घटना न तो छोटी है, न घबराहट में घटी... इसके पीछे बड़ा संदेशः यशोवर्धन झा आजाद
दिल्ली में हुए विस्फोट ने 15 साल की शांति भंग कर दी है, जिससे सरकार और जनता चिंतित हैं। यह घटना 'व्हाइट कॉलर आतंकवाद' का नया चेहरा दिखाती है, जिसमें डॉक्टर शामिल हैं। खुफिया एजेंसी के पूर्व निदेशक यशोवर्धन झा आजाद ने कहा कि यह घटना एक बड़ा संदेश है और इसके दूरगामी परिणाम होंगे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने और डीरैडिकलाइजेशन कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
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घटना न तो छोटी है न घबराहट में घटी इसके पीछे बड़ा संदेश (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली में हुए ब्लास्ट ने 15 साल के सुकून और भरोसे को एक बार फिर तोड़ दिया। 1997 से 2011 के बीच हुई 15 ब्लास्ट को स्मृतियों में दफन कर दिल्लीवासी आगे बढ़ चुके थे, लेकिन इस घटना ने सरकार से लेकर आम जनता को चिंता में डाल दिया।
चिंता, देश की राजधानी पर 'हमले' को लेकर कम और व्हाइट कालर डाक्टरों व पढ़े-लिखे मुस्लिम युवाओं के 'माड्यूल' पर ज्यादा है। आतंक की पुरानी सारी धारणाओं को एक किनारे कर जो तस्वीर सामने आई है, उससे साफ है कि यह लड़ाई जल्द खत्म होने वाली नहीं है।
भारत की आंतरिक खुफिया एजेंसी आईबी के स्पेशल डायरेक्टर रहे यशोवर्धन झा आजाद कहते हैं यह घटना न तो छोटी है और न ही इसे घबराहट में अंजाम दिया गया है। इस घटना के भीतर एक बड़ा संदेश छिपा हुआ है, जिसे डिकोड करने की जरूरत है। अब तक सामने आए सभी आतंकियों का देश के पांच राज्यों में नेटवर्क मिला।
सभी का दो साल से मूवमेंट था, लेकिन कहीं से भी सूचना नहीं मिली। आतंकियों का नेटवर्क तोड़ना है तो केंद्र सरकार को तत्काल सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध और मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच संवाद बढ़ाने का प्रोग्राम लांच करना चाहिए। 1976 बैच के मप्र कैडर के आइपीएस यशोवर्धन प्रतिनियुक्ति पर आइबी में आ गए थे।
1997 में उन्हें आइबी में विशेष निदेशक के तौर पर पदोन्नति मिली। देश में सिमी के सबसे बड़े नेटवर्क को तोड़ने और सफदर नागौरी सहित अन्य आतंकियों को पकड़ना उनके करियर की बड़ी उपलब्धियों में से एक है। खेल एवं युवा कल्याण में बतौर सचिव भारतीय टीम उनकी सुरक्षा में ही पाकिस्तान गई थी और मैच खेला था।
सेवानिवृत्ति के बाद वह केंद्रीय सूचना आयुक्त भी रहे और उन्होंने 8000 से ज्यादा फैसले दिए हैं। वह बिहार के पूर्व सीएम भगवत झा आजाद के पुत्र हैं। दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा: चुनौतियां, बचाव और जागरूकता' पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंशः
दिल्ली ब्लास्ट और अब तक देश में हुए तमाम ब्लास्ट या आतंकी घटनाओं में आप क्या अंतर देख रहे हैं?
यह सिर्फ हमारी सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती नहीं है, बल्कि यह बहुत दूरगामी असर डालने वाली घटना है। सरकार से लेकर सुरक्षा एजेंसियां, राजनीतिक दलों से लेकर आम जनता हर किसी को इसे डिकोड करने की जरूरत है।
कैसे और क्यों? क्या आशय है आपका?
