NISAR सैटेलाइट लॉन्च: भारत और अमेरिका का बनाया यह Satellite क्या दुनिया को आपदाओं से बचा लेगा?
NISAR Satellite Launched नासा-इसरो का संयुक्त NISAR सैटेलाइट श्रीहरिकोटा बुधवार शाम 540 बजे लॉन्च होगा। यह दुनिया का पहला रडार सैटेलाइट है जो दोहरे रडार बैंड (एल-बैंड और एस-बैंड) का उपयोग कर पृथ्वी को व्यवस्थित तरीके से मैप करेगा। यह ग्लेशियर पिघलने जमीन धंसने ज्वालामुखी भूकंप और फसल निगरानी जैसे पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक परिवर्तनों पर नजर रखेगा। निसार से जुड़े सभी सवालों के जवाब यहां पढ़ें...
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) सैटेलाइट बुधवार को शाम 5:40 बजे लॉन्च किया गया है। जीएसएलवी-एफ 16 रॉकेट ने निसार सैटेलाइट को लेकर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी और सैटेलाइट को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करेगा।
निसार सैटेलाइट नासा और इसरो का संयुक्त मिशन है। दोनों स्पेस एजेंसियों ने साथ मिलकर इसे विकसित किया है। यह पूरी धरती पर नजर रखेगा। हालांकि, इसरो ने पहले भी रिसोर्ससैट और रीसेट सहित पृथ्वी पर नजर रखने वाले सैटेलाइट लॉन्च किए हैं, लेकिन ये सैटेलाइट केवल भारतीय क्षेत्र की निगरानी करने तक ही सीमित थे।
निसार क्या है, अंतरिक्ष में जाकर पृथ्वी के किस काम आएगा, यह कैसे काम करेगा, क्या इससे खेती-किसानी को भी मिलेगा लाभ? निसार सैटेलाइट से जुड़े सभी सवालों के जवाब यहां पढ़ें...
निसार क्या है और क्यों खास है?
नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR (निसार)) दुनिया का पहला रडार सैटेलाइट है, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी को व्यवस्थित तरीके से मैप करेगा। इतना ही नहीं, यह पहला ऐसा सैटेलाइट है, जो दोहरे रडार बैंड (एल-बैंड और एस-बैंड) का यूज करता है ताकि यह अलग-अलग तरह की पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की निगरानी कर सकता है।
अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद यह सैटेलाइट निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit - LEO) में चक्कर लगाएगा। निसार तीन साल तक अंतरिक्ष में रहकर पृथ्वी की निगरानी करेगा।
ये बैंड क्या हैं?
बैंड यानी रडार सिस्टम में रेडियो वेव की frequency या तरंगदैर्ध्य (wavelength) को दर्शाते हैं। हर बैंड अलग-अलग फ्रीक्वेंसी और वेवलैंथ पर काम करता है, जिससे तय होता है कि कितनी दूर तक की चीजों को स्पष्ट देखा जा सकता है। आसान भाषा में कहा जाए तो दो बैंड यानी दोहरा रडार सिस्टम।
- L-बैंड यानी 1.25 GHz, 24 सेमी तरंगदैर्ध्य: जमीन के भीतर झांकने में सक्षम, जंगलों और बर्फ के नीचे का डाटा दे सकता है। ग्लेशियर दरकने, जमीन धंसने, ज्वालामुखी धधकने और भूकंप संबंधी गतिविधि को ट्रैक करने का काम करेगा। यह रडार नासा ने दिया है।
- S-बैंड यानी 3.20 GHz, 9.3 सेमी तरंगदैर्ध्य: सतह की बारीक से बारीक गतिविधियों को पहचानने में सक्षम है। खेती-किसानी की निगरानी करने, सतह की नमी, फसलें और इंफ्रास्ट्रक्चर ( ब्रिज, डैम और रेलवे ट्रैक) की मूवमेंट को ट्रैक करने का काम करेगा। यह रडार इसरो ने खुद बनाया है।
बता दें कि निसार सैटेलाइट का निर्माण और एकीकरण जनवरी 2024 में ही हो चुका था। इसका लॉन्च मार्च, 2024 में होना था, लेकिन हार्डवेयर अपग्रेड और अतिरिक्त परीक्षण के चलते इसका लॉन्च जुलाई, 2025 तक के लिए टाल दिया गया था।
NISAR में किस तकनीक का यूज हुआ है?
