'लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए रखना दुष्कर्म नहीं', कलकत्ता HC का बड़ा फैसला
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए रखना बलात्कार नहीं है, बल्कि सहमतिपूर्ण रिश्ते का संकेत है। न्यायालय ने बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोप में एक व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष बलात्कार का आरोप साबित करने में विफल रहा, क्योंकि शिकायतकर्ता बालिग थी और उसने लंबे समय तक संबंध बनाए रखने की बात स्वीकार की थी।

कलकत्ता HC का बड़ा फैसला (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाना या बनाए रखना दुष्कर्म नहीं, बल्कि सहमतिपूर्ण रिश्ते का संकेत है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में दुष्कर्म (धारा 376 आइपीसी) और धोखाधड़ी (धारा 415 आइपीसी) के लिए एक शख्स को दोषी ठहराने वाले निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया है।
अपील को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष दुष्कर्म का आरोप स्थापित करने में विफल रहा और निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच संबंध जबरदस्ती नहीं, बल्कि सहमतिपूर्ण थे।
मेडिकल सबूतों की रही कमी
न्यायमूर्ति प्रसेनजीत विश्वास ने पाया कि घटना के समय शिकायतकर्ता 20 वर्ष से अधिक आयु की एक बालिग युवती थी। इसके अलावा जिरह के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए रखने की बात स्वीकार करना, जबरन यौन संबंध के सिद्धांत को नकारता है। कोर्ट ने मामले में मेडिकल सबूतों की पूर्ण कमी और प्रमुख गवाहों से पूछताछ करने में अभियोजन पक्ष की विफलता को गंभीर खामियां माना।
अपीलकर्ता ने यह अपील इस्लामपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा सात जुलाई 2000 को पारित एक फैसले के खिलाफ दायर की थी। निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 415 के तहत दोषी पाया था और दो साल के कठोर कारावास और 7,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनायी थी।
अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए दीपांजन चटर्जी ने तर्क दिया कि रिकार्ड पर मौजूद सामग्री सजा को सही ठहराने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त थी। उन्होंने गवाहों के बयानों में पर्याप्त विसंगतियों और अंतर्विरोधों की ओर इशारा किया। कोर्ट ने पीडि़ता की उम्र को काफी महत्व दिया। उसके स्थानांतरण प्रमाणपत्र (प्रपत्र-3) के आधार पर, उसकी जन्म तिथि दो जनवरी 1974 थी।
किस आधार पर कोर्ट ने सुनाया फैसला?
कोर्ट ने गणना की कि 13 मार्च 1994 को हुई घटना के समय पीडि़ता 20 वर्ष से अधिक आयु की थी। न्यायमूर्ति विश्वास ने टिप्पणी की कि इस प्रकार वह एक बालिग और एक परिपक्व युवती थी, जो अपने स्वयं के कृत्यों और निर्णयों की प्रकृति और परिणामों को समझने में सक्षम थी।

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