देखिए, यह जो घटना हुई है, आने वाले समय में इसका हमारी आंतरिक सुरक्षा पर बहुत सारा दुष्प्रभाव पड़ने वाला है। पहला, 14-15 साल से दिल्ली इस तरह की घटनाओं से सुरक्षित थी। यह घटना हमारे आत्मविश्वास को कुछ हद तक तोड़ देगी और कुछ समय तक इसका असर दिखाई देगा। दूसरा, इस घटना के जरिये एक ऐसे मॉड्यूल का राजफाश हुआ है, जिसमें बड़े पैमाने पर डाक्टर शामिल हैं, यानी...व्हाइट कॉलर आतंकवाद का एक नया चेहरा सामने आया है। ऐसा नहीं है कि पहली बार व्हाइट कालर मुस्लिम युवा आतंकवाद की ओर आकर्षित किया गया है। आपको याद हो तो आइसिस (इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया) ने जब इंटरनेट मीडिया के जरिये आक्रामक प्रचार शुरू किया था, उससे प्रभावित होकर हमारे यहां से भी बहुत से पढ़े-लिखे मुस्लिम युवा आइसिस के युद्ध मैदान तक में उतर गए थे। कुछ लोग सीरिया तो कुछ लोग अफगानिस्तान गए थे। इसमें दंत रोग चिकित्सक और उच्च शिक्षित कॉलेज के विद्यार्थी शामिल हुए थे। उनमें से कई तो युद्ध में खेत रहे और कुछ भागकर देश लौट आए। जब भागकर आए युवाओं से सुरक्षा एजेंसियों ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया था कि वह किस तरह से लुभाए गए थे। दरअसल, इनके प्रचारक इतने खतरनाक
क्या यह सुरक्षा एजेंसियों की चूक नहीं है। आप आसपास के लोगों की चुप्पी को जिम्मेदार क्यों मान रहे हैं?
घटना के बाद सब लोग सुरक्षा एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं, लेकिन हमें यह भी देखना होगा दिल्ली 15 साल तक सुरक्षित थी। 2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट भी हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़कर बड़ी घटना को होने से रोका है। कश्मीर के दो अधिकारियों की सूचना पर ही आतंकियों के नए और इतने बड़े माड्यूल का राजफाश हुआ। मैं यह बिलकुल नहीं कहना चाहता कि जो घटना हुई है, वह छोटी है। वह बहुत ही दर्दनाक और बड़ा संदेश देने वाली घटना है। इसी घटना के भीतर यह तथ्य छिपा हुआ है कि जब यह डाक्टर्स 2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट जमा कर रहा था, उस वक्त आसपास के लोगों से हमें सूचना नहीं मिली। सरकार को इस बारे में बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए कि इन लोगों ने सूचनाएं क्यों नहीं दीं? क्या यह लोग डरने लगे हैं? क्या सरकार, सुरक्षा एजेंसियों का इन लोगों से संवाद खत्म हो गया है? यह तीनों ही सवाल का जवाब तलाशना बहुत जरूरी है और इससे ही सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का नया रास्ता निकलेगा।
बतौर आइबी के स्पेशल डायरेक्टर आपने जांच के दौरान सिमी सहित कई आतंकी माड्यूल का राजफाश किया। अभी जेल में बंद सिमी आतंकी सफदर नागौरी का इंट्रोगेशन किया। आखिर किस बात से और क्यों प्रभावित होकर पढ़ा-लिखा युवा वर्ग आतंक की गर्त में समा जाता है?
इस सवाल का जवाब दुनियाभर के मनोचिकित्सक तलाश रहे हैं। इसी सवाल का जवाब तलाशने में जुटे केरल के एक प्रोफेसर का कहना है कि आइसिस में जो लोग गए थे, वह एंटी हिंदू या एंटी क्रिश्चियन विचारधारा से प्रभावित होकर नहीं गए थे, बल्कि शुद्ध इस्लाम को अपनाने गए थे। इन्हें इस्लाम के 'शुद्धिकरण' के नाम पर रैडिकलाइज (चरमपंथी बनाना ) किया जाता है... और वह एक भ्रम की दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं। यह कनवरशन (परिवर्तन) मनोविज्ञान का विषय है।
यह 'शुद्धिकरण' क्या है?
देखिए, शिक्षित वर्ग को रैडिकलाइज करने के लिए आपको उनके भीतर किसी जिज्ञासा को जन्म देना होता है। उस जिज्ञासा के चलते वह उसकी 'खोज' में आगे बढ़ता है। या यूं कहें कि डूबता जाता है। यह खोज सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकती हैं। इस संदर्भ में मुस्लिम वर्ग के पढ़े-लिखे युवाओं को शुद्ध इस्लाम या जन्नत के नाम पर बहकाया जाता रहा है। इसे स्थापित करने की बात कही जाती है, जिसमें नाच-गाना बंद, महिलाओं के सारे अधिकार छीनकर उन्हें परदे में रखने की परंपरा और तमाम तरह की पाबंदियों के साथ एक अलग ही दुनिया में ले जाने की बात होती है। इससे प्रभावित होकर या फिर क्या वाकई ऐसी दुनिया होती है, इसकी खोज में मुस्लिम युवाओं में से कुछ आतंकवाद की ओर चल पड़ते हैं। गैर पढ़ा-लिखा व्यक्ति इतना सब नहीं सोच सकता है। जेहाद के नाम पर उसके हाथ में बंदूक थमाकर कुछ लोगों को मारा जा सकता है, लेकिन पढ़े-लिखे युवा वर्ग को मानसिक रूप से भटकाकर समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित किया जा सकता है। कैलिफोर्निया के सान बर्नार्डिनो में एक दंपती सैयद फारूक और पत्नी ताशफीन मलिक ने सहकर्मियों की पार्टी में गोली चलाकर 14 लोगों को मार डाला था। उस समय एफबीआइ ने
तो इस चक्रव्यूह को भेदने का क्या तरीका है?
