कच्चाथीवू द्वीप चर्चा में क्यों, भारत का था तो फिर श्रीलंका को कैसे मिला? यहां पढ़ें इससे जुड़े सभी सवालों के जवाब
kachchatheevu island controversy पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा के साथ ही कच्चाथीवू द्वीप एक बार फिर सुर्खियों में है। कच्चाथीवू द्वीप विवाद क्या है यह द्वीप कहां हैं कच्चाथीवू द्वीप जब भारत के पास था तो फिर श्रीलंका के पास कैसे पहुंचा और कच्चाथीवू द्वीप पर कैसे छिड़ी राजनीतिक बहस? कच्चाथीवू द्वीप के बारे में सभी सवालों के जवाब यहां पढ़ें...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया श्रीलंका यात्रा के दौरान कच्चाथीवू द्वीप एक बार फिर चर्चा में आ गया। पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा से पहले विपक्षी दल कांग्रेस और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके समेत कई पार्टियों ने सरकार पर श्रीलंकाई सरकार संग इस मुद्दे को उठाने और इसे सुलझाने के लिए दबाव बनाया था।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा था कि कच्चाथीवू द्वीप तमिलनाडु के मछुआरों के लिए जीवन और मौत का सवाल बन गया है, इसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पीएम मोदी के श्रीलंका के दौरे से लौट आने के बाद पर भी यह चर्चा में है।
कच्चाथीवू द्वीप कहां है और इस पर क्या विवाद है? कच्चाथीवू द्वीप के बारे में सभी सवालों के जवाब यहां हम आपको बताते हैं...
कच्चाथीवू द्वीप क्या है?
कच्चाथीवू द्वीप, भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ में फैला एक निर्जन द्वीप है। यह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है। रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में कच्चाथीवू द्वीप भारत से 22 किमी दूर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर है। द्वीप पर सेंट एंथोनी चर्च है। 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था कच्चाथीवू द्वीप।
बता दें कि भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच खासा बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस एरिया को पाक स्ट्रेट कहा जाता है। 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर रॉबर्ट पाक हुआ करते थे। इस समुद्री एरिया का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया है। पाक स्ट्रेट में कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से ही एक कच्चाथीवू द्वीप भी है।
जब भारत का था कच्चाथीवू द्वीप तो फिर श्रीलंका का कैसे हुआ?
दरअसल, 17वीं सदी की बात है। रघुनाथ देव किलावन ने खुद को रामनाद साम्राज्य का सम्राट घोषित कर दिया था। ऐसे में कच्चाथीवू द्वीप पर उनका राज हो गया था। समुद्र के एकदम बीचो-बीच बने कच्चाथीवू द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों ही देशों के मछुआरे विश्राम के लिए आते और अपने जाल भी यहीं सुखाया करते थे। ब्रिटिश शासनकाल में रामनाद साम्राज्य मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया था।
अंग्रेजों ने 1902 में इस कच्चाथीवू द्वीप की कमान रामनाद साम्राज्य के राजा को दिया। फिर रामनाद साम्राज्य के राजा यहां के लोगों से मालगुजारी वसूलने लगे। इसके बदले मोटा पैसा अंग्रेंजी सरकार को मिलता था।
साल 1913 की बात है। ब्रिटिश भारत सरकार के सचिव और रामनाद साम्राज्य के राजा के बीच एक समझौता हुआ। इसके मुताबिक, कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका (तब के सीलोन) के बजाय भारत का हिस्सा बताया गया था।
1921 में पहली बार कच्चाथीवू द्वीप को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच विवाद हुआ था। उन दिनों दोनों देशों पर अंग्रेजों का शासन था। इस वजह से विवाद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। समय के साथ यह विवाद बढ़ता चला गया। 1974 का कच्चाथीवू द्वीप भारत का हिस्सा तो था। हालांकि, दोनों देश इस पर अपना-अपना दावा जताते रहते थे।
इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को क्यों सौंपा था द्वीप?
फिर साल 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समुद्री समझौता हुआ। इस समझौते के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था।
इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि इंदिरा गांधी ने भारत का दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने और पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते बनाए रखने की स्ट्रेटजी के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दिया था।
उस वक्त तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था। उस वक्त तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर इस फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि यह द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद साम्राज्य की जमींदारी का हिस्सा है। इसे श्रीलंका को नहीं सौंपना चाहिए।
कच्चाथीवू द्वीप क्यों है विवाद?
