बांग्लादेश सरकार हमारे कोर्ट में अपील कर केस जीते...फिर होगी शेख हसीना को लौटाने पर बात- पिनाक रंजन चक्रवर्ती
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर बांग्लादेश सरकार की मांग पर, पूर्व राजनयिक पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने कहा कि कानूनी प्रक ...और पढ़ें

बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती।
रूमनी घोष, नई दिल्ली। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद वहां की अंतरिम सरकार भारत से लगातार उनके प्रत्यर्पण की मांग कर रही है। अब तक वह दो बार चिट्ठी लिखकर अनुरोध कर चुकी है। बीते सप्ताह भारत ने भी आश्वासन दिया है कि वह इसकी जांच कर रहा है। पूर्व राजनयिक व बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती इस जवाब के कूटनीतिक मायने की व्याख्या करते हैं। उनका कहना है कि द्विपक्षीय समझौते के मुताबिक बांग्लादेश सरकार को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। वह हमारे कोर्ट में अपील करे, सुबूत दे, केस जीते... फिर शेख हसीना को लौटाने की बात आएगी।
37 साल के करियर में चक्रवर्ती बांग्लादेश में दो कार्यकाल में पदस्थ रहे। 1999 से 2002 तक वह उप उच्चायुक्त थे। 2007 में उन्होंने भारत के उच्चायुक्त की जिम्मेदारी संभाली। उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पैदाइश, देहरादून में स्कूली पढ़ाई और दिल्ली में उच्च शिक्षा होने के बावजूद बांग्ला संस्कृति और भाषा पर उनकी पकड़ बांग्लादेशियों के बीच घुलने-मिलने में मददगार साबित हुई। पैतृक सूत्रों के जरिये बांग्लादेश के विक्रमपुर (विभाजन से पहले भारत का हिस्सा) से उनका जुड़ाव यहां की स्थिति को समझने में काम आया। उन्होंने एन्क्लेव जैसे पुराने मुद्दे को हल करने के लिए बांग्लादेश-भारत सीमा को फिर से बनाने का आह्वान किया था। वह थाईलैंड में बतौर राजदूत पदस्थ रहे।
इसके अलावा पाकिस्तान, काहिरा, जेद्दा, तेल अवीव, इजरायल में भी राजनयिक मिशनों पर रहे। 2011 में विशेष सचिव (सार्वजनिक कूटनीति) नियुक्त किया गया था। फिर विदेश मंत्रालय में आर्थिक संबंध सचिव बनाया गया। दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश लौटने की संभावना, राजनीतिक अस्थिरता व आगामी चुनाव को लेकर बनती परिस्थितियों पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या भारत सरकार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सौंपना पड़ेगा? भारत की ओर से अगला कदम क्या होगा?
बांग्लादेश और भारत के बीच द्वीपक्षीय प्रत्यर्पण संधि है। यह भी सही है कि हमारी सरकार इसे मानने के लिए बाध्य है, लेकिन इसकी एक तयशुदा प्रक्रिया है। इसके तहत बांग्लादेश की वर्तमान सरकार को आवेदन करना होगा, जो उन्होंने किया। दिसंबर 2024 में उन्होंने पहला पत्र लिखकर प्रत्यर्पण की मांग की थी। बांग्लादेश की विशेष अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद हाल ही में उन्होंने दूसरा पत्र लिखा है। भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इसकी जांच करेंगे। अब भारत के अगले कदम के बारे में बात करें तो प्रत्यर्पण संधि के आर्टिकल छह और आठ के तहत कई छूट दी गई हैं। इसमें सबसे अहम यह है कि राजनीतिक प्रकृति के अपराध के लिए किसी को भी प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता है।
शेख हसीना को छात्रों पर गोली चलवाने के लिए ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई गई है। भारत सरकार इसे किन-किन तर्कों के साथ नकार सकती है?
पहला, बांग्लादेश की वर्तमान अंतरिम सरकार ने चिट्ठी जरूर लिखी है, लेकिन कोई सबूत नहीं दिए हैं। दूसरा, शेख हसीना ने स्वयं गोली नहीं चलाई थी और न ही गोली चलाने वाली सैन्य वाहिनी उनके द्वारा नियुक्त की गई थी। तीसरा, वर्तमान अंतरिम सरकार को संविधान में मान्यता नहीं है। उस पर सरकार ने जजों की पूरी बेंच को हटाकर नए जजों (कथित तौर पर जमात ए इस्लामी समर्थित) की नियुक्ति की। उसके बाद उन जजों की बेंच ने शेख हसीना को सजा सुनाई। इस पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल है। मुझे लगता है कि प्रत्यर्पण आवेदन की जांच के दौरान भारत सरकार की ओर से यह सभी बिंदु प्रमुखता से उठाए जाएंगे। इसके अलावा हमें यह भी देखना होगा कि बांग्लादेश की वर्तमान सरकार में शेख हसीना के खिलाफ जिस तरह का आक्रोश है, हो सकता है कि वह सौंपते ही उनकी हत्या करवा दे।
तो क्या बांग्लादेश विरोध नहीं करेगा? उसके पास क्या-क्या विकल्प खुले हैं?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चाहे तो कानूनी प्रक्रिया अपना सकती है, यानी वह हमारे कोर्ट में अपील करें और शेख हसीना को लौटाने की मांग करें। इसके लिए उन्हें शेख हसीना पर लगाए गए आरोपों के सबूत देने होंगे। भारत सरकार भी इसमें अपना पक्ष रखेगी। सभी पक्षों को जांचने के बाद यदि कोर्ट प्रत्यर्पण के आदेश देती है तो इसके खिलाफ शेख हसीना अपील कर सकती हैं। इन सब प्रक्रियाओं के बाद यदि बांग्लादेश सरकार केस जीत जाती है, तो फिर शेख हसीना को लौटाने पर बात होगी।
माना जाए कि प्रक्रिया बहुत लंबी होगी?
