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    कम वजन या समय से पहले जन्मे नवजातों में दृष्टिहीनता का खतरा, ये करने पर मिलेगा फायदा

    Updated: Fri, 31 Oct 2025 03:15 AM (IST)

    देश में समय से पहले जन्मे या कम वजन वाले नवजात शिशुओं में दृष्टिहीनता का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। एम्स के नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे नवजातों में रेटिनोपैथीआफप्रीमैच्योरिटी (आरओपी) रोग प्रमुख कारण है। यह रोग रेटिना की रक्तवाहिकाओं के असामान्य विकास से होता है, जो समय पर उपचार न मिलने पर दृष्टिहीनता की वजह बन सकता है। 

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    कम वजन या समय से पहले जन्मे नवजातों में दृष्टिहीनता का खतरा (सांकेतिक तस्वीर)

    अनूप कुमार सिंह, जागरण, नई दिल्ली। देश में समय से पहले जन्मे या कम वजन वाले नवजात शिशुओं में दृष्टिहीनता का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। एम्स के नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे नवजातों में रेटिनोपैथी आफ प्रीमैच्योरिटी (आरओपी) रोग प्रमुख कारण है। यह रोग रेटिना की रक्तवाहिकाओं के असामान्य विकास से होता है, जो समय पर उपचार न मिलने पर दृष्टिहीनता की वजह बन सकता है।

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    एम्स के विशेषज्ञों के अनुसार, जो नवजात ढाई किलो ग्राम से कम वजन के साथ या 32 सप्ताह से पहले जन्म लेते हैं, उनमें यह रोग होने का खतरा 20 से 60 प्रतिशत तक अधिक होता है।

     

    एम्स आरपी सेंटर प्रमुख प्रो. डॉ. राधिका टंडन बताती हैं कि ऐसे नवजातों की जन्म के 30 दिनों के भीतर नेत्र जांच अवश्य कराई जानी चाहिए, ताकि समय रहते उपचार किया जा सके।

     

    एम्स और राष्ट्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार आरओपी का सबसे ज्यादा खतरा समय पूर्व जन्म लेने वाले उन नवजातों में होता है, जिन्हें जन्म के समय या बाद में अधिक आक्सीजन दी जाती है। समय पर उपचार से रोग को रोकना संभवआरपी सेंटर के नेत्र विशेषज्ञ प्रो. ड. राजपाल बताते हैं कि समय पर जांच व उपचार से ऐसे 90 प्रतिशत मामलों में दृष्टिहीनता को रोका जा सकता है।

     

    बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमार साहनी बताते हैं कि कई अभिभावक अनजाने में बच्चे के सामान्य दिखने को स्वास्थ्य का संकेत मान लेते हैं और नेत्र जांच नहीं कराते जबकि जन्म के पहले 30 दिन नवजात विशेष कर कम भार और समय पूर्व जन्म लेने वाले शिशु की ²ष्टि के लिए निर्णायक हैं। देश में हर पांच में एक नवजात का वजन सामान्य से कम है।