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    ट्रंप टैरिफ विवाद के बीच चीन ने मान ली भारत की ये तीन मांग, पाकिस्तान भी परेशान; लेकिन यहां फंस रहा पेच

    Updated: Tue, 19 Aug 2025 08:30 PM (IST)

    चीन ने भारत की तीन प्रमुख मांगों पर सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया है। ये तीनों मांगे आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। इसमें भारत को चीन से उर्वरक आपूर्ति में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के साथ ही रेअर अर्थ मैग्नेट व इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए जरूरी टनेल बोरिंग मशीन के आयात को शुरू करना शामिल है।

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    ट्रंप टैरिफ विवाद के बीच चीन ने मान ली भारत की ये तीन मांग

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चीन ने भारत की तीन प्रमुख मांगों पर सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया है। ये तीनों मांगे आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। इसमें भारत को चीन से उर्वरक आपूर्ति में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के साथ ही रेअर अर्थ मैग्नेट व इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए जरूरी टनेल बोरिंग मशीन के आयात को शुरू करना शामिल है।

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    चीन के विदेश मंत्री वांग यी की तरफ से यह आश्वासन सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर को दिया गया। दोनों विदेश मंत्रियों की अगुवाई में भारत व चीन की बैठक नई दिल्ली में हुई थी। वांग यी मंगलवार को एनएसए अजीत डोभाल के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में हिस्सा लेंगे।अमेरिका की ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल, 2025 में जब चीन व भारत समेत दुनिया के कई देशों के आयात पर रोक लगाने का ऐलान किया था तब चीन ने भी अपने निर्यात को लेकर कठोर नीति अपनानी शुरू कर दी थी।

    चीन ने दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर लगाई थी पाबंदी

    चीन ने सबसे पहले रेअर अर्थ मैग्नेट व कुछ अन्य दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर पाबंदी लगाई और उसके बाद बड़ी मशीनरियों के निर्यात को भी सीमित कर दिया। इस बीच उर्वरक निर्यात को लेकर भी चीन ने अपने निर्यातकों को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया जिसका सबसे ज्यादा असर भारत पर हुआ है। भारत की आटोमोबाइल कंपनियां रेअर अर्थ मैग्नेट की आपूर्ति पर तकरीबन पूरी तरह से चीन पर निर्भर हैं।

    भारी मशीनरी के चीन पर निर्भर है भारत

    इसी तरह से भारत में काफी तेजी से सुरंग खुदाई आदि का काम चल रहा है जो सड़क, हवाई अड्डे, ओवरब्रिज आदि से जुड़ी परियोजनाओं का हिस्सा है। इनके लिए भारी मशीनरी के लिए हम पूुरी तरह से चीन पर निर्भर हैं। इनकी आपूर्ति बाधित होने से भारत की ढांचागत परियोजनाओं पर भी असर पड़ने की आशंका है। इन सब वजहों से भारत सरकार लगातार चीन से आग्रह कर रही थी कि वह इन उत्पादों की आपूर्ति को बाधित नहीं करे।

    चीन के रुख में हो रहा है बदलाव

    सूत्रों ने बताया कि विदेश मंत्रालय पहले भी कई बार उक्त मुद्दे को चीन के समक्ष उठा चुका है। सोमवार की बैठक में भी उठाया गया। इस पर चीन की तरफ से भारतीय पक्ष को बताया गया कि हम उक्त  हैं। भारतीय तीनों कठिनाइयों को दूर करने की कोशिश कर रहे अधिकारी इसे चीन के रूख में बदलाव के तौर पर देख रहे हैं।

    लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बाद तल्ख हुए रिश्ते

    बताते चलें कि अप्रैल-मई, 2020 में भारत के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन के सैनिकों की घुसपैठ के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी तल्ख हो गये थे। अक्टूबर, 2024 में पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच कजान (रूस) में हुई मुलाकात के बाद रिश्तों में सुधार हो रहा है। उसके बाद चीन ने भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए मानसवोर जाने का रास्ता खोला है। भारत ने चीन के नागरिकों को वीजा देना शुरू कर दिया है। दोनों विदेश मंत्रियों की तीन बार मुलाकात हो चुकी है।

    पीएम मोदी इस महीने के अंत में चीन जाने की तैयारी में हैं। कई जानकार मानते हैं कि जिस तरह से ट्रंप प्रशासन ने शुल्क के मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है, उसके बाद भारत व चीन के बीच संपर्क बढ़ गया है।

    ताइवान पर नहीं बदली नीति

    भारत ने स्पष्ट किया है कि ताइवान को लेकर उसकी नीति नहीं बदली है। यह स्पष्टीकरण तब आया है जब सोमवार को वांग यी व जयशंकर की मुलाकात के बाद चीन की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि भारत ने कहा है कि ताइवान चीन का हिस्सा है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि, “ताइवान को लेकर हमारी नीति नहीं बदली है। हम बताना चाहते हैं कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत भी ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीक व सांस्कृतिक संबंध रखता है। भारत इसे आगे भी जारी रखना चाहता है।''

    आधिकारिक तौर पर भारत यह मानता है कि चीन की सरकार ही पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करती है और ताइवान भी चीन का ही हिस्सा है। यह “वन चाइना नीति'' पर ही आधारित है। भारत ने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं। हालांकि, भारत और ताइवान के बीच एक अनौपचारिक संबंध हैं जो आर्थिक व तकनीक केंद्रित है। मोटे तौर पर भारत इस मुद्दे पर संतुलन बना कर चलता है, इसमें चीन की संप्रभुता का सम्मान होता है मगर साथ ही ताइवान के साथ व्यावहारिक सहयोग को भी बढ़ावा दिया जाता है।

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