निसार में स्वीप सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का यूज किया गया है। इस तकनीक के जरिए बड़े से बड़े क्षेत्र को हाई रिजॉल्यूशन (5-10 मीटर) के साथ स्कैन करके एकदम क्लियर तस्वीरें ली जा सकती हैं। खास बात यह है कि SAR के चलते निसार बादलों और अंधेरे में भी डेटा जुटा सकता है, जिससे 24/7 पृथ्वी की निगरानी की जा सकती है।
निसार के बारे में यह भी जानें...
- 2.5 टन वजनी है निसार सैटेलाइट
- 748 किमी पृथ्वी के ऊपर एक से दूसरे ध्रुव तक परिक्रमा करेगा।
- 12 दिन का होगा निसार सैटेलाइट का स्कैन चक्र।
- 240 किमी का क्षेत्र एक बार में कवर करेगा।
- 3 साल है निसार का नियोजित जीवनकाल
- 80 टेराबाइट डेटा हर दिन उपलब्ध कराएगा।
- 150 से ज्यादा हार्ड ड्राइव निसार के डेटा से भर जाएंगी।
- निसार मिशन सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 102वां लॉन्च है।
मिशन NISAR में कितनी लागत लगी?
निसार मिशन की कुल लागत करीब 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 13,120 करोड़ रुपये है। इसमें इसरो का हिस्सा करीब 9.3 करोड़ डॉलर (813 करोड़) और नासा का हिस्सा 1.118 बिलियन डॉलर (9779 करोड़ रुपये) है। यह दुनिया का सबसे महंगा पृथ्वी-अवलोकन सैटेलाइट (Earth-observation satellite) है।
इसरो और नासा ने क्या कहा?
निसार हर मौसम में 24 घंटे पृथ्वी की फोटो खींच सकता है। यह भूस्खलन का पता लगा सकता है, आपदा प्रबंधन में मदद कर सकता है और जलवायु परिवर्तन पर भी नजर रख सकता है। इस सेटेलाइट से भारत, अमेरिका समेत पूरी दुनिया को लाभ होगा। यह पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी के लिए भी महत्वपूर्ण है। - वी. नारायणन, अध्यक्ष, इसरो
यह अमेरिका और भारत के बीच पृथ्वी का इतने विस्तृत तरीके से अवलोकन करने वाला पहला मिशन है। -निकोला फॉक्स, नासा विज्ञान मिशन निदेशालय की एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर
इसरो अध्यक्ष वी. नारायण ने बताया कि निसान के सफल प्रक्षेपण के बाद अगले साल दो में अन्य मानवरहित मिशन भी लांच किए जाएंगे। इस साल दिसंबर में व्योम मित्र नामक मानव रोबोट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। फिर मार्च 2027 में गगनयान मिशन लांच किया जाएगा। गगनयान मिशन में पृथ्वी की 400 किलोमीटर पर स्थित निचली कक्षा में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजा जाएगा।
निसार को अंतरिक्ष में क्यों भेजा?
धरती में लगातार बदलाव हो रहे हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तट रेखाएं पीछे खिसक रही हैं और ये परिवर्तन इतने धीमे होते हैं कि आमतौर पर किसी का ध्यान नहीं जाता। अब NISAR का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की सतह, पर्यावरण और प्राकृतिक प्रक्रियाओं की निगरानी करना है।
निसार सैटेलाइट हर 12 दिनों में पूरी धरती को स्कैन करेगा, जिससे धरती की सतह के परिवर्तन का हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा मिल सकेगा। यह कुछ सेंटीमीटर जितने छोटे बदलावों को भी रिकॉर्ड कर लेगा। यह भू-आकृति, बायोमास और सतह की ऊंचाई को 5-10 मीटर रिज़ॉल्यूशन के साथ मापेगा।
- निसार के डाटा से भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और भूस्खलन जैसे खतरों को भांप जा सकता है और भूकंप व बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा।
- यह सैटेलाइट क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को समझने, खेती-किसानी के लिए मिट्टी का विश्लेषण करने और बुनियादी ढांचे की निगरानी करने के भी काम करने में भी मददगार साबित होगा।
- किसानों के लिए यह पैदावार का पूर्वानुमान लगाने और फसल के नुकसान का आकलन करने में मदद करेगा। यह तेल रिसाव के दौरान भी सहायता करेगा।
1978 से जुड़ी हैं जड़ें
निसार की जड़ें 1978 में हुए एक सफल प्रक्षेपण से जुड़ी हैं, जब नासा ने सीसैट को कक्षा में स्थापित किया था। यह दुनिया का पहला एसएआर उपग्रह था। यह मिशन केवल 105 दिनों तक चला, लेकिन इस उपग्रह के आंकड़ों ने पृथ्वी अवलोकन को नया रूप दिया। अब, सीसैट के लगभग 50 साल बाद निसार को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
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