डीरैडिकलाइजेशन... यह अब हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का सबसे अहम हिस्सा बन गया है। इसके लिए देशभर में अनवरत कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। दिल्ली ब्लास्ट ने हमें यह सिखाया है कि किसी घटना के बाद जांच करना, आतंकियों को तलाशना, उन्हें सजा दिलाना, उनके हैंडलर को तलाशना और उनके नेटवर्क को ध्वस्त करना, यह सब तो होता रहेगा। यह सब अब सेकेंडरी है। सबसे अहम है भ्रम जाल में फंसे युवाओं को चरमपंथी विचारधारा से वापस लौटाकर लाना और वास्तविक जिंदगी से उनका सामना करवाना। अनवरत कार्यक्रम के जरिये प्रभावित युवाओं को उस भ्रम जाल में फंसने से पहले ही रोकना।
आप कार्यक्रम चलाने की बात कर रहे हैं, जबकि हर राज्य में पहले से ही सिविल डिफेंस विभाग मौजूद है, जिसकी मुख्य भूमिका पुलिस और समाज के बीच एक सेतु बनाने की है, लेकिन अधिकांश जगह यह निष्क्रिय है। क्या आप सरकार से कार्यक्रम चलाने की बात कह रहे हैं? क्या कार्यक्रम चलाना चाहिए?
मैं इसकी ही बात कर रहा हूं, लेकिन थोड़ा और फोकस होते हुए। मुझे लगता है कि पीएम नरेन्द्र मोदी को तत्काल सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करना चाहिए और सभी को यह जिम्मेदारी देना चाहिए कि वह तत्काल मुस्लिम समाज के सभी मध्यम वर्ग और शिक्षित समाज के युवाओं से भी संपर्क स्थापित करें। उन्हें ऐसा ना महसूस हो की वह राजनीतिक परिसीमा से बाहर हैं। उनसे संवाद बढ़ाए। चाहे कोई भी सरकार हो, इस वर्ग को सिर्फ वोट बैंक ही मानती है। कुछ दलों के लिए यह वोट बैंक नहीं है, इसलिए कोई संवाद नहीं होता है। कुछ दलों को लगता है कि यह उनके स्थायी वोट बैंक है, इसलिए वह इनसे बात करने की जरूरत ही नहीं महसूस करते हैं। ...शुरू में मैंने तीन सवाल उठाए थे कि आसपास के लोगों ने सूचनाएं क्यों नहीं दीं? क्या ये लोग डरने लगे हैं? क्या सरकार, सुरक्षा एजेंसियों का इन लोगों से संवाद खत्म हो गया है? जब सरकारें, एजेंसियां इस वर्ग से संवाद स्थापित करेंगी, तभी उन्हें इन तीनों सवालों का जवाब मिलेगा और समय रहते सूचनाएं भी मिलेंगी।
तो क्या आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता है?
आतंकवाद खत्म नहीं हो सकता है। इसे मैनेज (नियंत्रित) किया जा सकता है। जहां तक कश्मीर के आतंकवाद की बात है, तो इस पर काबू पाने के लिए कम से कम 30-40 साल और लगेंगे। वह भी जब बहुत खामोशी, गंभीरता और योजनाबद्ध तरीके से कार्यक्रम चलाए जाएं।
कार्यक्रम या अभियान चलाना तो समाज सुधार का हिस्सा है, लेकिन आतंकवाद से कैसे निपटा जाए? हम इसे जड़ से खत्म क्यों नहीं कर पा रहे हैं? माओवाद भी बड़ी समस्या थी, लेकिन अब वह खत्म होने के कगार पर है?
