उच्च शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग की बनेगी नई विश्वस्तरीय व्यवस्था, शिक्षा मंत्रालय ने तेज की तैयारी
फिलहाल उच्च शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैकिंग के लिए क्यूएस और टाइम्स जैसी दो ही एजेंसियां हैं। दोनों ही बिट्रिश मूल की हैं। क्यूएस और टाइम्स जैसी रैकिंग करने वाली एजेंसियों पर धारणा के आधार पर भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों का आकलन करने का आरोप लगाया गया था।

नई दिल्ली, अरविंद पांडेय। उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को परखने के लिए आने वाले दिनों में अब क्यूएस (क्वाकरेल्ली सायमोंड्स) और टाइम्स जैसी रैकिंग का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। देश में इसी तर्ज पर अब उच्च शिक्षण संस्थानों के विश्वस्तरीय रैकिंग की एक नई और भरोसेमंद व्यवस्था बनेगी। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। हालांकि, इसके आकलन का फार्मूला भारतीय शिक्षा पद्धति के मापदंडों के अनुरूप होगा। वैसे भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आने के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलावों की तैयारी शुरू हो गई है।
क्यूएस और टाइम्स रैंकिंग पर खड़े हो चुके हैं सवाल
फिलहाल उच्च शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैकिंग के लिए क्यूएस और टाइम्स जैसी दो ही एजेंसियां हैं। दोनों ही बिट्रिश मूल की हैं। क्यूएस और टाइम्स जैसी रैकिंग करने वाली एजेंसियों पर 'धारणा' के आधार पर भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों का आकलन करने का आरोप लगाया गया था। ये आरोप कोई और नहीं, बल्कि शिक्षा मंत्रालय और उच्च शिक्षण संस्थानों की ओर से लगाए गए थे। यही वजह थी कि 2020 की टाइम्स रैकिंग में आइआइटी बांबे, दिल्ली, मद्रास, कानपुर और खड़गपुर जैसे देश के सात प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों ने विरोध स्वरूप इस रैकिंग में शामिल होने से इन्कार कर दिया।
मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि रैकिंग तैयार करने वाली एजेंसियां अपने देश के मानकों के आधार पर संस्थानों का आकलन करती हैं। जबकि, जनसंख्या और दूसरे मापदंडों के आधार पर भारत और ब्रिटेन में काफी अंतर है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस मामले में खुद रुचि दिखाई थी। अब राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की रैकिंग करने वाले एनआइआरएफ (नेशनल इंस्टीट्यूट रैकिंग फ्रेमवर्क) के दायरे को विस्तार देने की तैयारी चल रही है। साथ ही इस संबंध में दुनिया के दूसरे देशों के उच्च शिक्षण संस्थानों से भी संपर्क साधा जा रहा है। इस कड़ी में मंत्रालय ने अपनी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी दुनिया के दर्जनों देशों के साथ साझा किया है। जिसे ज्यादातर देशों ने पसंद भी किया है। सूत्रों की मानें तो मौजूदा समय में दुनियाभर में छात्रों को आकर्षित करने के लिए रैकिंग का एक बड़ा खेल भी चल रहा है। ऐसे में एक नई और भरोसेमंद रैकिंग व्यवस्था तैयार कर शिक्षा मंत्रालय इस गठजोड़ को भी खत्म करना चाहता है।
क्यूएस और टाइम्स रैकिंग के मापदंड
मौजूदा समय में क्यूएस और टाइम्स रैकिंग के जो मापदंड हैं, उनमें शिक्षण और शोध के साथ दूसरे देशों के विद्यार्थियों और शिक्षकों का अनुपात, पीएचडी करने वालों की संख्या, प्रति स्टाफ रिसर्च पेपर की संख्या, अंतरराष्ट्रीय नजरिया और शोध कार्यो से विश्वविद्यालय को होने वाली आय जैसे विषय शामिल हैं।
आधारभूत ढांचा एक बड़ा मुद्दा
उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी और आधारभूत ढांचा एक बड़ा मुद्दा है। जिसका ध्यान रैकिंग की नई व्यवस्था तैयार करने के बाद भी देना होगा। मौजूदा समय में उच्च शिक्षण संस्थानों में बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद खाली हैं। वहीं, उनके पास शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता को मजबूती देने के लिए संसाधन की भी भारी कमी है। यही वजह है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसद खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

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