अंतरिक्ष से धरती पर रखी किताब भी पढ़ सकती है ये सैटेलाइट, भूकंप और सुनामी की मिलेगी रियल टाइम वॉर्निंग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और नासा का संयुक्त मिशन निसार उपग्रह 30 जुलाई 2025 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च होगा। 1.5 बिलियन डॉलर का यह मिशन पृथ्वी की सतह की निगरानी में मददगार होगा। निसार उपग्रह हर 12 दिन में पृथ्वी की भूमि और बर्फीली सतहों को स्कैन करेगा और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी में मदद करेगा।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अंतरिक्ष सेक्टर में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के लिए अगला हफ्ता बेहद अहम साबित होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की संयुक्त परियोजना, नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह, अगले हफ्ते 30 जुलाई 2025 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होने के लिए तैयार है।
यह 1.5 बिलियन डॉलर की लागत वाला मिशन पृथ्वी की सतह की निगरानी में अभूतपूर्व बदलाव लाने वाला है। यूक्रेन-रूस युद्ध, ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद इजरायल-ईरान युद्ध ने यह साबित किया है कि पृथ्वी पर नजर रखने वाले सैटेलाइट की रणनीतिक अहमियत अब काफी बढ़ गई है, ऐसे में निसार उपग्रह को भारत और अमेरिका के लिए बहुत ही उपयोगी माना जा रहा है।
नासा की तरफ से दी गई सूचना के मुताबिक, निसार उपग्रह दुनिया में अपनी तरह का पहला उपग्रह है जो प्रत्येक 12 दिनों पर समूची पृथ्वी की भूमि और बर्फीली सतहों का स्कैन करेगा।
यह एक सेंटीमीटर स्तर तक की सटीक फोटो खींचने व प्रसारित करने में सक्षम है। इसमें नासा की तरफ से तैयार एल-बैंड और इसरो ओर विकसित एस-बैंड रडार लगाया गया है जिन्हें विश्व में सबसे उन्नत माना जा रहा है।
रियल-टाइम निगरानी में करेगा मदद
यह तकनीक प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन और बाढ़ की रियल-टाइम निगरानी में मदद करेगा। इसलिए भी इसे भारत के लिए खास तौर पर उपयोगी माना जा रहा है।
मिशन न केवल प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी और प्रबंधन में सहायक होगा बल्कि कृषि, जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की नमी का सटीक अनुमान लागने के लिए भी डाटा भेजेगा।
निसार की दोहरी रडार प्रणाली बादलों और रात के समय भी काम करने में सक्षम होंगी जो इसके समकक्ष अन्य सैटेलाइट से ज्यादा प्रभावशाली बनाती हैं।
आत्मनिर्भरता की ओर भारत का एक और कदम
यह मिशन दोनों देशों के बीच एक दशक से अधिक समय से चल रहे सहयोग का परिणाम है, जो भारत-अमेरिका के वैज्ञानिक और तकनीकी साझेदारी को और मजबूत करता है।
नासा और इसरो ने इस मिशन के लिए व्यापक तैयारियां की हैं। उपग्रह को इस साल की शुरुआत में श्रीहरिकोटा पहुंचाया गया था। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने इसे भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक अंतरिक्ष नेतृत्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।
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