जागरण विशेष: 'जंगलराज विकास का सबसे बड़ा विरोधी, बिहार में अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करेंगे', बोले जेपी नड्डा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार चुनाव में राजग की सबसे बड़ी जीत का दावा किया है। उन्होंने कहा कि विकास के साथ 'जंगलराज' का भय भी एक कारण है। नड्डा ने राजद पर 'जंगलराज' के डीएनए का आरोप लगाया और राहुल गांधी के आरोपों को हताशा बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है और बंपर जीत दर्ज करेगी।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ खास बातचीत।
आशुतोष झा और नीलू रंजन, नई दिल्ली। बिहार में पहले चरण का मतदान खत्म हो गया है और बढ़े हुए वोट प्रतिशत को लेकर भाजपा में उत्साह है। समीक्षा शुरू हो गई है। ऐसे में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा अब तक की सबसे बड़ी जीत का दावा करते हैं और इसका कारण विकास के साथ-साथ जंगलराज के भय को भी बताते हैं।
दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक आशुतोष झा व सहायक संपादक नीलू रंजन की जेपी नड्डा से हुई विशेष बातचीत के पेश हैं प्रमुख अंश-
आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए बिहार विधानसभा का दूसरा चुनाव है। 2020 और 2025 में क्या अंतर देख रहे हैं?
2020 में माहौल हमारे पक्ष में था और यह इस बार उससे भी ज्यादा हमारे पक्ष में दिख रहा है। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि 2020 कोरोना काल था। हमारे कई नेता भी कोरोना की चपेट में आ गए थे। कोरोना का डर था और वोटर टर्नआउट पर भी बहुत असर पड़ा था। इस बार एक तरह से लोगों ने मन बना लिया है कि हमें राजग सरकार चाहिए। इसमें विकास, स्थिरता, जंगलराज से मुक्ति जैसे विकास के आयाम दिख रहे हैं। उस समय शुरू हुए काम पूरे हो चुके हैं। साथ ही लोगों के मन में विकसित बिहार देखने की आकांक्षा है।
यह विरोधाभाष क्यों हैं कि आप विकास से चुनाव जीतने की बात करते हैं फिर जंगलराज का भय भी दिखाते हैं?
विरोधाभाष तो कुछ भी नहीं है। दरअसल, विकास का सबसे बड़ा विरोधी जंगलराज है। इसीलिए जंगलराज को दिखाना और जनता को बताना जरूरी है। विकास के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट जंगलराज है। विकसित बिहार के लिए जंगलराज के बारे में बताना हमेशा जरूरी होगा।
लेकिन जंगलराज को वंशानुगत बताना और पिता के कार्यकाल को पुत्र से जोड़ देना कितना सही है?
वंशवाद के कारण से नहीं, राजद के डीएनए में जंगलराज है। ये पले—बढ़े सब उसी तरीके से हैं। इनके कैरेक्टर व कल्चर में जंगलराज विराजमान है। क्या तेजस्वी ने लालू के समय में जंगलराज के लिए बिहार की जनता से कभी माफी मांगी। कभी कहा कि शिल्पी गौतम मामले में सरकार ने गलती की। कभी उन्होंने कहा कि बीबी विश्वास के साथ बहुत अन्याय हुआ। अभी-अभी एक बच्चे से कहलवाया गया कि तेजस्वी आएंगे तो हम कट्टा लेकर घूमेंगे और मंच पर सभी हंस रहे हैं। दूर-दर तक सत्ता में आना नहीं है, लेकिन दूनलिया घुमाएंगे, कट्टा चलाएंगे...ये गाने उनकी रैलियों में बजते हैं। अपने समर्थकों पर इनका कंट्रोल भी नहीं है, इसीलिए ये जंगलराज से बाहर आ ही नहीं सकते। जब अपहरण होता था तो फिरौती की रकम मंत्रियों के बंगले पर तय होती थी, मुख्यमंत्री भी शामिल होते थे। गाड़ी चोरी हुई तो गाड़ी मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर मिली।
प्रशांत किशोर भाजपा पर अपने उम्मीदवारों को खरीदने का आरोप लगा रहे हैं। वो कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?
लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी होती है। चुनाव लड़ाना एक अलग चीज है और चुनाव लड़ना एक अलग चीज होती है। एक कमेंटेटर फील्ड का प्लेयर नहीं बन सकता। आज वे नान स्टार्टर की स्थिति में आ गए हैं। इसीलिए लोग उनको छोड़कर जा रहे हैं। जो गाड़ी पहले ही पंचर हो गई, उसमें रुककर करेंगे क्या?
यानी खाता नहीं खुलेगा?
जितने उनके इंटरनेट मीडिया पर फालोअर्स हैं, उतने वोट भी नहीं आएंगे।
बिहार में पहले चरण के मतदान के पहले राहुल गांधी ने एक बार फिर वोट चोरी का बड़ा आरोप लगाया है। आखिर राहुल गांधी ऐसा क्यों कर रहे हैं और यह कब तक चलेगा?
राहुल गांधी को साफ समझ में आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वो पार नहीं पा सकते। हताशा और निराशा है। मोदी का विरोध-करते करते वह देश का विरोध करने लगे हैं। उनका बड़ा डिजाइन है कि देश को बदनाम करो। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, आपरेशन सिंदूर पर प्रश्न खड़े किए गए। सेना का मनोबल गिराने का हमेशा प्रयास किया गया। विदेश गए तो वहां से भारत के प्रजातंत्र पर प्रश्न खड़े किए। संस्थाओ पर सवाल खड़े किए। यहां तक कि लोकतंत्र की बहाली के लिए मदद तक मांगी और इसी क्रम में संवैधानिक संस्थाओं पर चोट पहुंचाई। शहजादे ऐसी राजनीति करते हैं जो हम कॉलेज में किया करते थे। यानी वह छात्र राजनीति से बाहर नहीं आ पाए। तीन-चार बार वोट चोरी का मुद्दा उठाया, आंकड़े अलग-अलग थे। सोच लीजिये कितने सीरियस हैं? तेजस्वी के दो जगह वोट मिले, प्रशांत किशोर के दो जगह वोट मिले। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा के दो वोटर आइकार्ड है। राहुल क्या कहना चाह रहे हैं कि ये सब चुनाव में दो-दो बार वोट डालते हैं। जितने भी आरोप लगाए, एक भी शपथपत्र दाखिल नहीं किया और न ही चुनाव आयोग को ज्ञापन दिया। आप हिट एंड रन करके चले जाते हैं। इनका उद्देश्य संवैधानिक संस्थानों की गरिमा को गिराना है।
इस बार सीधे-सीधे बोला है कि हरियाणा में नायब सिंह सैनी की सरकार जनता के बहुमत से नहीं, बल्कि वोट चोरी करके बनी है। लेकिन सैनी या भाजपा कुछ नहीं कर रही है?
अभी बिहार के चुनाव में लगे हुए हैं, उसके बाद करेंगे। उनका उद्देश्य है कि चुनी हुई सरकार के प्रति एक प्रश्न चिह्न खड़ा करो। ये देशद्रोही वाला काम है। दूसरा, जो बच्चा पढ़ने में अच्छा नहीं होता, वह शुरू से ही शिक्षक को गाली देने लगता है।
आप मानते हैं कि भाजपा बिहार में एक सर्वस्वीकार्य चेहरा खड़ा नहीं कर पाई है?
भाजपा एक कैडर आधारित पार्टी है। योजनानुसार कई बार हम चेहरा देते हैं और कई बार नहीं देते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव में लीडरशीप नहीं दी थी।
लेकिन वहां आपके पास चेहरा था?
