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Sam Manekshaw: 'ऐसे सेना का डिसिप्लिन बिगड़ जाएगा', सुनते ही चिढ़ गए थे रक्षा मंत्री; फौजी नहीं डॉक्टर बनना चाहते थे मानेकशॉ

Sam Manekshaw Death Anniversary 27 जून 2008 को देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने आखिरी सांस ली थी। मानेकशॉ की अगुवाई में भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को करारी मात दी थी। वह अपनी जिंदादिली बहादुरी हाजिर जवाबी और सेंस ऑफ ह्यूमर के लिए जाने जाते थे। सैम मानेकशॉ की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनसे जुड़े रोचक किस्‍से...  

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Wed, 26 Jun 2024 08:11 PM (IST)
Sam Manekshaw Death Anniversary: सैम मानेकशॉ। फोटो- जागरण ग्राफिक्‍स टीम

डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। भारत का पहला फील्ड मार्शल, जिसने अंग्रेजी फौज में भी काम किया और आजादी के बाद सेना का सर्वोच्च पद भी संभाला। ओहदा क्या था, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान ने उन्‍हें अपनी सेना में आने का ऑफर दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।

पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था, लेकिन उनकी पलटन उन्‍हें प्‍यार सैम बहादुर बुलाती थी। अपनी जिंदादिली, बहादुरी, हाजिर जवाबी और सेंस ऑफ ह्यूमर के लिए पहचाने जाने वाले सैम बहादुर यानी देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की 27 जून को पुण्यतिथि है।

सैम बहादुर डॉक्टर बनना चाहते थे तो फिर 18 की उम्र में ही फौज में कैसे आए? ऐसा क्या कह दिया था सैम मानेकशॉ ने जिस पर पूर्व रक्षामंत्री वीके मेनन खासा नाराज हो गए थे? सैम मानेकशॉ की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनसे जुड़े रोचक किस्‍से...

मानेकशॉ फौज में कैसे आए?

3 अप्रैल, 1914 को पंजाब के अमृतसर शहर में जन्मे मानेकशॉ बचपन में फौजी नहीं, बल्कि इंग्‍लैड  जाकर पढ्ने और गाइनकॉलजिस्ट बनने का सपना देखते थे। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि उनके पिता होरमुसजी मानेकशॉ खुद एक डॉक्टर थे। शायद इसीलिए बेटा सैम भी इसी पेशे में अपना करियर बनाना चाहता था।

जब सैम बहादुर 15 साल के थे, उस वक्त उनके बड़े भाई कोई पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा गया था।  सैम ने भी इंग्‍लैंड से गाइनकॉलजिस्ट की पढ़ाई करने की इच्छा जताई थी। सैम की इच्‍छा सुनकर पिता ने उनके सामने एक शर्त रखी। कहा कि बेटा अगर तुम सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा अच्छे से नंबरों से पास कर लोगे तो मैं तुम्हें इंग्लैंड भेज दूंगा।

पापा की शर्त पूरी की फिर भी नहीं भेजा  

सैम ने परीक्षा की तैयारी की और पूरे क्लास में टॉप किया। इस बार सैम के पिता ने उम्र का हवाला देकर उन्‍हें इंग्लैंड भेजने की बात टाल दी। पिता ने कहा कि जब तुम 18 साल के हो जाओगे, तब इंग्लैंड भेजेंगे।

पिता का जवाब सुनकर सैम मानेकशॉ नाराज हो गए और कई दिनों तक अपने पिता से बात भी नहीं की। इसी दौरान, एक दिन सैम मानेकशॉ ने समाचार पत्र में सेना में भर्ती का विज्ञापन देखा। फिर क्या था। सैम मानेकशॉ ने अपनी मां से 500 रुपये लेकर परीक्षा देने के लिए दिल्‍ली पहुंच गए। यहां सेना भर्ती की परीक्षा दी और उसमें पास हो गए और सैम मानेकशॉ बन गए सैम बहादुर।

सर.. सेना का डिसिप्लिन बिगड़ जाएगा

आमतौर पर एक जनरल देश के रक्षा मंत्री से उसी की जुबान में जवाब दे या बहस करे, ये मुमकिन नहीं होता, लेकिन सैम बहादुर की बात ही अलग थी। सैम को लोग सीधी-सपाट बात करने के लिए जानते थे। साल 1957 की बात है। उस वक्त सैम जम्मू डिविजन की कमान संभाल रहे थे। उस वक्त के रक्षा मंत्री वीके मेनन वहां दौरा करने पहुंचे।

