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    'क्या अदालतों के हाथ बांधे जा सकते हैं?' राज्यपालों के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी

    Updated: Thu, 21 Aug 2025 04:18 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या संवैधानिक पदाधिकारी कार्य करने से इनकार कर दें या राज्यपाल विधेयकों पर कार्रवाई न करें तो क्या अदालतें असहाय रहेंगी? मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि राज्यों को न्यायिक समाधान के बजाय राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे।

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    राज्यपालों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से पूछा कि अगर संवैधानिक पदाधिकारी अपने कार्य करने से इनकार कर दें या राज्य विधानसभाओं की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल की ओर से कोई कार्रवाई न हो, तो क्या संवैधानिक अदालतों के हाथ बांधे जा सकते हैं?

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    मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर कुछ राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों पर रोक लगाते हैं, तो राज्यों को न्यायिक समाधान के बजाय राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे।

    किस मामले पर हो रही सुनवाई?

    पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल हैं। ये बेंच एक राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई कर रही है, जिसमें यह प्रश्न पूछा गया है कि क्या न्यायालय राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है। पीठ ने कहा कि अगर कोई गड़बड़ी हुई है, तो उसका समाधान होना चाहिए।

    सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सीजेआई के सवाल का दिया ये जवाब

    सीजेआई गवई ने तब मेहता से पूछा, "अगर संवैधानिक पदाधिकारी बिना किसी कारण के अपने कार्यों का निर्वहन नहीं करते हैं, तो क्या संवैधानिक न्यायालय के हाथ बंधे हो सकते हैं?" मेहता ने कहा कि सभी समस्याओं के लिए अदालतें समाधान नहीं हो सकतीं और लोकतंत्र में बातचीत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

    जस्टिस कांत ने क्या कहा?

    जस्टिस कांत ने कहा, "अगर राज्यपाल की ओर से कोई निष्क्रियता है, जो राज्य दर राज्य अलग-अलग हो सकती है और अगर कोई असंतुष्ट राज्य न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है, तो क्या ऐसी निष्क्रियता की न्यायिक समीक्षा पर पूरी तरह रोक लगाई जा सकती है। हमें बताएं कि इसका समाधान क्या हो सकता है?"

    कुछ लचीलेपन का आह्वान करते हुए मेहता ने कहा, "मान लीजिए कि राज्यपाल विधेयकों पर विचार कर रहे हैं, तो राजनीतिक समाधान हैं जिन्हें अपनाया जा सकता है। ऐसा हर जगह नहीं होता कि मुख्यमंत्री अदालत में भागें। ऐसे उदाहरण हैं जहां बातचीत होती है, मुख्यमंत्री राज्यपाल से मिलते हैं, वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलते हैं और समाधान निकल आता है।"

    विधि अधिकारी ने कहा कि गतिरोध को सुलझाने के लिए कई बार टेलीफोन पर बातचीत की गई। उन्होंने कहा, "दशकों से अगर कोई विवाद हो तो उसे सुलझाने के लिए यह प्रथा अपनाई जाती रही है। प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल और राष्ट्रपति से मिलते हैं और कभी-कभी कोई बीच का रास्ता भी निकल आता है।"

    इसके बाद सीजेआई गवई ने मेहता से कहा, "अगर कुछ गलत हुआ है, तो उसका समाधान भी होना चाहिए। यह न्यायालय संविधान का संरक्षक है और इसे संविधान की व्याख्या शाब्दिक अर्थ देकर करनी होगी।"

    जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, "अगर यह तर्क देने के लिए अतिवादी दृष्टिकोण अपनाया जाता है कि आप ऐसा नहीं कर सकते, आप कहते हैं कि हमारे पास ऐसा करने की शक्ति ही नहीं है, तो आप संविधान को कैसे काम में लाएंगे?"

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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