Chhattisgarh Encounter: एक इंजीनियर कैसे बना नक्सल का टॉप लीडर? पांच दशकों से पुलिस को थी तलाश; पढ़ें कौन था बसव राजू
नक्सलियों के खिलाफ इस बड़ी सफलता के लिए अमित शाह ने सुरक्षा बलों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि तीन दशक में पहली बार सुरक्षा बलों को महासचिव स्तर के टाप नक्सल कमांडर को मारने में सफलता मिली है। शाह ने बसव राजू को नक्सल आंदोलन की रीढ़ की हड्डी बताया। मतलब यह कि उसकी मौत के साथ ही नक्सलवाद पुराने स्वरूप में कभी खड़ा नहीं हो पाएगा।

नीलू रंजन, नई दिल्ली। बसव राजू की सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मौत पांच दशक से आंतरिक सुरक्षा के लिए नासूर बने हुए नक्सलवाद के ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है। जाहिर है केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने की दिशा में मील का पत्थर करार दिया है।
बसव राजू न सिर्फ पार्टी महासचिव के रूप में सीपीआइ (माओवाद) का सर्वोच्च नेता था, साथ ही सेंट्रल मिलिट्री कमेटी के प्रमुख के रूप में लड़ाकू दस्ते का भी प्रमुख था। उसकी मौत से नेतृत्वविहीन नक्सलियों के संगठन का बिखरना निश्चित माना जा रहा है।
अमित शाह ने दी सुरक्षाबलों को बधाई
नक्सलियों के खिलाफ इस बड़ी सफलता के लिए अमित शाह ने सुरक्षा बलों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि तीन दशक में पहली बार सुरक्षा बलों को महासचिव स्तर के टाप नक्सल कमांडर को मारने में सफलता मिली है। शाह ने बसव राजू को नक्सल आंदोलन की रीढ़ की हड्डी बताया। मतलब यह कि उसकी मौत के साथ ही नक्सलवाद पुराने स्वरूप में कभी खड़ा नहीं हो पाएगा।
शाह के अनुसार ऑपरेशन ब्लैक फारेस्ट के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा कुर्रेगु्ट्टा पहाड़ी पर स्थित हेडक्वार्टर को ध्वस्त करने के बाद से ही नक्सलियों के हौसले पस्त हैं और उनका कैडर नेतृत्वहीन हो गया है। इसका परिणाम है कि 11 मई को आपरेशन ब्लैक फारेस्ट के खत्म होने के बाद 10 दिनों में ही 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया जा चुका है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए मोदी सरकार कटिबद्ध: शाह
वैसे इस साल आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की संख्या 800 पार चुकी है, जबकि पिछले पूरे साल में 900 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। शाह ने साफ किया कि 31 मार्च 2026 के पहले नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए मोदी सरकार कटिबद्ध है।
तेलंगाना के वारंगल स्थित रिजीनल इंजीनिरिंग कॉलेज, जो अब एनआइटी बन गया है, से इंजीनियरिंग में स्नातक करने वाला बसव राजू उन चंद नक्सलियों में शामिल रहा है, जिसने 1987 में एलटीटीई से जंगल में गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग ली थी।
उसके बाद उसके नेतृत्व में भी तत्कालीन नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) ने आइइडी के सहारे बड़े टारगेट पर हमले को अंजाम देना शुरू किया था। 2003 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर 11 आइईडी को विस्फोट कर हमला किया गया था, जिसमें वे बाल-बाल गए थे।
2004 में दो बड़े नक्सली ग्रुप पीडब्ल्यूजी और मार्कसिस्ट कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी) के विलय के बाद सीपीआइ (माओवादी) का गठन किया गया, जिसमें आइईडी बनाने और गुरिल्ला युद्ध में महारत को देखते हुए बसव राव को सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का प्रमुख बनाया गया।
अब नक्सलियों का एकजुट हो पाना मुश्किल लग रहा
खराब स्वास्थ्य के कारण जब 2018 में गणपति ने सीपीआइ (माओवादी) के महासचिव पद से इस्तीफा दिया तो, बसव राजू को उनकी जगह मिली। इस तरह से बसव राजू माओवादियों के राजनीतिक और मिलिट्री दोनों का प्रमुख बन गया। बसव राजू की मौत और सुरक्षा बलों के बढ़ते दबदबे के कारण अब नक्सलियों का एकजुट हो पाना मुश्किल लग रहा है।
सरकार से शांति वार्ता के लिए पांच पत्र लिख चुके नक्सलियों के प्रवक्ता अभय ने बस्तर में एक स्थानीय पोर्टल को दिये साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि चारो तरफ सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण उनके बड़े नेताओं का एक साथ मिलना संभव नहीं हो पा रहा है। यानी अलग-थलग पड़े बड़े नक्सली नेता सुरक्षा बलों के आपरेशन का जवाब देने के लिए कोई योजना बनाने की स्थिति में भी नहीं है।
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