रक्षा मंत्री ने बातचीत के दौरान सैम मानेकशॉ आर्मी चीफ जनरल के एस थिमैया के बारे में उनकी राय पूछी। इस पर सैम बहादुर ने जवाब दिया,''सर, मुझे अपने चीफ के बारे में राय बनाने की इजाजत नहीं है। आप एक जनरल से पूछ रहे हैं कि आर्मी चीफ के बारे में क्या राय है। कल आप मेरे जूनियर से मेरे बारे में यही सवाल करेंगे तो इससे सेना का पूरा डिसिप्लिन ही बिगड़ जाएगा। ''

फिर क्या था। जाहिर सी बात है कि रक्षा मंत्री मेनन सैम मानेकशॉ के तरीके से चिढ़ गए। फिर गुस्से में कहा, ''अंग्रेजों  वाली सोच बदलो। मैं चाहूं तो थिमैया को अभी हटा भी सकता हूं।''  

इस पर सैम बहादुर ने जवाब दिया, 'आप उनको बेशक हटा सकते हैं, लेकिन उनके बाद जो चीफ आएगा, उनके बारे में भी मेरा यही जवाब होगा।'' इसके बाद रक्षा मंत्री बिना कुछ कहे ही वहां से चले गए।

बिग बी और सैम ने एक ही स्‍कूल से की पढ़ाई

सैम मानेकशॉ का बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्‍चन से भी एक खास कनेक्शन है। सैम और अमिताभ के बीच क्या कनेक्शन  है, इसकी साल 2004 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान खुद मानेकशॉ ने जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि अमिताभ बच्‍चन और वह दोनों शेरवुड कॉलेज नैनीताल से पढ़े हैं। दोनों शेरवुड कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। उनका संस्‍थान उन पर गर्व करता है।

मानेकशॉ ने यह भी बताया था कि वह 1974 में रिलीज हुई अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मजबूर' की शूटिंग देखने सेट पर भी गए थे।

पिछले साल दिसंबर में बॉलीवुड अभिनेत्री रवीना टंडन ने सैम मानेकशॉ और अपने पिता रवि टंडन (रवीना के पिता ने मजबूर फिल्म डायरेक्ट की थी) की साथ में तस्वीर शेयर की। यह तस्वीर शूटिंग के दौरान की है।

मानेकशॉ ने देश के लिए लड़े पांच युद्ध

18 साल की उम्र में सैम मानेकशॉ ने ब्रिटिश भारतीय आर्मी जॉइन की थी। मानेकशॉ ने पांच अलग-अलग युद्धों में अपनी सेवाएं दी थीं।

इन पांच युद्धों में लड़े सैम

  1. द्वितीय विश्व युद्ध
  2. 1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध
  3. 1962 का चीन-भारत युद्ध
  4. 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध
  5. 1971 का महत्वपूर्ण बांग्लादेश मुक्ति युद्ध

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैम ने जापानियों के खिलाफ अपनी यूनिट को जीत दिलाई थी। वहीं 1971 में जब भारत ने युद्ध में पाकिस्तान को शिकस्त दी थी, तब मानेकशॉ ही उस जंग के नायक बनकर उभरे थे।

देश के पहले फील्ड मार्शल

सैम मानेकशॉ को उनकी बहादुरी के लिए कई सम्मान मिले थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। 1973 में मानेकशॉ को फील्ड मार्शल बनाया गया था। इस पद पर पहुंचने वाले सैम देश के पहले सैन्य अधिकारी थे।

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मानेकशॉ क अलावा एक और सेनाध्यक्ष केएम करियप्‍पा को फील्ड मार्शल बनाया गया था। करियप्‍पा सीनियर थे, इसके बावजूद उन्‍हें फील्ड मार्शल का पद 1986 में दिया गया था, जबकि सैम को यह पद 1973 में ही मिल गया था।

केएम करियप्‍पा को फील्ड मार्शल बना दिया गया तो शुरुआत में इसे मानद उपाधि ही लिखा जाता था। इस पर सैम बहादुर ने ऑब्‍जेक्‍शन किया। कहा, ' फील्ड मार्शल नियुक्त नहीं होते,  बल्कि क्रिएट किए जाते हैं और जो क्रिएट किया जाता है, वो मानद कैसे हो सकता है।' आखिर में सरकार ने मानद शब्द हटा लिया था।  

सैम मानेकशॉ  1973 में सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए। इसके बाद वह तमिलनाडु के वेलिंगटन शहर चले गए और वहां रहने लगे। वेलिंगटन में ही जून 2008 में 94 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। 

(सोर्स: पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह की किताब 'लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी: बायोग्राफी ऑफ 12 सोल्जर्स' और मेजर जनरल शुभी सूद की किताब 'फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ')

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