जानिए दुनिया में सबसे पहले किस बीमारी का खोजा गया था टीका, कितना था कारगर
चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी जिसके टीके की खोज हुई। 1796 में अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया। बाद में फ्रांस के सूक्ष्मजीव विज्ञानी लुई पाश्चर ने इनकी संकल्पना को आगे बढ़ाते हुए इसे नया आयाम दिया।

नई दिल्ली। सदियों से किए जा रहे अध्ययन और शोध बताते हैं कि किसी भी संक्रामक बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण बहुत ही प्रभावी और कारगर तरीका है। व्यापक स्तर पर लोगों की प्रतिरक्षा को मजबूत करके ही दुनिया में चेचक, पोलियो और टिटनस जैसे रोगों से निजात पाई है।
पहला रोग जिसका बना टीका
चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी जिसके टीके की खोज हुई। 1796 में अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया। बाद में फ्रांस के सूक्ष्मजीव विज्ञानी लुई पाश्चर ने इनकी संकल्पना को आगे बढ़ाते हुए इसे नया आयाम दिया। लुई ने ही वैक्सीन नाम दिया। किसी जमाने में चेचक बहुत ही संक्रामक और गंभीर बीमारी हुआ करती थी। संक्रमित वयस्क में 20 से 60 फीसद मृत्युदर थी जबकि संक्रमित बच्चों की मृत्यु दर 80 फीसद थी। चेचक के पूर्ण खात्मे तक बीसवीं सदी में 30 से 50 करोड़ लोग मारे जा चुके थे।
ऐसे काम करती है वैक्सीन
कृत्रिम तरीके से किसी इंसान की प्रतिरक्षी प्रणाली को सक्रिय करने का सबसे कारगर तरीका है। ज्यादातर वैक्सीन को लोगों को पहले ही दे दिया जाता है जिससे भविष्य में उन्हें उससे संबंधित रोग से प्रतिरक्षा हासिल हो सके। हालांकि कुछ वैक्सीन लोगों को रोगों के संक्रमण के दौर में दी जाती है। ज्यादातर वैक्सीन इंजेक्शन के रूप में दी जाती है, क्योंकि ये आंतों द्वारा आसानी से अवशोषित कर ली जाती हैं। पोलियो, रोटा वायरस, टायफायड के कुछ प्रकार और कुछ कॉलरा वैक्सीन मुंह से पिलाई जाती हैं। इसकी वजह यह है कि इससे आंतों के निचले हिस्से की प्रतिरक्षा बहुत बढ़ जाती है।
प्रभावी भूमिका
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सभी आयु वर्गों में हर साल 20 से 30 लाख मौतें सिर्फ टीकाकरण के दम पर टाली जाती हैं। हर साल 15 लाख बच्चे किसी न किसी रोग की वजह से दम तोड़ देते हैं, इनकी असमय मौत को टीका तैयार करके रोका जा सकता है। हर साल पांच साल से कम आयु के बच्चों की होने वाली मौतों में 29 फीसद वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली होती हैं।
लाभ और लागत
वैक्सीन तैयार करने की लागत ऐसा निवेश है जिसका रिटर्न कई गुना अधिक होता है। अलग-अलग वैक्सीन की लागत और मुनाफे का अनुपात भिन्न होता है। डिप्थीरिया के वैक्सीन का यह अनुपात 1:27 है। खसरे के टीके का यह अनुपात 1:13.5 है। वैरीसेला का 1: 4.76 तो न्यूमोकॉकल के टीके के लिए यह आंकड़ा 1:1.1 है। यानी डिप्थीरिया के टीके को बनाने में एक रुपये खर्च होता है तो लोगों को स्वस्थ रखने का रिटर्न 27 रुपये है।
आर्थिक पहलू
अनुसंधान बताते हैं कि स्वस्थ लोग किसी भी देश के आर्थिक विकास में किसी बीमार व्यक्ति की तुलना में कहीं ज्यादा भागीदारी करते हैं। बीमार व्यक्ति तो अर्थव्यवस्था पर बोझ सरीखा होता है। इसलिए खुद को स्वस्थ रखना और दूसरों को स्वस्थ रखने का माध्यम बनना भी देश के आर्थिक विकास में आपके अप्रत्यक्ष योगदान सरीखा है। स्वस्थ समाज का निर्माण होता है जो हर व्यक्ति को ज्यादा आर्थिक भागीदारी में सक्षम बनाता है। निरोगी बच्चों की स्कूल में उपस्थिति ज्यादा होती है।

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