'माओवादी हिंसा पर नियंत्रण, सरकार की बड़ी सफलता', छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा से खास बातचीत
दो साल पहले माओवादी हिंसा से मुक्ति की कल्पना मुश्किल थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने बहुआयामी रणनीति अपनाई, जिससे पुनर्वास और रोजगार के अवसर बढ़े। सुरक्षा बलों ने माओवादी नेतृत्व को खत्म किया। गृह मंत्री अमित शाह और विजय शर्मा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विजय शर्मा के अनुसार, माओवादी हिंसा 2026 से पहले खत्म हो जाएगी, लेकिन अर्बन नक्सलियों से चुनौती है।
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माओवादी हिंसा पर नियंत्रण, सरकार की बड़ी सफलता (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सच तो यही है कि दो वर्ष पहले माओवादी हिंसा से मुक्त देश की कल्पना भी नहीं की जा रही थी। यथास्थिति बनी हुई थी। छत्तीसगढ़ ही मुख्य गढ़ था। लेकिन राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद स्थिति बदली। जनवरी 2024 में माओवादी हिंसा प्रभावित राज्यों के शीर्ष अधिकारियों की बैठक के बाद बहुआयामी रणनीति पर काम शुरू हुआ।
पुनर्वास से लेकर रोजगार तक के अवसर सृजित किए गए। सुरक्षा बलों ने माओवादी हिंसकों के शीर्ष नेतृत्व को या तो समाप्त कर दिया है या वह मुख्यधारा में लौट चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ में उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा ने अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका मानना है कि माओवादी हिसंक तो मार्च 2026 के तय लक्ष्य से पहले खत्म हो जाएंगे परंतु आंतरिक सुरक्षा को आयातित विचाराधारा के पोषक अर्बन नक्सलियों से बड़ी चुनौती है। संविधान के दायरे में रहकर विचारों के संघर्ष में उन पर भी जीत की प्राप्ति के लिए संकल्पबद्ध हैं। प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा से बातचीत के प्रमुख अंश:-
देश माओवादी हिंसा से मुक्त होने की प्रक्रिया में है। पिछले दो वर्षों में आपका क्या अनुभव रहा?
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद समझ आया कि डबल इंजन की सरकार का क्या अर्थ है। माओवादी हिंसा नियंत्रित करने की दिशा में बड़ी सफलता मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2023 में विधानसभा चुनाव के दौरान माओवादी हिंसा समाप्त करने का आह्वान किया था। जनवरी 2024 में गृह मंत्री शाह की अध्यक्षता में रणनीति बनी। उसके बाद सभी ने बहुत ही तेजी के साथ बहुआयामी (मल्टीडायमेंशनल) कार्य करके सफलता प्राप्त की है।
क्या जनवरी 2024 की माओवादी हिंसा पर रणनीतिक बैठक में ऐसी सफलता की उम्मीद थी?
एक बड़ा लक्ष्य सामने था और पूरी टीम ने वरिष्ठों के दिशा-निर्देश में काम करना शुरू किया, परंतु इतनी सफलता की उम्मीद नहीं थी। कालांतर में यह बात समझ में आई कि माओवादी हिंसा मुक्त देश का लक्ष्य पाना असंभव भी नहीं है। अभी भाजपा सरकार के बने दो वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं और माओवादी हिंसक समाप्त होने जा रहे हैं।
1980 के दशक से माओवादी हिंसा प्रभावित इन क्षेत्रों में जनजीवन सामान्य करने के लिए क्या विशेष योजना है?
किसी बीमार व्यक्ति को भी इलाज के बाद पूर्ण स्वस्थ होने में समय लगता है। माओवादियों ने विकास की गति रोककर शिक्षा-चिकित्सा-विकास सहित सभी क्षेत्रों में चुनौतियां पैदा की हैं। विशेष प्रयासों के बाद भी समय लगना तय है। यह रातोंरात नहीं हो सकता परंतु गांव-गांव में युवाओं को सक्षम बनाने और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं। नियद नेल्लानार योजना के तहत सुरक्षा कैंपों से 10 किलोमीटर की परिधि में समग्र विकास के काम किए जा रहे हैं। समाजसेवियों से भी बस्तर में काम करने के लिए आह्वान किया जा रहा है।
बड़े माओवादियों के समर्पण के लिए कौन-कौन सी शर्तें मानी हैं?