सही सवाल उठाया है आपने और तुलना भी सही की है। नक्सलवाद 1967 में शुरू हुआ था और आज 2025 है। अब कहीं जाकर यह कह पाने की स्थिति में हैं कि यह खत्म होने की कगार पर है। यह 1972 से 1977 के बीच बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर ने इसके खिलाफ पहली बड़ी कार्रवाई की। उसके बाद से अब तक सिर्फ सेना या पुलिस के जोर से ही नहीं बल्कि उन क्षेत्रों का आर्थिक उत्थान कर, वहां स्कूल-कालेज खोलकर, वहां के लोगों को शिक्षित कर, उनके बीच पैठ बनाकर और उनका डर दूर कर इस पर काबू पाया गया।
दिल्ली ब्लास्ट में सभी कनेक्शन कश्मीर व जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं? तो कश्मीर पर फोकस कर आतंकवाद को खत्म क्यों नहीं किया जा सकता?
यही तो इस ब्लास्ट के जरिये बड़ा संदेश दिया गया। अब आतंकवाद कश्मीर तक सीमित नहीं है। आप सिर्फ कश्मीर में डीरैडिकलाइजेशन कार्यक्रम चला रहे हैं और इधर, चरमपंथी पूरे देश में नेटवर्क फैला रहे हैं। इसलिए मैं कह रहा हूं कि समग्र रूप से पूरे देश में एक साथ अनवरत यह कार्यक्रम चलाना होगा। तभी कश्मीर का एक आतंकी जब उप्र के किसी गांव में मकान किराए पर लेकर अमोनियम नाइट्रेट जमा करेगा तो वहां के लोग इसके बारे में बात करेंगे। सोचिए, कितना भयावह है कि दिल्ली ब्लास्ट में शामिल डाक्टर्स एक कॉलेज में पढ़ा रहे हैं, काम कर रहे हैं, लेकिन किसी ने उनके व्यवहार में आए बदलावों को नोटिस नहीं किया। वह चाहे किसी भी समाज के लोग हों या किसी भी समाज से जुड़े हुए हों, उन्हें बोलने, अपने आसपास घट रही गतिविधियों के प्रति सचेत रहने के लिए सिखाना होगा। खास तौर पर मोबाइल के युग में जब लोगों के आपस में संपर्क खत्म हो रहे हैं, वैसे में यह ज्यादा जरूरी है।
दिल्ली ब्लास्ट को लोग आपरेशन सिंदूर से जोड़कर देख रहे हैं। अजहर मसूद की बहन शाहिदा द्वारा संचालित महिला विंग से डा. शाहिन का संपर्क होना क्या इस बात का प्रमाण है?
बेशक आपरेशन सिंदूर के बाद यह बड़ा आतंकी हमला है, लेकिन मैं निजी तौर पर यह नहीं मानता कि इस हमले की तैयारी आपरेशन सिंदूर के बदले के रूप में की गई। संयोग है कि यह घटना अभी हुई है। इसकी तैयारी बहुत लंबे समय से की जा रही थी और आगे-पीछे इस घटना को बहुत ही बड़े पैमाने पर अंजाम देने की तैयारी थी।
क्या आपरेशन सिंदूर पार्ट-2 का समय आ गया है क्या? आप क्या आकलन कर रहे हैं?
सुरक्षा एजेंसियां अभी यह तलाश रही हैं कि इसके हैंडलर कहां हैं? कहां से बैठकर इस आतंकी घटना को अंजाम दिया गया? क्या क्रिप्टोकरेंसी जैसे किसी माध्यम का उपयोग किया गया? इन सवालों का जवाब मिलने के बाद ही सरकार कोई कार्रवाई करेगी। ...और यह अच्छी बात है। पहली बार किसी आतंकी घटना के बाद अनर्गल बयानबाजी के बजाय सरकार, विपक्ष और सुरक्षा एजेंसियों ने बहुत ही गंभीरता का परिचय देते हुए जांच को आगे बढ़ा रही है।
बताया जा रहा है कि डा. उमर ने पैनिक में दिल्ली ब्लास्ट को अंजाम दिया। क्या आप इससे सहमत हैं?
नहीं, बिलकुल नहीं। घटना न तो छोटी है, न घबराहट में घटी है। बेशक इसे बड़े स्तर पर अंजाम देने की तैयारी थी, लेकिन कुछ डाक्टरों के पकड़े जाने के बाद उसने इस घटना को अंजाम दिया। वह भी सोच-विचार कर। फरीदाबाद से वह कहीं और नहीं भागा, क्योंकि उसे पता था कि कश्मीरी नैन-नक्श की वजह से वह कहीं और आसानी से पहचाना जाएगा। दिल्ली में हर राज्य से लोग हैं, इसलिए वह आसानी से 'मूवमेंट' कर सकता है। ब्लास्ट के लिए चांदनी चौक के सड़क का वह हिस्सा चुना, जिसके दोनों ओर मंदिर थे। यहां से लाल किला भी पास में था।

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