'ट्रेन विस्फोट मामले में HC का फैसला जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा', कोर्ट के फैसले पर पीड़ित पक्षों ने व्यक्त की निराशा
मुंबई 11/7 ट्रेन विस्फोट मामले में हाई कोर्ट द्वारा सभी आरोपियों को बरी करने पर पीड़ितों ने निराशा जताई है। 2006 के विस्फोट में बेटे को खोने वाले यशवंत भालेराव ने सरकार पर गलत जांच का आरोप लगाया। घायल हरीश पोवार ने इसे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा कहा। पीड़ितों ने न्याय से वंचित महसूस किया।

जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। 11/7 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी आरोपितों को बरी करने के हाई कोर्ट के फैसले पर पीड़ितों पक्ष ने निराशा व्यक्त की है। 2006 के विस्फोटों में अपने युवा बेटे हर्षल भालेराव को खोने वाले वसई के यशवंत भालेराव ने सरकार पर गलत जांच करने का आरोप लगाया है।
वहीं, विस्फोट के दौरान घायल हुए हरीश पोवार ने इस फैसले को पीडि़तों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा करार दिया है। यशवंत भालेराव ने कहा कि हमने न्याय के लिए 19 साल इंतजार किया, लेकिन आज हमारे पास केवल दर्द और निराशा है। उन्होंने अपने घर का नाम 7/11 हर्षल स्मृति रखा है।
यह एक ऐसा घर है, जो दुख पर आधारित है और एक खोए हुए बेटे और न्याय न मिलने का मौन स्मारक है। हर्षल कंप्यूटर साइंस में स्नातक था। वह साकिनाका अंधेरी में स्थित एक अमेरिकी कंपनी में अपनी नौकरी शुरू की थी। 11 जुलाई 2006, उनका काम पर पहला दिन था। काम से लौटते समय हर्षल उस ट्रेन में सवार हुए, जहां विस्फोट ने उनकी जान ले ली।
पीड़ितों ने कहा- लग रहा न्याय से वंचित कर दिया गया
मिड-डे से बातचीत में भालेराव ने कहा कि परिवार को सोमवार को अंतिम फैसले का बेसब्री से इंतजार था, न्याय की उम्मीद थी। हमने विश्वास किया था कि आतंकवादियों को उनकी सजा मिलेगी। लेकिन अब, सभी आरोपी बरी हो गए हैं। ऐसा लगता है कि न्याय से वंचित कर दिया गया है।
घटना को याद करते हुए भालेराव ने कहा, 'उस दिन हर्षल को कहीं नहीं ढूंढ पाए। हम बेहद चिंतित थे कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। फिर भी, हम उम्मीद करते रहे कि वह जीवित हैं, क्योंकि मृतकों और घायलों की जो सूची हमें पहले मिली थी, उसमें मेरे बेटे का नाम नहीं था। हमारे परिवार के 25 से अधिक सदस्यों ने मुंबई के हर अस्पताल में खोजबीन की, लेकिन हमें एक भी सुराग नहीं मिला।
मैंने बेटे की अमेरिकी कंपनी से संपर्क किया। उन्होंने दूतावास की मदद से मामले की जांच की। दो दिन बाद, हमें सूचित किया गया कि मेरे बेटे का शव भगवानवती अस्पताल के शवगृह में पड़ा है।
उनके अधिकांश शरीर के अंग पट्टियों में लिपटे हुए थे। ऐसा लग रहा था कि जब उन्हें अस्पताल लाया गया था, तब वह जीवित थे। उनकी अमेरिकी कंपनी ने पहले उन्हें एक प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए पांच हजार रुपये का पुरस्कार दिया था। लेकिन न तो पैसे उनकी जेब में मिले और न ही उनका पर्स, जिसमें उनकी पहचान पत्र था। अगर पर्स मिल जाता, तो उन्हें तुरंत पहचान लिया जाता।
सही लोग पकड़े गए होते, तो आज का फैसला अलग होता
ट्रेन विस्फोटों में घायल हुए साबिर खान ने कोर्ट के फैसले पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि पुलिस को जब असली दोषियों का पता नहीं चला, तो उन्होंने किसी को भी पकड़कर सलाखों के पीछे डाल दिया। अगर सही लोग पकड़े गए होते, तो शायद आज का फैसला अलग होता। उस दिन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि शाम करीब छह बजे मैं मीरा रोड से बांद्रा जाने वाली ट्रेन में चढ़ा।
विस्फोट मीरा रोड और भयंदर के बीच मेरे कोच में हुआ। किस्मत से मैं दरवाजे के पास बाईं ओर खड़ा था, जबकि विस्फोट दाईं ओर हुआ। उस विस्फोट में लगभग सात लोग मारे गए। उन्होंने आगे कहा कि मेरे हाथ और कान में चोटें आई थीं। आज भी, मेरे एक कान से लगभग 10 प्रतिशत सुनने की क्षमता कम हो गई है।
'डिब्बे के अंदर लाशें पड़ी थीं, लोग तड़प रहे थे'
ट्रेन बम विस्फोट के दौरान घायल हुए बागवानी ठेकेदार हरीश पोवार इतने साल से शारीरिक और मानसिक तकलीफों के साथ जीते हुए न्याय मिलने का इंतजार करते रहे। लेकिन, कोर्ट के फैसले से विरार निवासी पोवार स्तब्ध हैं और उन्होंने इस फैसले को पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा करार दिया।
अब 44 वर्ष के हो चुके पोवार को 11 जुलाई 2006 का वो दिन अच्छी तरह से याद है जब विरार जाने वाली लोकल ट्रेन के प्रथम श्रेणी कोच में बम विस्फोट हुआ था। वह भी इस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे और इस विस्फोट के दौरान घायल हो गए थे। उन्होंने कहा, 'मुझे याद है कि डिब्बे के अंदर लाशें पड़ी थीं और इसकी दीवारों पर खून के छींटे थे। कुछ लोग दर्द से तड़प रहे थे, जबकि कुछ बेसुध पड़े थे।'
फैसले से निराश पोवार ने तंज कसते हुए कहा कि अगर आरोपित व्यक्तियों को बरी कर दिया जाता है, तो अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करने घर से बाहर निकलना अपराध हैज् और हम अपराधी हैं।
अगर उस समय नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होते तो न्याय होता: चिराग
धमाकों के एक पीड़ित चिराग चौहान ने बरी किए जाने के फैसले पर निराशा व्यक्त की और न्याय की हत्या होने का अफसोस जताया है। चिराग अब व्हीलचेयर पर हैं और एक पेशेवर चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। फैसले के कुछ घंटों बाद चौहान ने एक्स पर गहरी निराशा व्यक्त की और कहा कि आज देश का कानून विफल हो गया।
हालांकि, चार्टर्ड अकाउंटेंट ने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने विस्फोटों के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को माफ कर दिया है और अपनी ¨जदगी में आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि अगर नरेंद्र मोदी उस समय प्रधानमंत्री होते, तो इस मामले में न्याय हो सकता था।
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