'सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस योजना को सही अर्थों में लागू करें सरकार', SC ने केंद्र को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना को सही अर्थों में लागू करे। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र को अगस्त 2025 के अंत तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमें योजना के क्रियान्वयन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई हो।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना को सही अर्थों में लागू करे। इस योजना के तहत प्रत्येक दुर्घटना में घायल प्रत्येक व्यक्ति अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज पाने का हकदार होगा।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र को अगस्त, 2025 के अंत तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें योजना के क्रियान्वयन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई हो। हलफनामे में इस योजना के तहत कैशलेस उपचार प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की संख्या शामिल होगी।
पांच मई से लागू हो चुकी है योजना: केंद्र सरकार
पीठ ने कहा, 'हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह सुनिश्चित करे कि योजना को सही अर्थों में लागू किया जाए।' केंद्र ने शीर्ष अदालत को योजना तैयार किए जाने की जानकारी दी और कहा कि यह पांच मई से लागू हो चुकी है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की गजट अधिसूचना के अनुसार, 'किसी भी सड़क पर मोटर वाहन दुर्घटना का शिकार होने वाला कोई भी व्यक्ति इस योजना के प्रविधानों के अनुसार कैशलेस उपचार का हकदार होगा।'
शीर्ष अदालत ने मोटर दुर्घटना पीड़ितों के इलाज के लिए कैशलेस योजना तैयार करने में देरी को लेकर 28 अप्रैल को केंद्र सरकार की ¨खचाई की थी और कहा था कि उसके आठ जनवरी के आदेश के बावजूद केंद्र ने न तो निर्देश का पालन किया और न ही समय बढ़ाने की मांग की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि मोटर वाहन अधिनियम की धारा-164ए को एक अप्रैल, 2022 को तीन वर्ष की अवधि के लिए लागू किया गया था, लेकिन केंद्र ने दावेदारों को अंतरिम राहत देने के लिए योजना बनाकर इसे लागू नहीं किया। पीठ ने कहा था, 'आप अवमानना कर रहे हैं। आपने समय-सीमा बढ़ाने की जहमत नहीं उठाई। यह क्या हो रहा है? आप हमें बताएं कि आप योजना कब बनाएंगे?
आपको अपने ही कानूनों की परवाह नहीं है। यह कल्याणकारी प्रविधानों में से एक है। तीन वर्ष पहले यह प्रविधान लागू हुआ था। क्या आप वाकई आम आदमी के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं?'
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को लगाई फटकार
शीर्ष कोर्ट ने अधिकारियों को उनके लापरवाह रवैये के लिए फटकार लगाई थी और एक तरफ राजमार्गों के निर्माण एवं दूसरी तरफ 'गोल्डन आवर' उपचार जैसी सुविधाओं की कमी के कारण होने वाली मौतों की ओर इशारा किया था।
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2(12-ए) के तहत 'गोल्डन आवर' दुर्घटना के बाद के एक घंटे की अवधि को संदर्भित करता है, जिसके तहत समय पर चिकित्सा उपलब्ध कराने से मृत्यु को रोका जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कानून के तहत अनिवार्य 'गोल्डन आवर' में मोटर दुर्घटना पीडि़तों के कैशलेस उपचार के लिए योजना तैयार करने का आठ जनवरी को केंद्र को निर्देश दिया था।
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