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    Mumbai Train Blast Case: 'जानबूझकर बनाया निशाना', बॉम्बे HC के फैसले पर बोली जमीयत- मुसलमानों से माफी मांगे कांग्रेस

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 08:11 PM (IST)

    मुंबई ट्रेन विस्फोट कांड में 12 अभियुक्तों के बरी होने पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कांग्रेस से माफी की मांग की है। उनका आरोप है कि कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण निर्दोष लोगों को 19 साल तक जेल में रहना पड़ा। जमीयत के कानूनी सलाहकार मौलाना सैयद काब रशीदी ने कहा कि कांग्रेस सरकार को मुस्लिम समुदाय से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि मुसलमानों को जानबूझकर निशाना बनाया गया था।

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    मुंबई ट्रेन ब्लास्ट पर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर जमीयत। (फाइल फोटो)

    जेएनएन, मुंबई। सोमवार को आए उच्च न्यायालय के फैसले में 11 जुलाई, 2006 के ट्रेन विस्फोट कांड में 12 अभियुक्तों को बरी किए जाने के बाद अब इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गई है।

    इस मामले में आरोपितों को कानूनी मदद मुहैया कराने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कांग्रेस से माफी की मांग की है। क्योंकि उसके ही शासनकाल में उसकी गलत नीतियों के कारण निर्दोष लोगों को इतने साल तक जेल में रहना पड़ा।

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    'मुस्लिम समुदाय से माफी मांगे कांग्रेस'

    जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कानूनी सलाहकार मौलाना सैयद काब रशीदी ने कहा है कि उस समय की कांग्रेस सरकार को आगे आकर मुस्लिम समुदाय से माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि उसकी दोषपूर्ण नीतियों के कारण ही 12 मुसलमानों को 19 वर्षों तक अकल्पनीय उत्पीड़न, यातना और अन्याय सहना पड़ा। इस दौरान उनके परिवार तबाह हो गए।

    'जानबूझकर बनाया गया मुसलमानों को निशाना'

    रशीदी का कहना है कि यह एक कानूनी विफलता ही नहीं, बल्कि एक नैतिक और संवैधानिक पतन भी है। रशीदी कहते हैं कि 2006 में हुए इन विस्फोटों के बाद मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर निशाना बनाया गया, और मुसलमानों के बिना किसी ठोस सबूत के उठाकर आतंकवादी बता दिया गया। इसलिए जब तक सबूत गढ़ने और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करनेवाले अधिकारियों को सजा नहीं मिलती, तब तक यह न्याय अधूरा रहेगा।

    केंद्र और राज्य में थी कांग्रेस सरकार

    बता दें कि जमीयत सोमवार को इस मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद से ही कह रही है कि गलत तथ्य पेश करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो। आज उसने खुलकर उस समय सरकार में रही कांग्रेस पर भी हमला बोल दिया है। क्योंकि 2004 से 2014 तक केंद्र एवं महाराष्ट्र दोनों जगह कांग्रेस का ही शासन था।

    जब 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की ट्रेनों में विस्फोट हुए तो राज्य के मुख्यमंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता विलासराव देशमुख एवं गृहमंत्री राकांपा नेता आर.आर.पाटिल थे। इसलिए जमीयत का सिर्फ कांग्रेस को दोष देना आश्चर्यजनक लग रहा है। क्योंकि कांग्रेस नीत सरकार में पाटिल लंबे समय तक राज्य के गृहमंत्री रहे थे। उन्हीं के कार्यकाल में मालेगांव के दोनों विस्फोट एवं 26 नवंबर, 2008 का पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमला भी हुआ था। इस दौरान मुंबई के पुलिस आयुक्त ए.एन.राय और एटीएस प्रमुख के.पी.रघुवंशी से लेकर जिम्मेदार पदों पर बैठे सभी पुलिस अधिकारी तब की अविभाजित राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार की सहमति से ही नियुक्त किए गए थे।

    11 जुलाई, 2006 का ट्रेन विस्फोट कांड होने के बाद से इस मामले की जांच होने, आरोपपत्र दाखिल किए जाने एवं मकोका की विशेष मकोका अदालत में ट्रायल शुरू होने तक राज्य में गृह मंत्रालय राकांपा के ही हाथों में रहा। यहां तक कि उसी दौरान जब मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) की जिम्मेदारी संभाल रहे राकेश मारिया के नेतृत्व में पुणे का इंडियन मुजाहिदीन माड्यूल ध्वस्त किया गया, और राकेश मारिया ने स्वयं दावा किया कि 11 जुलाई, 2006 का ट्रेन विस्फोट इसी माड्यूल के लोगों ने करवाया था।

    कांग्रेस ने साध रखी है चुप्पी

    तब भी मुंबई एटीएस एवं मुंबई क्राइम ब्रांच में छिड़ी जंग को शांत करवाने का कोई प्रयास तत्कालीन सरकार द्वारा नहीं किया गया। जिसके फलस्वरूप एक ही मामले में का श्रेय एक ही पुलिस के दो अलग-अलग विभाग लेते रहे, जिसका लाभ यह मामला उच्च न्यायालय में जाने के बाद बचाव पक्ष के वकीलों ने उठाया और आश्चर्यजनक रूप से उच्चन्यायालय ने सभी 12 आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। संभवतः कांग्रेस और राकांपा दोनों इस असलियत को समझकर ही यह फैसला आने के बाद से चुप्पी साधे हुए हैं।

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