'यदि आप अनंत काल तक स्वीकृति रोके रखते हैं तो...' राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्रवाई के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में याचिका दायर नहीं कर सकती। सरकार के अनुसार राज्य सरकार मौलिक अधिकारों के हनन के लिए याचिका दाखिल नहीं कर सकती क्योंकि उनके अपने मौलिक अधिकार नहीं होते वे तो जनता के अधिकारों का संरक्षण करते हैं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल व राष्ट्रपति की कार्रवाई को लेकर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल नहीं कर सकती।
केंद्र सरकार ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार मौलिक अधिकार के हनन के लिए याचिका दाखिल नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट आजकल प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रहा है।
संविधान पीठ ने क्या कहा?
गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के विधेयकों पर कार्रवाई को लेकर राज्यों के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने के अधिकार पर बहस करते हुए कहा कि राष्ट्रपति चाहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर राय दे।
पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रेसीडेंशियल रिफरेंस में भेजे गए 14 सवालों में से इस सवाल पर राय की जरूरत नहीं लगती। कोर्ट ने मेहता से इस सवाल पर सुनवाई को लेकर निर्देश लेकर बताने को कहा था।
क्या रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं?
गुरुवार को जैसे ही सुनवाई शुरू हुई तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें निर्देश मिला है और राष्ट्रपति चाहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर राय दे कि क्या राज्य इस मामले में मौलिक अधिकार के हनन के लिए रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा राष्ट्रपति ये भी चाहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 361 के दायरे पर भी राय दे जो कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी अदालत में जवाबदेही से छूट देता है। मेहता ने कहा कि कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति को परमादेश (रिट मैंडेमस) जारी नहीं कर सकता क्योंकि अगर कोर्ट राज्यों की रिट दाखिल करने की शक्ति को स्वीकार कर लेता है तो अनुच्छेद 361 निरर्थक हो जाएगा।
मेहता ने ये भी कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए दाखिल की जाती है और संवैधानिक व्यवस्था में राज्य सरकार के अपने कोई मौलिक अधिकार नहीं होते। राज्य सरकार तो जनता के मौलिक अधिकारों का संरक्षण करती है।
मेहता ने गत आठ अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के तमिलनाडु मामले में दिए फैसले का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर कार्रवाई को लेकर तय दिशानिर्देश का पालन न करें तो राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं।
सीजेआई ने क्या कहा?
हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि वह दो न्यायाधीशों की पीठ के आठ अप्रैल के फैसले पर कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल का छह महीने तक विधेयक को दबाए रखना भी न्यायोचित नहीं होगा। जिसके जवाब में मेहता ने कहा कि अगर संविधान का एक अंग अपने कर्तव्य का निर्वाहन नहीं करता तो कोर्ट को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह दूसरे अंग को निर्देश दे।
सीजेआई ने कहा कि हां हम आपकी दलील समझ गए हैं कि अगर ये अदालत 10 वर्ष तक किसी मामले को तय नहीं करती तो क्या राष्ट्रपति का उस संबंध में आदेश जारी करना न्यायोचित होगा।
तमिलनाडु सरकार ने क्या कहा?
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधेयकों पर कार्यवाही को लेकर राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर चलेंगे।
उन्होंने कहा कि संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र विवेकाधिकार नहीं है। इस संबंध में सिंघवी ने संविधान सभा में हुई बहस का हवाला दिया। तमिलनाडु ने शुरू में ही प्रेसीडेंशियल रिफरेंस का विरोध किया था।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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