भारत अब भी नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार, चीन के साथ बढ़ा कारोबार
कम्युनिस्ट सरकारों के आने के बाद नेपाल का चीन के साथ व्यापार बढ़ा है फिर भी भारत सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भौगोलिक निकटता और व्यापार संधियों ने भारत के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया है। चीन से व्यापारिक गलियारे पूरी तरह विकसित नहीं होने से चीन के साथ व्यापार कम है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार 8 अरब डॉलर से अधिक था।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कम्युनिस्ट पार्टियों की अगुआई वाली सरकारें आने के बाद चीन के साथ नेपाल का व्यापार बढ़ा है लेकिन भारत अब भी सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। नेपाल और भारत भौगोलिक तौर पर ज्यादा नजदीक हैं। दोनों देशों के बीच लंबी अवधि की व्यापार संधियों और माल की आसान आवाजाही ने व्यापार को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का संबंध है।
वहीं, नेपाल को चीन से जोड़ने वाले व्यापारिक गलियारे अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं। ऐसे में चीन और नेपाल के बीच सालाना व्यापार करीब 72.4 करोड़ डालर है, जो भारत की तुलना में बहुत कम है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार 8 अरब डॉलर अधिक था। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत से आयात 7 अरब डालर से अधिक और निर्यात लगभग 75.5 करोड़ डालर रहा।
पिछले वित्त वर्ष की तुलना में कम हुआ निर्यात
ऑनलाइन समाचार पोर्टल नेपसेट्रेडिंग के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के पहले नौ महीनों में नेपाल से कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 3.7 प्रतिशत कम हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है, ''निर्यात में कमी मुख्य रूप से भारत को निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट के कारण हुई है, जो 6.2 प्रतिशत तक गिर गया। इसके विपरीत, चीन को निर्यात में 232 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
''हालांकि, यह अभी भी कुल निर्यात का एक छोटा सा अंश'' है। इस बीच, अन्य देशों को निर्यात में भी 2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसी अवधि में कुल आयात में 2.8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जिसमें भारत (3.2 प्रतिशत) भी शामिल है, जबकि चीन से आयात में 33.4 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
नेपाल में कम्युनिस्ट शासन के बाद चीन की तरफ बढ़ा रुझान
नेपाल में कम्युनिस्ट नेताओं के सत्ता संभालने के बाद से, सरकार ने चीन की ओर रुख किया। दरअसल, जब नेपाल के इस्तीफा दे चुके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 2024 के अंत में चीन की आधिकारिक यात्रा करने का फैसला किया, तो इसे उस परंपरा से हटने के तौर पर देखा गया, जिसमें नेपाली नेता पद ग्रहण करने के बाद पहली विदेश यात्रा के तौर पर भारत को चुनते थे। इस बदलाव को एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया। इस दौरान, व्यापार और अर्थव्यवस्था पिछड़ती रही और समय-समय पर राजनीतिक विरोध प्रदर्शन होते रहे। इसकी वजह से सरकार में बार-बार बदलाव हुए।
द हिमालयन डायलाग्स के कार्यक्रम निदेशक सुमित बिक्रम राणा का कहना है कि नेपाल का व्यापार एक दोराहे पर खड़ा है। कभी कृषि वस्तुओं का प्रमुख निर्यातक रहा यह देश अब धान, दूध और गन्ने सहित आवश्यक वस्तुओं की अपनी मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
(समाचार एजेंसी आइएएनएस के इनपुट के साथ)
यह भी पढ़ें- भारत और नेपाल के बीच क्यों है No Visa Policy, किस संधि के चलते व्यापार, संपत्ति से लेकर आवाजाही में मिलती है छूट
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।