Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अगर चीफ जस्टिस को उपलब्ध सामग्री पर जज का कदाचार नजर आता है तो वे हटाने की सिफारिश कर सकते हैं

    Updated: Wed, 30 Jul 2025 07:42 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में नकदी मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई की भूमिका पर टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि सीजेआई केवल सूचना का आदान-प्रदान करने वाला पोस्ट ऑफिस नहीं है बल्कि न्यायपालिका के मुखिया के रूप में राष्ट्र के प्रति भी कर्तव्यबद्ध हैं। जस्टिस वर्मा द्वारा आंतरिक कमेटी की प्रक्रिया को चुनौती देने पर कोर्ट ने सवाल उठाए।

    Hero Image
    जज के घर नकदी मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। सरकारी आवास में नगदी मिलने के आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की ओर से बुधवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) की उन्हें हटाने को लेकर उठाई गई आपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। शीर्ष अदालत ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से कहा कि चीफ जस्टिस कोई पोस्ट आफिस नहीं हैं कि वह सिर्फ सूचना का आदान प्रदान करें। न्यायपालिका के मुखिया होने के नाते उनका राष्ट्र के प्रति भी कर्तव्य है। अगर उन्हें उपलब्ध सामग्री के आधार पर जज का कदाचार नजर आता है तो वे इसकी सूचना दे सकते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उन्होंने इसकी सूचना दी। वह निश्चित तौर पर पद से हटाने की सिफारिश कर सकते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि सीजेआई की सिफारिश संसद पर बाध्यकारी नहीं है। संसद स्वतंत्र है और वह अपना काम करेगी आगे कार्यवाही करनी है कि नहीं ये राजनीतिक निर्णय है, लेकिन न्यायपालिका को समाज को संदेश देना है कि प्रक्रिया का पालन हुआ है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा के वकील से और भी कई कड़े सवाल किए। कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की आंतरिक कमेटी की प्रक्रिया और उन्हें हटाने की सीजेआइ द्वारा की गई सिफारिश को चुनौती देने वाली याचिका पर बहस सुन कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

    मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने जस्टिस वर्मा द्वारा आंतरिक कमेटी की रिपोर्ट और प्रक्रिया को देरी से चुनौती देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि आपका आचरण विश्वास पैदा करने वाला नहीं है क्योंकि आप पहले कमेटी के सामने पेश हुए और फिर उसकी रिपोर्ट आपके अनुकूल न आने पर आपने उसे चुनौती दी। कोर्ट ने सवाल किया कि अगर आपको आंतरिक जांच प्रक्रिया पर आपत्ति थी और आप उसे असंवैधानिक मान रहे थे तो आपने उसे पहले चुनौती क्यों नहीं दी।

    जब कपिल सिब्बल ने कहा कि वह कमेटी के सामने इस लिए पेश हुए क्योंकि उन्हें लगा कि कमेटी पता लगा लेगी कि पैसा किसका है। लेकिन जस्टिस दत्ता ने कहा कि कमेटी के विचार का यह दायरा ही नहीं था कि वह पता लगाती कि पैसा किसका है। कोर्ट ने का कि आप चाहते हैं कि मामले पर ज्यादा चर्चा न हो तो संसद में मामला है उसे ही तय करने दीजिए हम कमेटी की रिपोर्ट पर यहां चर्चा नहीं करेंगे आपको जो संवैधानिक दलीलें देनी हैं वो दीजिए।

    कोर्ट ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट सिर्फ प्रारंभिक रिपोर्ट है उसकी सिफारिश भी बाध्यकारी नहीं है। महाभियोग के प्रस्ताव पर संसद स्वतंत्र होकर निर्णय लेगी। अगर प्रस्ताव आता है तो वहां फिर से कानून के तहत कमेटी गठित होगी जो आरोपों की जांच करेगी। सिब्बल ने कहा कि यही उनका कहना है कि जब यह प्रारंभिक रिपोर्ट है तो इसमें उन्हें हटाने की सिफारिश कैसे की जा सकती है और उस सिफारिश के आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग या पद से हटाने की प्रक्रिया कैसे चल सकती है।

    हाई कोर्ट के जज को संविधान के अनुच्छेद 124 के मुताबिक सिर्फ संसद में महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है। सीजेआइ भी इस रिपोर्ट के आधार पर उन्हें हटाने की सिफारिश नहीं कर सकते ये संविधान सम्मत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आंतरिक जांच कमेटी और आंतरिक जांच प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1999 में अपनाई गई प्रक्रिया है। जिसे सुप्रीम कोर्ट तीन फैसलों में सही ठहरा चुका है अगर उन्हें देखें तो ये केस यहीं खत्म हो जाएगा। पीठ ने कहा कि पिछले करीब 30 सालों से आंतरिक जांच प्रक्रिया लागू है। जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में सही ठहराए जाने के बाद ये देश का कानून बन गई है।

    अनुच्छेद 141 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून हो जाता है।जस्टिस दत्ता ने कहा कि जस्टिस वर्मा एक जज हैं उन्होंने संविधान और कानून के पालन की शपथ ली है तो वे कानून को चुनौती कैसे दे सकते हैं। हम सभी न्यायाधीशों को मालूम है कि जज को कैसे आचरण करना चाहिए। हालांकि सिब्बल ने अपनी दलीलें जारी रखते हुए कहा कि वह पहले कोर्ट कैसे आते क्योंकि मामले की शुरुआत दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की सीजेआइ को भेजी गई रिपोर्ट से होती है और उसके बाद घटना के वीडियो और फोटो वेबसाइट पर डाल दिये गए जिससे उनकी प्रतिष्ठा खराब हो गई थी।

    कोर्ट में आज एक और याचिका थी जिसमे वकील मैथ्यू जे नेदुंपरा ने दिल्ली पुलिस को जस्टिस वर्मा के घर नगदी मिलने के मामले में एफआइआर दर्ज कर जांच करने का निर्देश मांगा था लेकिन कोर्ट ने नेदुंपरा से सवाल किया कि उन्होंने पुलिस को कब शिकायत दी जिस पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की क्योंकि उन्होंने याचिका में पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसने शिकायत पर कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा कोर्ट ने नेदुंपरा से यह भी कहा कि वह हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को बताएं कि उन्हें आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट कहां से प्राप्त हुई।

    मालूम हो कि जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च को आग लग गई थी और आग बुझाने के दौरान आवास में स्थिति एक स्टोर रूप से भारी मात्रा में जले नोटों की गड्डियां मिली थीं। इस मामले में तत्कालीन सीजेआइ संजीव खन्ना ने तीन न्यायाधीशों की आंतरिक जांच कमेटी बनाई थी। कमेटी ने जांच के बाद दी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को गंभीर कदाचार का दोषी पाया और कमेटी ने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा पद पर रहने लायक नहीं हैं। जस्टिस वर्मा ने कमेटी की सिफारिश को चुनौती दी है।