंध है और ये भारत की बौद्ध विरासत को दर्शाते हैं। भूटान में इन्हें राजकीय सम्मान दिया जा रहा है।

पीपरहवा रेलिक्स भारत की विदेश नीति का अभिन्न अंग बन चुकी हैं (फोटो: एएनआई)
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पीपरहवा रेलिक्स के नाम से प्रसिद्ध भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों का अब भूटान की जनता दर्शन कर रही है। जो सूचनाएं वहां से आ रही है भूटान की जनता वैसी ही अभिभूत है जैसे पहले थाइलैंड, विएतनाम की जनता थी। पीपरहवा रेलिक्स भारत की विदेश नीति का अभिन्न अंग बन चुकी हैं।
थाईलैंड, वियतनाम, रूस और अब भूटान जैसे देशों में इन अवशेषों की प्रदर्शनी ने न केवल बौद्ध धर्म के शाश्वत संदेश को फैलाया है, बल्कि इन राष्ट्रों के नागरिकों को भारत के साथ गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों की याद दिलाई है। ऐसे समय जब इन सभी देशों में चीन की आक्रामक रणनीति से भय का माहौल है तब भारत ने सॉफ्ट पावर की कूटनीति से इन देशों की जनता के साथ संबंधों का नया पुल स्थापित किया है।
रेलिक्स मुख्य रूप से पीपरहवा अवशेष हैं
भगवान बुद्ध की पवित्र रेलिक्स की प्रदर्शनी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, राष्ट्रीय संग्रहालय और इंटरनेशनल बौद्ध कन्फेडरेशन (आईबीसी) की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहल है। ये रेलिक्स मुख्य रूप से पीपरहवा अवशेष हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा कपिलवस्तु के प्राचीन स्थल से खुदाई में प्राप्त हुए थे। 1898 में डब्ल्यू.सी. पेप्पे द्वारा पहली बार खोजे गए और 1971-77 में के.एम. श्रीवास्तव (एएसआई) द्वारा पुन: खुदाई किए गए इन अवशेषों को बौद्ध विरासत के सबसे पूजनीय कलाकृतियों में गिना जाता है।
ये राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संरक्षित हैं और समय-समय पर एएसआई द्वारा प्रमाणित किए जाते हैं। पीपरहवा रेलिक्स का उत्तरप्रदेश और बिहार से गहरा ऐतिहासिक संबंध है। ये अवशेष उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित पीपरहवा गांव से प्राप्त हुए, जो कपिलवस्तु का प्राचीन स्थल माना जाता है। भगवान बुद्ध ने यहां अपना बचपन बिताया था। यह क्षेत्र बिहार की सीमा से सटा हुआ है और बौद्ध सर्किट का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ये अवशेष भारत की बौद्ध विरासत को जीवंत रखते हैं
लुंबिनी (नेपाल) से सटे होने के कारण बौद्ध इतिहास की जड़ें यहां गहरी हैं। इन राज्यों की मिट्टी से निकले ये अवशेष भारत की बौद्ध विरासत को जीवंत रखते हैं और स्थानीय स्तर पर पर्यटन व सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देते हैं। थाईलैंड में 2024 (फरवरी-मार्च) में पीपरहवा रेलिक्स के साथ अरहंत सारिपुत्त और अरहंत महा मोग्गलाना के अवशेष चार प्रमुख स्थलों पर प्रदर्शित किए गए।
यह आयोजन भारत-थाईलैंड कूटनीतिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हुआ था। वहां 40 लाख श्रद्धालुओं ने इनका दर्शन किया। वियतनाम में 2025 (मई-जून) में सारनाथ (नागार्जुनकोंडा) रेलिक्स नौ पगोडाओं में यूएन वेसाक उत्सव के दौरान प्रदर्शित हुए, जहां 1.78 करोड़ से अधिक भक्तों ने दर्शन किए। रूस (कल्मीकिया) में अक्टूबर 2025 में पहली बार बुद्ध रेलिक्स की प्रदर्शनी मंगोलियन कंजूर के साथ हुई, जिसने भारत-रूस सभ्यतागत संबंधों को नई ऊंचाई दी।
अब भूटान में 8-18 नवंबर 2025 तक भगवान बुद्ध की हड्डियों के दो टुकड़ों की प्रदर्शनी होगी, जो इन पवित्र मिशनों की श्रृंखला को आगे बढ़ाएगी। भूटान सरकार की तरफ से इनको किस तरह का महत्व दिया जा रहा है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इन्हें राजकीय मेहमान का दर्जा दिया गया है। इनके समक्ष भूटान के पीएम और राजा संयुक्त तौर पर पूना-दो पनबिजली परियोजना का उद्घाटन करेंगे। ये प्रयास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की “विकास भी, विरासत भी'' विजन को साकार करते हैं।

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