'काश उसे बेंगलुरु में नौकरी ही न मिलती', आंध्र प्रदेश बस अग्निकांड में उजड़े परिवारों ने ऐसे बयां किया दर्द
आंध्र प्रदेश के कुरनूल में एक दर्दनाक बस अग्निकांड में कई लोगों की जान चली गई, जिससे कई परिवार तबाह हो गए। 23 वर्षीय अनुषा, जिसे हाल ही में बेंगलुरु में नौकरी मिली थी, इस त्रासदी का शिकार हो गई। उसके माता-पिता अब उस नौकरी को लेकर अफसोस कर रहे हैं। एक अन्य पीड़ित, मेघनाथ ने भी हाल ही में बेंगलुरु में अपना करियर शुरू किया था। बचे हुए लोगों ने उस भयानक मंजर को याद किया, जिसमें अंधेरा और धुआं छाया हुआ था।

हादसे के बाद रोते-बिलखते परिवार।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के कुरनूल में हुए भीषण बस अग्निकांड के पास वाली जगह पर न सिर्फ अभी धुएं की महक बल्कि टूटे हुए परिवारों का दुख भी साफ दिख रहा है। बस में लगी भयंकर आग ने न जाने कितने सपनों को जलाकर खाक कर दिया और पीछे रह गया तो सिर्फ निराशा, दिल दहला देने वाला मंजर और अंधेरा।
इस घटना में 23 साल की अनुषा की भी मौत हो गई। उसे कैंपस प्लेसमेंट के बाद पिछले साल अगस्त में बेंगलुरु में एक्सेंचर में नौकरी मिली थी। जब उसकी ये नौकरी लगी तो उस समय माता-पिता को गर्व हुआ था लेकिन अब वह इसको लेकर अफसोस कर रहे हैं और कह रहे हैं कि काश, उसकी नौकरी बेंगलुरु में न लगी होती।
अनुषा के पिता ने बयां किया दर्द
अनुषा के पिता ने अफसोस से भरी आवाज में कहा, "काश मेरी बेटी को बेंगलुरु में वह नौकरी कभी न मिलती।" वह और उनकी पत्नी अपनी बेटी के साथ बिताए आखिरी पलों को याद करते हुए बहुत दुखी हैं। पिता ने रोते हुए कहा, "हमने अपनी बेटी को बस स्टैंड पर विदा किया।" यह विदाई अब जिंदगी भर के बुरे सपने में बदल गई।

अनुषा की मां ने क्या कहा?
उसकी मां के दर्द का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो दबी सी आवाज में कहती हैं, "मैंने अपनी बेटी से कहा था कि वह कुछ दिन और रुक जाए।" अब वह सोचती हैं कि क्या होता अगर अनुषा ने उनकी बात मान ली होती। अनुषा से कही यह बात उन्हें खाए जा रही है। अनुषा दिवाली की छुट्टी पर घर आई थी और वापस नौकरी के लिए बेंगलुरु जा रही थी।
एक और परिवार की दुनिया उजड़ी
अनुषा के अलावा इस बस अग्निकांड में मेघनाथ की भी मौत हुई। एक और परिवार, जिसकी दुनिया उजड़ गई। मेघनाथ ने पांच महीने पहले ही बेंगलुरु में अपना करियर शुरू किया था। घरवालों को जब पता चला तो पहले उन्हें यकीन नहीं हुआ लेकिन मौके पर पहुंची उसकी मां ने अपने बेटे को देखा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। वो इस सच को स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं। उन्होंने बिलखते हुए कहा, "मेरा बेटा ऐसे नहीं जा सकता। मैं अपने बेटे के बिना कैसे रहूंगी?"

जिंदा बचे लोगों ने ऐसे याद किया वो खौफनाक मंजर
इस घटना में जिंदा बचे गुना साईं इस रास्ते से अक्सर यात्रा करते थे। उन्होंने हॉस्पिटल के बेड पर लेटे हुए उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए बताया, "वहां सिर्फ अंधेरा और धुआं ही धुआं था। हमें तो ये भी नहीं पता था कि हम में से कितने लोग बच पाए होंगे।"

उन्होंने बताया, "आग से बचने के लिए मैं खिड़की से कूद गया और ये बहुत जल्दी हुआ। खिड़की का कांच तोड़ने के लिए कोई हथौड़ा भी नहीं था। ड्राइवर ने भी मदद नहीं की। हमने अंदर से ही शीशा तोड़ने की कोशिश की लेकिन आखिर में शायद किसी ने बाहर से शीशा तोड़ा और इससे हमें भागने में मदद मिली।"

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