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    लिपुलेख दर्रे को लेकर क्यों हाय-तौबा मचा रहा नेपाल, जानें कैसे हुआ भारत से विवाद; क्या है वो संधि जिसे दोनों मानते हैं आधार?

    Updated: Fri, 22 Aug 2025 02:46 PM (IST)

    भारत ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने के फैसले पर नेपाल की आपत्ति को खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि इस क्षेत्र पर नेपाल का दावा न तो उचित है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। नेपाल ने लिपुलेख को अपना अभिन्न अंग बताया है।

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    2020 में नेपाल ने एक राजनीतिक मानचित्र जारी करके सीमा विवाद को जन्म दिया था

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत ने बुधवार को लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार फिर से शुरू करने के भारत और चीन के फैसले पर नेपाल की आपत्ति को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया और कहा कि इस क्षेत्र पर काठमांडू का दावा उचित नहीं है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है।

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    भारत और चीन मंगलवार को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) और दो अन्य व्यापारिक बिंदुओं के माध्यम से सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमत हुए है।

    नेपाली विदेश मंत्रालय ने बुधवार को लिपुलेख दर्रे के जरिए सीमा व्यापार फिर से शुरू करने के कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह क्षेत्र नेपाल का अभिन्न अंग है।

    कोविड के वक्त नेपाल ने विवाद को दिया जन्म

    2020 में, नेपाल ने एक राजनीतिक मानचित्र जारी करके सीमा विवाद को जन्म दिया था, जिसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को देश का हिस्सा दिखाया गया था। भारत ने इन दावों का कड़ा विरोध किया था।

    नेपाल विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लोक बहादुर छेत्री की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह सर्वविदित है कि नेपाल सरकार भारत सरकार से अनुरोध करती रही है कि वह इस क्षेत्र में सड़कों का निर्माण या विस्तार न करे और सीमा व्यापार जैसी किसी भी गतिविधि में शामिल न हो।

    इसमें आगे कहा गया है कि नेपाल सरकार ने चीन सरकार को पहले ही सूचित कर दिया है कि यह क्षेत्र नेपाली क्षेत्र में आता है।''

    नेपाल ने कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के क्षेत्र महाकाली नदी के पूर्व में स्थित हैं और ऐतिहासिक रूप से नेपाल का हिस्सा हैं। लिपुलेख नेपाल का अविभाज्य हिस्सा है और इन्हें नेपाल के आधिकारिक नक्शे और संविधान में शामिल किया गया है।

    क्या है लिपुलेख दर्रा?

    लिपुलेख दर्रा भारत, नेपाल और चीन की सीमा पर स्थित एक महत्वपूर्ण हिमालयी दर्रा है। यह उत्तराखंड (भारत) के पिथौरागढ़ जिले में, काली नदी घाटी के पास, लगभग 5,334 मीटर (17,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।

    यह दर्रा भारत को तिब्बत (चीन) से जोड़ता है और कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए एक पारंपरिक मार्ग है।

    लिपुलेख दर्रा कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों के लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह तिब्बत में पवित्र कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तक पहुंचने का एक प्रमुख रास्ता है।

    यह भारत, नेपाल और चीन के बीच त्रिपक्षीय सीमा बिंदु पर स्थित है, जिसके कारण यह भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। प्राचीन काल में यह भारत और तिब्बत के बीच व्यापार मार्ग के रूप में उपयोग होता था।

    1816 की सुगौली संधि में छिपी है विवाद की वजह

    अंग्रेजों और नेपाल के राजशाही शासन के बीच 1814-16 के बीच जंग हुई थी। सुगौली की संधि पर 2 दिसंबर, 1815 को ईस्ट इंडिया कंपनी (जो उस समय औपनिवेशिक भारत पर शासन कर रही थी) और नेपाल के बीच 1814 से 1816 तक चले एंग्लो-नेपाली युद्ध को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे। यह संधि 4 मार्च, 1816 को अनुमोदित होने के बाद ही प्रभावी हुई।

    इस संधि में काली नदी को भारत-नेपाल सीमा के रूप में निर्धारित किया गया था। नेपाल का दावा है कि काली नदी का उद्गम लिपुलेख दर्रे से होता है, इसलिए लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा (लगभग 370 वर्ग किमी) उसका हिस्सा है।

    इस संधि पर नेपाल की ओर से राजगुरु गजराज मिश्र और चंद्रशेखर उपाध्याय और ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रैडशॉ ने हस्ताक्षर किए हैं।

    संधि के चौथे बिंदु में कहा गया है कि नेपाल के राजा, उनके उत्तराधिकारी या उत्तराधिकारी काली नदी के पश्चिम के क्षेत्र और निवासियों पर दावा नहीं करेंगे।

    नेपाल का लिपुलेख दर्रे से कोई हित नहीं होगा: सुगौली संधि

    समझौते में कहा गया है, "नेपाल के राजा, उनके उत्तराधिकारियों या उत्तराधिकारियों का काली नदी के पश्चिम में किसी भी क्षेत्र पर कोई दावा नहीं होगा, न ही संबंधित देशों और निवासियों के साथ इस मामले में उनका कोई हित होगा।"

    सुगौली संधि के अनुच्छेद 5 के तहत, नेपाल के शासकों से काली नदी (महाकाली नदी या शारदा नदी) के उत्तर-पश्चिम में स्थित जमीन का कब्जा हासिल कर लिया गया था। बाद में काली नदी को ही भारत-नेपाल सीमा की तरह माना जाने लगा।

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