माओवादियों के समक्ष एकमात्र शर्त हथियार छोड़ने की है। माओवादियों की तरफ से मूलवासी बचाओ मंच पर लगे प्रतिबंध को समाप्त करने की सूचना आई थी। अगर वह शस्त्र छोड़कर मुख्यधारा में लौटते हैं तो प्रतिबंध को भी हटाने में कोई दिक्कत नहीं है। मुख्यधारा में लौटकर वह जो करना चाहे, करें। खेती, रोजगार या राजनीति करें, कोई दिक्कत नहीं है।
सशस्त्र माओवादियों के विरुद्ध लड़ाई तो एक तरह से जीती जा चुकी है। अर्बन नक्सलियों से कैसे निपटेंगे?
अभी आधी लड़ाई ही जीती गई है। माओवाद के विषय को समझना होगा। अभी सिर्फ सशस्त्र माओवादी समाप्त होंगे। जवानों की भुजाओं की ताकत पर समय रहते सब ठीक करेंगे। अभी एकमात्र लक्ष्य हथियार छुड़वाकर उन्हें मुख्यधारा में लाना है। वह राजनीतिक क्षेत्र में चाहें तो भाजपा, कांग्रेस या वामपंथी पार्टी में शामिल हों, परंतु हिंसा के लिए प्रेरित करने वालों के साथ भी सख्ती से निपटा जाएगा। देश का संविधान वैचारिक स्वतंत्रता की छूट देता है। चीन में ऐसा नहीं हो सकता।
भूपेश बघेल ने सफलता के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की सराहना की है, इसे क्या मानते हैं?
भूपेश बघेल ने शुरू में सरकार के अभियान की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने गलत दावे के आरोप भी लगाए। यद्यपि माओवादियों ने खुद पर्चा जारी कर 28 लोगों के मारे जाने की बात स्वीकार ली। कई मौकों पर बघेल ने सरकार के प्रयास और जवानों के शौर्य को नीचा दिखाने की कोशिश की। जनता समझ रही है। अंतत्वोगत्वा जब कुछ नहीं बचा तो बघेल मजबूरन सरकार की प्रशंसा करने को बाध्य हैं।
अमित शाह का लगातार बस्तर दौरा क्या संदेश दे रहा है?
जवानों को कैसे प्रेरित किया गया है?शाह ने एक वर्ष पहले बस्तर पहुंचकर कहा था- 'मैं हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि आप हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौट आएं।' इन बातों में राजनीतिक संकल्प और इच्छाशक्ति सन्निहित है। उन्होंने देश के किसी क्षेत्र में इतना प्रवास नहीं किया जितना छत्तीसगढ़ में किया। वह देश की आंतरिक सुरक्षा तथा एकता एवं अखंडता को चुनौती देने वालों को पूर्णत: समाप्त करना चाहते हैं।
माओवादी तेलंगाना और महाराष्ट्र में क्यों आत्मसमर्पण करते हैं?
आजकल आत्मसर्पण के लिए पुनर्वास शब्द का प्रयोग क्यों किया जा रहा है।पुनर्वास हृदय का शब्द है। आत्मसमर्पण में बाहरी दबाव जैसी भी बात है। माओवादियों के शीर्ष कमांडर तेलंगाना और दूसरे राज्यों के हैं, इसलिए वहां आत्मसमर्पण करना पसंद करते हैं। नीचे का कैडर ही छत्तीसगढ़ का है। दुनिया में कहीं भी एक साथ 210 माओवादियों का 153 हथियारों के साथ समर्पण नहीं हुआ। वह बहुत बड़ी घटना थी।
क्या हिसंक माओवादियों का अंत होने का भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा?
अगर जनता के मनोभाव के अनुरूप जवानों की भुजाओं की ताकत से इस सफलता को जनता को बताना राजनीति है तो जिन्हें जो समझना है, समझता रहे। सरकार ने समग्रता से प्रयास किया है। यह किसी एक विषय पर काम करने का परिणाम नहीं है। पुनर्वास नीति, खेल, संस्कृति, रोजगार के अवसरों का सृजन, आर्थिक और सामाजिक प्रयास का परिणाम है। बस्तर की जनता माओवादियों से मुक्ति चाह रही है।

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