यहां भी चेहरे तो कई हैं हमारे पास। जिस दिन हम घोषणा करते हैं, तो छठी लाइन से पहली लाइन में आ जाते हैं।
बिहार चुनाव की घोषणा के ठीक पहले महिलाओं को 10-10 हजार रुपये देने की घोषणा नैतिक रूप से कितना सही है?
पहली बात तो यह कि यह फ्रीबीज नहीं था। कांग्रेस ने कर्नाटक और हिमाचल में जो किया, वह फ्रीबीज है। लेकिन नीतीश कुमार की योजना रोजगार, सशक्तीकरण के लिए है। जिनको 10 हजार रुपये मिले उनमें किसी ने ओवन, सिलाई मशीन खरीदी और किसी ने बकरी। उनका सशक्तीकरण हुआ। बाद में स्वरोजगार के लिए दो लाख रूपये देंगे। यह उनकी जीविका बदलने के लिए होगा। किसान सम्मान निधि में तीन हजार रुपये बढ़ाया ताकि किसान खेती से जुड़ी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा कर उत्पादन बढ़ सकें।
चुनाव के बाद बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी कौन होने जा रही है?
भाजपा और जदयू मिलकर सरकार में तो आएंगे ही, दोनों की सीटें बराबर—बराबर रहेंगी।
पहली बार बराबर सीटों पर लड़ रहे हैं, लेकिन स्ट्राइक रेट हमेशा भाजपा का अच्छा रहा है?
इस बार जदयू का भी स्ट्राइक रेट अच्छा रहेगा।
बंगाल में ममता बनर्जी बहुत उग्रता से एसआइआर का विरोध कर रही हैं। वहीं भाजपा कार्यकर्ताओं की ओर से आरोप लगता है कि उनको संरक्षण नहीं मिलता है। कैसे मुकाबला करेंगे?
संरक्षण एक लेवल तक ही मिल सकता है। कानून व्यवस्था राज्य सरकार के पास है। जिस तरह की तकलीफें वे देते हैं, हमें मालूम है। हमारे कार्यकर्ता काफी हिम्मत के साथ जुटे हैं। हम उनके केस भी लड़ रहे हैं। न्याय भी दिला रहे हैं। लेकिन हम हर जगह पहुंच सकें, संभव नहीं है। मेरे ही खिलाफ पार्टी आफिस के बाहर पत्थरबाजी हो जाती है तो साधारण कार्यकर्ताओं के साथ क्या होता होगा यह समझ सकता हूं। लेकिन संविधान के दायरे में जितनी हद तक हम मदद कर सकते हैं, कर रहे हैं। हम केरल में ऐसी लड़ाई लड़ चुके हैं और बंगाल के लिए भी तैयार हैं।
एसआइआर को लेकर बांग्लादेश से आए हिंदुओं में भी चिंता है। कहीं उनका नाम भी नहीं कट जाए?
बहुत स्पष्ट है कि जो भी प्रताड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई हैं, उनको भारत में जगह मिलेगी। उनकी जगह यहीं है। सीएए में यह स्पष्ट है। उसके दायरे में रहकर काम करेंगे। जो लोग कानूनन इसके दायरे में नहीं आते हैं, उनके नाम हटेंगे।
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष और संगठन का चुनाव नहीं हो पाया है। क्या कारण है?
कोई कारण नहीं है। बिहार चुनाव के बाद यह काम हो जाएगा।
बिहार में नेतृत्व को लेकर भाजपा लंबे समय से द्वंद्व में रही है। इस बार भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने को लेकर यह देखने को मिला। आखिरकार यह द्वंद्व क्यों है?
कोई द्वंद्व नहीं है। नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हीं के नेतृत्व में आगे बढ़ेंगे। आप इतना मानकर चलिए कि इस बार हमारी बंपर जीत होने जा रही है। अब तक के सबसे बड़े जनादेश के साथ राजग की सरकार बनेगी।

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