देश में बाढ़-भूस्खलन से तबाही क्यों आई, क्या सड़क-सुरंग और रेल नेटवर्क है वजह या फिर धरती..?
देश में बाढ़ और भूस्खलन की खबरों से जनजीवन अस्त-व्यस्त है। भारी बारिश से नदियां उफान पर हैं जिससे लाखों हेक्टेयर फसलें जलमग्न हैं। नहरों के विकास से कुछ राहत मिली है पर मानव जनित कारणों और प्रकृति से छेड़छाड़ से समस्या बढ़ी है। अतिक्रमण और अनियोजित विकास से प्राकृतिक जल संग्रहण स्थान कम हुए हैं। नदियों में गाद की सफाई और पर्यावरण संरक्षण पर सरकारों का रवैया अहम है।

जागरण टीम, नई दिल्ली। इन दिनों बाढ़ और भूस्खलन की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। देश के बड़े हिस्से में जनजीवन अस्त-व्यस्त है। लाखों हेक्टेयर फसलें जलमग्न हैं। जान-माल का नुकसान भी बड़ा है। सामान्य तौर पर अगर लगातार भारी बारिश होती है तो नदियां उफान पर आ जाती हैं और इसकी परिणति बाढ़ के तौर पर सामने आती है।
देश में नहरों का नेटवर्क विकसित होने के बाद उन राज्यों, क्षेत्रों को बाढ़ से कुछ हद तक राहत मिली है, जहां लगभग हर वर्ष बाढ़ आती थी, लेकिन इसके साथ ही मानव जनित कारणों और प्रकृति से छेड़छाड़ की वजह से जलभराव और बाढ़ के मामले बढ़े हैं।
अतिक्रमण और अनियोजित विकास ने तालाबों और दूसरे प्राकृतिक स्थानों को निगल लिया है, जहां बारिश का पानी इकठ्ठा होता था। अब थोड़ी तेज बारिश होने पर ही दिल्ली और नोएडा जैसे शहरों में सड़कें पानी से लबालब हो जाती हैं।
उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि हमने प्रकृति से छेड़छाड़ की है और अब प्रकृति हमसे बदला ले रही है। पर्यावरण की परवाह किए बिना प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने स्थिति को और खराब कर दिया है।
सवाल यह भी है कि बारिश के पानी को खुद में समेटने वाली नदियां अपने पुराने स्वरूप को बरकरार रख पाएं, इसके लिए गाद की सफाई को लेकर राज्य और केंद्र सरकारें कितनी सतर्क हैं। इस जल-प्रलय में पर्यावरण से छेड़छाड़ और सरकारों का रवैया कितना जिम्मेदार है इसकी पड़ताल अहम मुद्दा है...
उत्तर प्रदेश: गाद सफाई की कोई व्यवस्था नहीं
- 1,300 किलोमीटर गंगा नदी की लंबाई
- 1,320 किलोमीटर यमुना नदी की लंबाई
- 600 किलोमीटर घाघरा की लंबाई
तराई में बाढ़
तराई के जिलों तथा घाघरा, सरयू शारदा और रापी जैसी नदियों के किनारे बसे जिलों में बाढ़ से तबाही हर साल होती है। बहराइच, लखीमपुर, बाराबंकी, बलरामपुर तथा सीतापुर जैसे बाढ़ प्रभावित जिलों में नदियों की जल संग्रहण क्षमता कम हो चुकी है और गाद तथा बालू से नदियों की गहराई कम हो रही है।
- तीन से पांच मीटर हुआ करता था राप्ती नदी का डिस्चार्ज दो दशक पहले।
- 200 से 350 सेंटीमीटर पहुंच गई है नदी की गहराई वर्तमान में।
- सरयू नदी में गाद की सफाई कभी नहीं हुई।
- बालू खनन से सरयू नदी को पहुंचा है नुकसान।
- लगातार खनन से उथली हो गई है सरयू नदी की धारा।
हिमाचल प्रदेश: क्या हैं बाढ़ और भूस्खलन के कारण?
हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और बाढ़ का बड़ा कारण पहाड़ों की कटिंग, नदियों का अवैध खनन और पेड़ों का कटान है। विशेषज्ञों का मानना है कि नदियों में अंधाधुंध खनन और जंगलों में अवैध कटान ने जोखिम और बढ़ाया है। वैज्ञानिक अध्ययनों में नदियों व खड्डों के खनन से बाढ़ का खतरा बढ़ने की पुष्टि हुई है। इससे ढलानों की स्थिरता और पुल-सड़क की संरचना प्रभावित हो रही है।
पेड़ों के अवैध कटान का प्रभाव
पेड़ों की जड़ें ढलानों को थामती हैं। जब हरित आवरण हटता है तो जमीन फिसलने लगती है। हिमाचल में हरे पेड़ों के कटान पर रोक है, फिर भी अवैध कटान हो रहा है। यानी हरे पेड़ों के कटान पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है।
अवैध खनन पर अंकुश के लिए सख्त निगरानी
उद्योग विभाग ने अप्रैल–जुलाई 2025 के बीच अवैध खनन के 895 मामले दर्ज कर 44.31 लाख रुपये का जुर्माना किया। दर्जनों वाहन व खनन करने में लगी मशीनें जब्त कीं। उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने बताया कि अवैध खनन रोकने के लिए लगातार निगरानी की जा रही है। उन्होंने कहा कि अवैध खनन और पेड़ों का कटान भूस्खलन और बाढ़ का कारण हैं।
दिल्ली: आधी रह गई जल धारण क्षमता
- सितंबर 1978 में हरियाणा के यमुना नगर स्थित हथिनी कुंड से आठ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था, उस समय दिल्ली में यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर पहुंचा गया था। वहीं, जुलाई, 2023 में मात्र 3.59 क्यूसेक पानी छोड़े जाने से जलस्तर 208.66 मीटर और 2025 में 3.29 क्यूसेक पानी छोड़ने से जलस्तर 204.88 मीटर तक पहुंच गया।
- 1978 की तुलना में यमुना की जल धारण क्षमता मात्र 50 प्रतिशत रह गई है।
- दिल्ली में यमुना की कभी भी सफाई नहीं हुई है।
पंजाब: अवैध खनन से बढ़ा बाढ़ का प्रकोप
1. सतलुज
सतलुज नदी का बैड 2.30 लाख क्यूसेक से लेकर 3.5 लाख क्यूसेक तक है। यानी जब नदी पहाड़ों से उतर कर मैदान में आती है तो यह दो लाख क्यूसेक पानी को ले जा सकती है लेकिन ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है और कुछ और नाले, गड्ढे या बरसाती नाले आदि इसमें शामिल होती हैं तो हरिके हैडवर्क्स तक पहुंचकर इसकी क्षमता 3.5 लाख क्यूसेक हो जाती है क्योंकि यहीं पर ब्यास नदी इसमें आ मिलती है।
2. ब्यास
ब्यास नदी के क्षेत्र को भी कंजर्वेशन ऑफ फारेस्ट घोषित किया हुआ है। यहां नदी से डिसिल्टिंग की इजाजत भी केंद्र सरकार के प्रवेश पोर्टल पर अप्लाई करने के बाद मिलती है। लेकिन अक्सर इसे देने न देने को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच कशमकश बनी रहती है।
3. रावी
रावी नदी भी डेढ़ लाख क्यूसेक पानी को ले जा सकती है। चूंकि रावी नदी भारत पाकिस्तान के बीच है इसलिए वहां माइनिंग की अनुमति नहीं है। यह क्षेत्र तो बीएसएफ के कंट्रोल में आता है। रावी का पांच किलोमीटर एरिया ही पंजाब में ऐसा है, जहां नदियों से रेत निकाली जा सकती है। यहां अवैध रूप से खनन होता है।
इसका मामला हाई कोर्ट में भी चल रहा है। सेना भी कई बार कह चुकी है कि अवैध खनन सीमा पर बनी चौकियों के लिए खतरा है और ऐसा ही इस बार बाढ़ में साबित हुआ।
जम्मू- कश्मीर: किसने बिगाड़ा प्राकृतिक स्वरूप?
अतिक्रमण और अवैध खनन के कारण नदी-नालों का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ा है। यह भी बाढ़ का कारण बना है। जम्मू में अधिकांश जगहों पर नदी-नालों पर जो पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं, वहां बेतहाशा खनन जारी था। पर्यावरण के प्रतिकूल निर्माण के कारण जम्मू-कश्मीर हाईवे को नुकसान हुआ है।
जम्मू-कश्मीर में विगत कुछ वर्षों के दौरान सड़क, सुरंग और रेल नेटवर्क बिछाने के लिए पहाड़ और पेड़ काटे गए हैं। इससे कई जगह पहाड़ की पकड़ कमजोर हो गई और बारिश में वहां भूस्खलन हो जाता है। यही वजह है कि इस बार पहली वर्षा में ही भूस्खलन का संकट बना रहा।
(स्रोत: जागरण न्यूज नेटवर्क)
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