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    मतांतरण कानूनों के विरुद्ध दायर याचिकाओं को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हिंदू संगठन

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 07:30 AM (IST)

    हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गैरकानूनी और जबरन मतांतरण पर रोक लगाने के लिए कई राज्यों में बनाए गए कानूनों के विरुद्ध दायर याचिकाओं में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया।

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    मतांतरण से संबंधित याचिकाओं में हस्तक्षेप के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हिंदू संगठन (फोटो- पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गैरकानूनी और जबरन मतांतरण पर रोक लगाने के लिए कई राज्यों में बनाए गए कानूनों के विरुद्ध दायर याचिकाओं में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया।

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    अधिवक्ता अतुलेश कुमार के जरिये दायर याचिका में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018, उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2019 और मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 सहित कई राज्यों में बनाए गए कानूनों के विरुद्ध दायर याचिकाओं को चुनौती दी गई है।

    सितंबर में शीर्ष अदालत ने विभिन्न हाई कोर्टों में लंबित याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था, जिनमें उक्त कानूनों को चुनौती दी गई थी। अखिल भारतीय संत समिति ने मामले में एक पक्षकार बनाने और अदालत में लिखित दलीलें रखने की अनुमति देने के निर्देश देने का अनुरोध किया है।

    संगठन की दलील है कि किसी धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता किसी व्यक्ति को मतांतरण कराने का अधिकार नहीं देती है और कानून स्वतंत्र सोच के आधार पर स्वैच्छिक मतांतरण पर रोक नहीं लगाता।

    'धर्मांतरित' लोगों के लिए अनुसूचित जाति दर्जे की पड़ताल करने वाले आयोग का कार्यकाल बढ़ा

    केंद्र ने उस जांच आयोग का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया है, जिसका गठन यह पड़ताल करने के लिए किया गया था कि क्या उन व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिए जो अनुसूचित जाति की पहचान का दावा करते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसे धर्म अपना लिए हैं जो राष्ट्रपति के आदेशों के अंतर्गत अनुसूचित जाति संबंधी श्रेणी में नहीं आते।

    गुरुवार को जारी राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अधिसूचित इस विस्तार से आयोग को 10 अप्रैल, 2026 तक अपना काम जारी रखने की अनुमति मिल जाएगी।

    इस आयोग का गठन छह अक्टूबर, 2022 को जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत किया गया था, जिसका उद्देश्य हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से इतर अन्य धर्मों में स्थानांतरित हुए व्यक्तियों के बीच अनुसूचित जाति की पहचान के दावों का अध्ययन करना है।

    आयोग को शुरू में 10 अक्टूबर, 2024 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, लेकिन अधिक समय के अनुरोध पर इसका कार्यकाल एक वर्ष बढ़ाकर 10 अक्टूबर, 2025 कर दिया गया। अब आयोग ने अपने निष्कर्षों और सिफारिशों को अंतिम रूप देने के लिए अतिरिक्त समय मांगा है।