साल 1974 में हुए भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते के तहत भारत ने श्रीलंका को कच्चाथीवू द्वीप सौंपा जरूर था, लेकिन दोनों देशों की ओर से इस समझौते को अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया जाता रहा है। हालांकि, समझौते के बाद भारतीय मछुआरों को वहां जाल सुखाने और आराम करने की इजाजत थी।
कुछ ही सालों बाद श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों को द्वीप पर आराम करने, जाल सुखाने और वहां बने कैथोलिक चर्च में जाकर प्रार्थना करने पर पाबंदी लगा दी है। साल 2009 के बाद से श्रीलंकाई नौसेना वहां जाने वाले भारतीय मछुआरों को अरेस्ट करने लगी। इसके बाद यह द्वीप लगातार दोनों देशों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है।
इसके बाद से तमिलनाडु के मछुआरे इस एरिया में मछली पकड़ने के अपने पारंपरिक अधिकारों की मांग करते आ रहे हैं, क्योंकि यह श्रीलंका को सौंपा जा चुका है, इसलिए भारतीय मछुआरों के वहां जाने पर कार्रवाई होती है। उनकी नाव और जाल जब्त कर लिए जाते हैं। इसलिए वे राज्य सरकार पर बार-बार कच्चाथीवू द्वीप को वापस लेने की मांग करते हैं।
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कच्चाथीवू द्वीप पर कब क्या हुआ?
- 1902 से पहले रामनाथपुरम या रामनाद साम्राज्य का कच्चाथीवू द्वीप पर शासन था।
- 1902 में अंग्रेजों ने कच्चाथीवू द्वीप को कब्जे में लिया। फिर रामनाथपुरम साम्राज्य को पट्टे पर दे दिया।
- 1913 में इसको लेकर भारत सरकार के सचिव और रामनाथपुरम के राजा के बीच एक और समझौता हुआ।
- 1974 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उस वक्त की श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ समझौता कर यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया।
- 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से इस कच्चाथीवू द्वीप को वापस लेने की मांग की।
- 2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन सीएम जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कच्चाथीवू द्वीप समझौता रद्द करने की मांग की।
- 2023 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कच्चाथीवू द्वीप को वापस लेने की मांग की है।
कच्चाथीवू द्वीप पर कैसे छिड़ी राजनीतिक बहस?
बहुत पुराने कच्चाथीवू द्वीप का विवाद पिछले साल तब चर्चा में आया, जब पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने संदेश में इस पर सवाल उठाया था कि कैसे कांग्रेस ने 1970 के दशक में कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। तब से इस पर राजनीतिक बहस छिड़ गई।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
-भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमाओं को स्पष्ट करने के लिए समझौता किया गया था। -तब इंदिरा गांधी ने दक्षिण एशिया में भारत का प्रभाव बढ़ाने और पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते बनाए रखने की स्ट्रेटजी के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दिया था।
- नहीं, इस फैसले के लिए भारतीय संसद की कोई औपचारिक मंजूरी नहीं ली गई थी, जो एक संवैधानिक और राजनीतिक विवाद का कारण बना और अब भी बना हुआ है। -एक समुद्री समझौतेके तहत भारत ने कच्चाथीवू द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया और उसे श्रीलंका को संपत्ति स्थानांतरण के रूप में सौंप दिया। - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 और 3 के मुताबिक, अगर भारत की भूमि को किसी अन्य देश को सौंपना है, तो संसदीय कानून की आवश्यकता होती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। - सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: इस फैसले को तमिलनाडु के नेताओं- जयललिता
- मछुआरों की आजीविका से जुड़ा है। -क्षेत्रीय अस्मिता और जनभावनाओं से जुड़ा है। -केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का माध्यम है। -कांग्रेस के खिलाफ एक ठोस राजनीतिक हथियार है। -चुनावी समय में वोटरों को प्रभावित करने का एक प्रभावी मुद्दा है।
-1974 और 1976 के द्विपक्षीय समझौते में भारत ने स्वेच्छा से कच्चाथीवू द्वीप पर अपना दावा छोड़ा था। ये समझौते अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वैध माने जाते हैं, और भारत ने उन्हें कभी औपचारिक रूप से रद्द नहीं किया। - हां, भारत द्वीप को वापस ले सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, संवैधानिक प्रक्रिया और श्रीलंका की सहमति के बिना यह कदम जोखिम भरा हो सकता है।
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