Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'पैनल ने सही से काम किया, उनका आचरण...', जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को खारिज करते हुए SC ने क्या कहा?

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 08:38 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सरकारी आवास में नगदी मिलने के आरोपों के चलते आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई है। कोर्ट ने कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास योग्य नहीं है। कमेटी ने उन्हें कदाचार का दोषी पाया था।

    Hero Image
    जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया।(फोटो सोर्स: जागरण ग्राफिक्स)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। सरकारी आवास में भारी मात्रा में नगदी मिलने के आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को आज सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज कर दी है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आंतरिक जांच कमेटी ने जस्टिस वर्मा को गंभीर कदाचार का दोषी पाया था और अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने लायक नहीं हैं। इसके अलावा जस्टिस वर्मा ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) संजीव खन्ना द्वारा उन्हें पद से हटाने के लिए की गई सिफारिश को भी चुनौती दी थी।

    कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए क्या कहा?

    शीर्ष अदालत ने जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनका आचरण विश्वास नहीं जगाता जिसके लिए उनकी याचिका पर विचार किया जाए। साथ ही कहा कि आंतरिक जांच कमेटी की प्रक्रिया में कोई कानूनी खामी नहीं है प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी थी और सीजेआइ द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश करने में भी कुछ गलत नहीं है। सीजेआइ न्यायपालिका के मुखिया हैं और न्याय व्यवस्था में शुचिता बनाए रखने के बारे में उनका देश के लोगों के प्रति भी कर्तव्य है।

    सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद जस्टिस वर्मा के लिए राहत के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं। उन्हें पद से हटाने के लिए उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव संसद में शुरू हो चुका है।

    वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका या आंतरिक जांच कमेटी की कार्यवाही का संसद में प्रस्तावित महाभियोग कार्यवाही से कोई लेना देना नहीं है हालांकि अगर सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस वर्मा को राहत मिल जाती और कोर्ट जांच कमेटी की रिपोर्ट खारिज कर देता तो शायद जस्टिस वर्मा के लिए संसद में अपना बचाव करना आसान हो जाता और वह कोर्ट के आदेश का वहां हवाला दे सकते थे। लेकिन अब उनकी राह और कठिन हो गई है।

    CJI ने बनाई थी आतंरिक जांच कमेटी

    जस्टिस वर्मा जब दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे तब उनके सरकारी आवास में आग लग गई थी जिसे बुझाने पहुंचे अग्निशमन दल और पुलिस को उनके आवास में स्थित एक स्टोर रूप से भारी मात्रा में जले हुए नोटों की गड्डियां मिलीं थी। जिसके बाद तत्कालीन सीजेआइ संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की एक आंतरिक जांच कमेटी बनाई थी।

    आंतरिक जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को कदाचार का दोषी पाया था और कहा था कि वह पद पर बने रहने लायक नहीं हैं।

    जस्टिस खन्ना ने आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट आने पर जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने को कहा था लेकिन जब उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया तो जस्टिसस खन्ना ने आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट अपनी संस्तुतिक के साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी थी। जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाया था।

    जस्टिस वर्मा से फिलहाल न्यायिक कामकाज वापस लिया जा चुका है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने गुरुवार को जस्टिस वर्मा की ओर से दी गईं सारी दलीलें ठुकराते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।

    कोर्ट ने कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास नहीं जगाता कि उनकी याचिका पर विचार किया जाए क्योंकि उन्होंने आंतरिक जांच प्रक्रिया की कार्यवाही को पहले चुनौती नहीं दी बल्कि उसमें भाग लिया और जब कमेटी की रिपोर्ट आ गई और सीजेआइ ने उस पर कार्रवाई की उसके बाद उन्होंने उसे कोर्ट में चुनौती दी।

    पीठ ने हालांकि फैसले में माना कि जले हुए नोटों की गड्डियों की फोटो और वीडियो वेबसाइट पर अपलोड करना आंतरिक जांच प्रक्रिया में जरूरी नहीं थे। लेकिन साथ ही कहा कि जब ये वेबसाइट पर अपलोड किये गए उस वक्त जस्टिस वर्मा ने आपत्ति नहीं उठाई थी इसलिए अब आपत्ति करने का कोई मतलब नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आंतरिक जांच प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी थी और सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व फैसलों में इसे सही ठहरा चुका है। कोर्ट ने कहा कि आंतरिक जांच प्रक्रिया और सीजेआइ द्वारा उस पर आगे कार्यवाही करने में तय कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ है।

    सीजेआइ न्यायपालिका के मुखिया उनका देश की जनता के प्रति भी कर्तव्य

    सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआइ की जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से की गई सिफारिश में किसी तरह की कानूनी खामी से इनकार किया है। कोर्ट ने कहा कि सीजेआइ न्यायपालिका के मुखिया हैं और न्याय व्यवस्था की शुचिता बनाए रखने में उनका देश की जनता के प्रति भी कर्तव्य है। ये सोचना अनुचित होगा कि मौजूदा घटना होने पर सीजेआइ, संसद के कार्रवाई करने का इंतजार करते।

    पीठ ने कहा कि ये संसद पर निर्भर करता है कि वह कोई कार्रवाई करे या न करे लेकिन सीजेआई के पास कार्रवाई का नैतिक और कानूनी अधिकार है। वे संस्था की विश्वस्नीयता और अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं।

    संस्था की विश्वस्नीयता पर कोई प्रतिकुल प्रभाव मंहगा पड़ सकता है। ऐसे में अगर सीजेआइ ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजते हुए जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की है तो वो गलत नहीं है और उसे गैरकानूनी कहते हुए आपत्ति नहीं उठाई जा सकती।

    कोर्ट ने कहा कि इन हाउस प्रक्रिया को संविधान में दिए गए शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि वैसे भी आंतरिक जांच का या सीजेआइ द्वारा की गई संस्तुति का संसद में होने वाली कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

    यह भी पढ़ें- 'CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं', जस्टिस वर्मा मामले में कपिल सिब्बल की दलील पर SC नाराज