Trump Tariff Policy: ट्रंप के टैरिफ का भारत पर नहीं पड़ेगा सीधा असर, लेकिन यहां फंस रहा पेच; जानिए क्या है नई मुसीबत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पारस्परिक शुल्क नीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत पर इसका सीधा असर कम होगा लेकिन वैश्विक मंदी अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि और एफआईआई निकासी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बन सकती है। आईएमएफ ने वैश्विक विकास दर में गिरावट की संभावना जताई है। भारतीय नीति नियामकों को रणनीतिक समाधान निकालने की जरूरत होगी।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई पारस्परिक शुल्क नीति (Reciprocal Tariff Policy) की घोषणा को लेकर ज्यादातर विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि इसका भारत पर उतना व्यापक असर नहीं होगा, जितना अमेरिका के दूसरे बड़े कारोबारी साझेदार देशों जैसे चीन, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका, जापान आदि पर होगा। हालांकि, ट्रंप प्रशासन की इस नीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जिस तरह से असर होगा, भारत को उसका दंश झेलना पड़ सकता है।
भारत के नीति नियामकों को अमेरिका के साथ ट्रेड वार्ता के जरिए समाधान तलाशने के साथ ही देश की इकॉनमी को संभावित वैश्विक मंदी, अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने, घरेलू शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) के बाहर निकलने की तेज होने जैसे दूसरी चुनौतियों से भी पार पाने की कोशिश करनी होगी।
वैश्विक सप्लाई चेन की मौजूदा व्यवस्था में भी भारी अस्थिरता फैलने की आशंका
अमेरिकी सरकार का नई टैरिफ नीति वैश्विक सप्लाई चेन की मौजूदा व्यवस्था में भी भारी अस्थिरता फैला सकती है, भारत को इस नये हालात में भी अपने लिए अवसर तलाशने होंगे।
और सुस्त होगी वैश्विक इकॉनमी
आईएमएफ (International Monetary Fund) की निदेशक क्रिस्टेलीना जॉर्जजीवा ने इसी हफ्ते कहा है कि वह वैश्विक मंदी के गहराने की संभावना देख रही हैं। आइएमएफ ने दिसंबर, 2024 में कहा था कि वर्ष 2025 में वैश्विक विकास दर 3.3 फीसद रहेगी जो वर्ष 2024 में दर्ज 3.1 फीसद से थोड़ी बेहतर होगी। लेकिन अब आइएमएफ के अधिकारियों का कहना है कि 3.3 फीसद की विकास दर को हासिल करना संभव नहीं दिख रहा। बहुत जल्द ही इसे घटाया जाएगा।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी का कहना है कि, वैश्विक इकॉनमी में मंदी आने से उन सेक्टरों पर भी असर होगा जिन पर ट्रंप सरकार ने सीधे तौर पर शुल्क नहीं लगाया है, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग। यह इसलिए होगा क्योंकि ज्यादातर कंपनियां अपने खर्चे को सीमित कर प्रतिस्पर्द्धी बनने की कोशिश करेंगी। यहां बताते चलें कि वैश्विक विकास की दर अभी तक कोरोना काल से पहले (वर्ष 2019 में 3.6 फीसद) की रफ्तार को नहीं पकड़ पाई है।
अमेरिका की महंगाई का भी खोजना होगा काट
भारत की और कई विदेशी एजेंसियों ने गुरुवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शुल्क बढ़ा कर ट्रंप प्रशासन ने महंगाई को न्यौता दे दिया है। अमेरिका ने जिन उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाया है, उनकी लागत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी। महंगाई को काबू में करने के लिए फेडरल बैंक (अमेरिका का केंद्रीय बैंक) को ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ेगा यह स्थिति भारतीय इकॉनमी को कई तरह से प्रभावित करेगी। भारतीय रिजर्व बैंक को भी वैश्विक महंगाई को भारतीय सीमा पर रोकने के लिए कदम उठाने होंगे।
अगले हफ्ते बुधवार को RBI की मौद्रिक नीति की समीक्षा करने वाला है, देखना होगा कि आरबीआइ गवर्नर का संकेत देते हैं। लेकिन इसका एक दूसरा असर भारतीय इकॉनमी पर ज्यादा प्रभावकारी यह होगा कि अमेरिका में ज्यादा ब्याज के आकर्षण से विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरफ से भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालना तेज कर सकते हैं।
एफआइआइ (Foreign Institutional Investors) ने वर्ष 2025 में 15 अरब डॉलर की राशि भारतीय बाजार से निकाली है। ऐसा होने से घरेलू शेयर बाजार की मौजूदा अस्थिरता और तेज हो सकती है। मिलवुड केन इंटरनेशनल के संस्थापक और सीईओ निश भट्ट ने कहा है कि, ट्रंप सरकार का कदम भारत समेत वैश्विक शेयर बाजार को अस्थिर कर देगा।
वैश्विक सप्लाई चेन में अफरा-तफरी
एसोचैम के अध्यक्ष संजय नायर का कहना है कि वैश्विक ट्रेड व वैल्यू चेन में नये सिरे से समीकरण बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी।
इक्विटी शोध एजेंसी वेंचुरा के प्रमुख (शोध) विनीत वोलिंजकर ने आशंका जताई है कि वैश्विक सप्लाई चेन में मंदी की संभावना पैदा हो रही है। दुनिया के विभिन्न स्थलों पर प्लांट लगा कर लागत कम करन में जुटी दिग्गज मैन्यूफैक्चरिंग व प्रौद्योगिकी कंपनियों को अब नये सिरे से अपनी रणनीति बनानी होगी। पारस्परिक शुल्क लगाने के दौर में हर देश की प्रतिस्पर्द्धता क्षमता पर क्या असर होता है, इसको लेकर स्थिति साफ होने में समय लगेगा। भारत ने कोविड महामारी के बाद वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी पैठ बनाने की मुहिम तेज की हुई है। भारत सरकार को भी रणनीत में बदलाव करना पड़ सकता है।
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