बिहार में नहीं चला महागठबंधन का 'मेगा शो', अब बंगाल-तमिलनाडु में कांग्रेस का क्या होगा?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन ने महागठबंधन के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी ने केवल 6 सीटें जीतीं, जिससे गठबंधन में उसकी भूमिका पर संदेह पैदा हो गया है। इस प्रदर्शन का असर पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में गठबंधन पर भी पड़ सकता है, जहां कांग्रेस को सहयोगी दलों के समर्थन की सख्त जरूरत है।

बंगाल और तमिलनाडु में गठबंधन को लेकर सवाल। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस का किला बुरी तरह से ध्वस्त हुआ। पार्टी की दुर्गति ने एक गंभीर सवाल पैदा कर दिया है कि अब महागठबंधन (एमजीबी) का क्या होगा? कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट की वजह से उन राज्यों में गठबंधन को लेकर सवाल उठने लगे हैं जहां आने वाले कुछ महीनों में चुनाव होने को हैं।
बिहार चुनाव के नतीजों का असर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु तक देखने को मिल सकता है, जहां पर कांग्रेस पार्टी को एक ताकतवर गठबंधन की सख्त जरूरत है। इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि बिहार में कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद बंगाल और तमिलनाडु में गठबंधन के सहयोगी नजरंदाज कर सकते हैं।
बिहार में कांग्रेस का बुरा हश्र
बिहार चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस की राज्य में मौजूदगी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी ने सिर्फ 6 सीटें जीती हैं, जबकि 61 सीटों पर उसने उम्मीदवार उतारे थे। इस तरह से देखा जाए तो पार्टी ने हर दस में से सिर्फ एक सीट जीत पाई। इस बार वोट शेयर 8.71 प्रतिशत पर अटक गया। पिछले चुनाव में यह वोट प्रतिशत 9.6 प्रतिशत था। हालांकि उस वक्त कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार भी उतारे थे और 19 सीटें जीती थीं। इससे पहले 2015 में पार्टी ने 15 सीटें जीती थीं।
पिछले कुछ दशकों से बिहार राजनीतिक रूप कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल भरा रहा है। अब राज्य में पार्टी का कोई मजबूत सामाजिक आधार नहीं बचा है और इसके पीछे का मुख्य कारण उसका खराब प्रदर्शन माना जा रहा है। ऐसे में अब सहयोगी दल भी सोचने लगे हैं कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन कितना फायदेमंद होगा? क्योंकि इस बार बिहार में महागठबंधन के कांग्रेस और आरजेडी जैसे प्रमुख दलों में तालमेल और विश्वास की कमी देखने को मिली।
बंगाल में गठबंधन को लेकर कानाफूसी
बिहार में महागठबंधन के नतीजे किसी चेतावनी से कम नहीं हैं, ऊपर से कांग्रेस के प्रदर्शन ने भी सहयोगी दलों के कान खड़े कर दिए हैं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में कांग्रेस की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इन राज्यों में भी पार्टी निचले पायदान पर खड़ी है।
बंगाल की अगर बात करें तो तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच तनातनी पहले भी देखने को मिल चुकी है। कई मौकों और मुद्दों पर ममता बनर्जी ने कांग्रेस का खुलकर विरोध किया है। वैसे भी बंगाल में टीएमसी की मजबूत पकड़ है और मौजूदा हालात से सीख न लेते हुए कांग्रेस ने बंगाल में भी लापरवाही दिखाई तो गठबंधन दल उसे नजरंदाज कर सकते हैं।
पिछले चुनाव में टीएमसी ने नहीं दिया था कांग्रेस को भाव
2021 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही सवाल उठा था कि क्या टीएमसी और कांग्रेस में गठजोड़ होगा तो उस वक्त भी ममता बनर्जी ने इससे पल्ला झाड़ लिया था। बाद में कांग्रेस, लेफ्ट और आईएसएफ ने मिलकर चुनाव लड़ा और टीएमसी ने अकेले ही मोर्चा संभाला था। नतीजा यह हुआ कि टीएमसी ने जीत हासिल की और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, सिर्फ दो सीटें ही मिल पाईं। ऐसे में फिर वही सवाल क्या ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी कांग्रेस को भाव देगी?
तमिलनाडु में गठबंधन को लेकर क्यों है सस्पेंस?
दरअसल, कांग्रेस के पिछले प्रदर्शनों का यह ट्रेंड पार्टी के लिए खतरनाक होता जा रहा है कि उसने जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा, उन्हें नुकसान ही पहुंचा है। 2017 में उत्तर प्रदेश के अंदर समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 114 सीटों में से सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई थी। इसी तरह हाल ही में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे भी इस बात की गवाही दे रहे हैं।
तमिलनाडु में भी कांग्रेस की स्थिति लचर है और उसे डीएमके जैसी पार्टी के सहयोग की बेहद जरूरत है लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों दलों के बीच खटपट की खबरें सामने आ रही हैं। कांग्रेस के कई नेता डीएमके में शामिल हो रहे और पार्टी में इसको लेकर नाराजगी है। हाल ही में कांग्रेस की करूर जिला महिला विंग की नेता, विरधुरनगर जिला युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने कांग्रेस से ज्यादा डीएमके पर भरोसा किया।
तमिलनाडु में भी कांग्रेस-डीएमके नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी
इसके अलावा डीएमके और कांग्रेस नेताओं के पिछले बयानों को देखा जाए तो वो भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हैं। साथ ही पीएमके संस्थापक रामदास के डीएमके गठबंधन की ओर झुक जाने की वजह से कांग्रेस को डर है कि उसे कम सीटें मिल सकती हैं। यह डर कांग्रेस के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। वहीं, बिहार के ताजा नतीजों को देखते हुए डीएमके अलग रणनीति अपनाने के बारे में सोच सकती है।
2016 में यहां कांग्रेस ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 19.51% के स्ट्राइक रेट के साथ सिर्फ 8 सीटें जीत पाई थीं। 2021 में कांग्रेस को सिर्फ 25 सीटें ही मिली थीं जिसमें से 18 सीटों पर उसने जीत दर्ज की थी।

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