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    IIT की मदद से थानों में होगी सीसीटीवी निगरानी, सुप्रीम कोर्ट कर रहा विचार

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 05:08 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस थानों में सीसीटीवी फुटेज की रियल टाइम निगरानी के लिए आईआईटी जैसे तकनीकी संस्थान की मदद लेने पर विचार करने की बात कही है। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने सीसीटीवी कैमरों की कमी को लेकर स्वत संज्ञान लेकर दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

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    थानों में सीसीटीवी कैमरों पर सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह पुलिस थानों के सीसीटीवी फुटेज की किसी मानवीय हस्तक्षेप के बिना रियल टाइम निगरानी के लिए एक तंत्र विकसित करने हेतु आईआईटी जैसे प्रमुख तकनीकी संस्थान की मदद लेने पर विचार कर रहा है।

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    जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी को लेकर स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज मामले की सुनवाई कर रही थी।

    'केंद्र ने नहीं किया पालन'

    शीर्ष अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि कुछ राज्यों ने सीसीटीवी लगाने के न्यायिक आदेशों का पालन किया है, जबकि कई अन्य ने नहीं किया है। उन्होंने कहा, केंद्र ने इसका पालन नहीं किया है- न एनआईए ने, न ईडी ने और न ही सीबीआई ने।

    जस्टिस मेहता ने क्या कहा?

    इस पर जस्टिस मेहता ने जोर देकर कहा कि यह केवल अनुपालन का नहीं, बल्कि रियल टाइम निगरानी का मुद्दा है। आज अनुपालन हलफनामा हो सकता है। कल अधिकारी कैमरे बंद कर सकते हैं। हम बिना मानवीय हस्तक्षेप वाले नियंत्रण कक्ष के बारे में सोच रहे थे। अगर कोई कैमरा बंद हो जाए, तो उसकी सूचना मिलनी चाहिए। हम आईआईटी को शामिल करके एक ऐसी व्यवस्था बनाने पर भी विचार कर सकते हैं, जिससे सीसीटीवी फुटेज की निगरानी मानवीय हस्तक्षेप के बिना की जा सके। पीठ ने निर्देश दिया कि आदेश सुनाने के लिए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने खुद लिया था संज्ञान

    सुप्रीम कोर्ट ने एक मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया था कि 2025 के पहले आठ महीनों में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हो गई थी।

    रिपोर्ट में बताया गया था कि पुलिस थानों के कई रिमांड रूम सीसीटीवी कैमरों की पहुंच से बाहर हैं और पुलिस अक्सर तकनीकी खराबी, भंडारण की कमी, चल रही जांच या कानूनी पाबंदियों का हवाला देकर फुटेज रोक लेती है। कुछ मामलों में पुलिस ने फुटेज साझा करने से ही इन्कार कर दिया या उसे जारी करने में देरी कर दी।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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