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    राज्यपाल को विधेयक पूरी तरह रोकने का अधिकार, प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई के दौरान केंद्र की दलील

    Updated: Wed, 10 Sep 2025 10:00 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पिछले 55 वर्षों में राज्यपालों ने केवल 20 विधेयक रोके हैं जो संविधान के कार्य करने के तरीके को दर्शाता है। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि ज्यादातर विधेयक कुछ महीनों में मंजूर हो गए। कोर्ट ने लंबित विधेयकों पर सवाल उठाया। मेहता ने राज्यपाल को विधेयक रोकने का अधिकार बताया जिसका कुछ राज्यों ने विरोध किया।

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    राज्यपाल को विधेयक पूरी तरह रोकने का अधिकार- केंद्र (फाइल)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर चल रही बहस में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पिछले 55 वर्षों में सिर्फ 20 विधेयक राज्यपालों ने रोके हैं। ये बताता है कि कैसे हमारा संविधान काम कर रहा है। केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 90 प्रतिशत विधेयक एक महीने में मंजूर हुए और 95 प्रतिशत से ज्यादा तीन महीने में फिर छह महीने में मंजूर हुए।

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    उन्होंने कहा कि राज्यपाल के विधेयकों को रोकने के बारे में बनावटी हायतौबा मचाई जा रही है। हालांकि उनकी इस दलील पर कोर्ट ने सवाल किया कि आप ऐसा कैसे कह सकते है जब विधेयक राज्यपाल के पास चार वर्ष तक लंबित रहे।

    मेहता ने कहा कि सभी मामलों के लिए एक समान नियम नहीं तय किया जा सकता। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने फिर सवाल किया कि आपकी दलील है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल के लिए विधेयक रोक सकते हैं, मेहता ने जवाब हां में दिया और उन्होंने इस संबंध में पंजाब सरकार द्वारा जल संधियों को रद करने के कानून का हवाला देते हुए कहा कि वह विधेयक राज्यपाल को रोक लेना चाहिए था।

    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रही है। राज्यों की से बहस पूरी होने के बाद केंद्र प्रतिउत्तर दे रहा है। गुरुवार को मामले में बहस पूरी होकर फैसला सुरक्षित होने की संभावना है।

    राज्यपाल को विधेयक पूरी तरह रोकने का अधिकार- मेहता

    केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के बारे में विवेकाधिकार है और वे विधेयक को रोक भी सकते हैं। मेहता ने तमिलनाडु , केरल आदि राज्यों की ओर से राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के संबंध में विवेकाधिकार न होने और मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि राज्यपाल संविधान की रक्षा करने की शपथ लेते हैं। विधेयकों पर निर्णय के संबंध में राज्यपाल विधायी प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।

    मेहता ने पंजाब में जल बंटवारे की संधियां रद करने के पंजाब सरकार के कानून का उदाहरण देते हुए कहा कि जल बंटवारा संधियों में पंजाब के पड़ोसी राज्य भी शामिल थे केंद्र पक्षकार था, पानी पाकिस्तान जाता था यहां तक कि उससे संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था और तत्कालीन पंजाब सरकार ने जल बंटवारा संधियां रद करने का विधेयक पास कर दिया। उस विधेयक को राज्यपाल ने मंजूरी भी दे दी। बाद में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर पूछा था कि क्या पंजाब को जल बंटवारा संधियां रद करने का कानून पास करने का एकतरफा अधिकार है।

    55 सालों में 17000 विधेयक पारित हुए- मेहता

    मेहता ने कहा कि जिस मामले में अंतरराज्यीय अधिकार शामिल हों, दूसरा देश शामिल हो, मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित हो तो क्या ऐसा कानून पारित किया जा सकता है। इसी समय चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या आपकी दलील यह है कि राज्यपाल हमेशा के लिए विधेयक रोक सकता है। मेहता ने कहा हां । पंजाब का वह विधेयक राज्यपाल को मंजूर नहीं करना चाहिए था। इसके बाद मेहता ने कहा कि यह बहुत कम मामलों में होता है। 1970 से लेकर 2025 तक 55 सालों में 17000 विधेयक पारित हुए जिनमें से सिर्फ 20 रोके गए।

    तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सरकार ने किया विरोध

    हालांकि मेहता के आंकड़े देने का तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि उन्हें बिल रोके जो के संबंध में आंकड़े पेश करने से रोक दिया गया था ऐसे में ये भी आंकड़े नहीं दे सकते। पीठ ने मेहता से कहा कि वह आंकड़ों पर बहस न करें। जब दूसरे पक्ष को इससे मना किया गया है तो आप भी नहीं कर सकते। मेहता ने कहा कि अगर कोई विधेयक केंद्र के कानून के प्रतिकूल होगा तो क्या मंत्रिपरिषद राज्यपाल से कहेगी कि वह उसे मंजूरी न दे। मेहता की बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।

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