निश्चित रूप से। हमारे यहां कानूनी प्रक्रिया रातोंरात पूरी नहीं होती है। सारे पहलुओं पर विचार होता है। आप भारत के मामलों को ही देख लीजिए। क्या प्रत्यर्पण के लिए हमें समय नहीं लग रहा है... हम भी संबंधित देशों की कोर्ट में अपील करते हैं। अपना पक्ष रखते हैं। सुबूत देते हैं। वैसे भी शेख हसीना को जिस तरह से सजा सुनाई गई, इसमें कोई भी यह नहीं कह सकता है कि यह राजनीति से प्रेरित नहीं है।
लेखिका तस्लीमा नसरीन भी लंबे अरसे से भारत की शरण में हैं। क्या उनके समय भी ऐसी स्थिति सामने आई थी?
भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और लेखिका तस्लीमा नसरीन दोनों को शरण जरूर दिया है, लेकिन बांग्लादेश ने कभी भी तस्लीमा नसरीन के लिए अधिकृत प्रत्यर्पण की मांग नहीं की है। बेशक वह खुद कहती रही हैं कि वह अपने लोगों के बीच लौटना चाहती हैं, लेकिन वहां से बार-बार यही प्रतिक्रिया आती रही कि वह यदि लौटीं तो उन्हें मार दिया जाएगा, इसलिए वह भारत में ही निर्वासित जीवन बिता रही हैं।
क्या शेख हसीना कभी लौट पाएंगी?
अभी तो कहना मुश्किल है। हमें यह भी याद रखना पड़ेगा जब 1975 में उनके पिता मुजीबुर्रहमान और परिवार के सदस्यों की हत्या हो गई थी, तब भी उन्होंने भारत में शरण ली थी। उसके 10 साल बाद वह अपने देश लौट पाई थीं। अब वह 78 वर्ष हो गई हैं, इसलिए सक्रिय राजनीति में उनकी भूमिका पर सवाल है। हालांकि मार्गदर्शक बनी रहेंगी।
बांग्लादेश सरकार के मुखिया डा. यूनुस के भागने की खबरों में कितनी सच्चाई है?
वह खुद ही कहते रहते हैं कि मैं तो तंग आ गया हूं। मैं चुनाव करवाकर चला जाना चाहता हूं, लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि उनके भीतर बहुत लंबे अरसे से राजनीतिक पद पर बैठने की इच्छा थी। यदि आप पुराना इतिहास खंगालेंगे तो पाएंगे कि जब 2007 में बांग्लादेश में केयर टेकर सरकार बनी थी, तब भी उन्होंने राजनीतिक पद लेने की कोशिश की थी। उन्होंने पार्टी भी बनाई थी, लेकिन तब वह सफल नहीं हुए। इस बार अमेरिका की मदद से वह सफल हो गए। मुझे नहीं लगता है कि वह सत्ता से दूर जाना चाहेंगे। जहां तक भागने की बात है तो इसके लिए वह खुद जिम्मेदार होंगे। उन्होंने जमात ए इस्लामी को इतनी खुली छूट दे दी कि यही उनके लिए गले की हड्डी बन गई है। जमात की अराजकता से आम लोग परेशान हैं। यही चिंता उनको सता रही है।
यूनुस सरकार का विरोध क्यों हो रहा है?
बांग्लादेश में अपने कार्यकाल के दौरान डा. यूनुस से मैं कई बार मिला। वह अमेरिका के पिट्ठू हैं। यह तो शेख हसीना सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि बांग्लादेश के तख्ता पलट में ‘व्हाइट मैन’ (यानी अमेरिका) की भूमिका रही है। अमेरिका ने अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए यूनुस को सत्ता में बिठाया है। हाल ही में चटगांव बंदरगाह के एक हिस्सा नियंत्रण उन्होंने बगैर बिडिंग (बोली) के ही अमेरिका को दे दिया। इसके विरोध में वहां हड़ताल हो गई। कमर्शियल गैस का नियंत्रण पहले से ही अमेरिका के हाथों में चला गया है।
हसीना सरकार के खिलाफ आक्रेश था उनके हटाने के बाद भी बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता क्यों नहीं आई?
बांग्लादेश में कभी भी राजनीतिक स्थिरता नहीं रही है। वहां हर राजनीतिक विवाद बहुत ही 'फ्रैक्चर्ड' (टूट-फूट से भरा हुआ) और खून-खराबे से भरा हुआ है। पाकिस्तान की तरह यहां भी सैन्य तानाशाही का प्रभाव रहा। उन्होंने मारा और वे खुद भी मारे गए। शेख मुजीबुर्रहमान को हटाकर जियाउर रहमान सत्ता में आए। जियाउर रहमान ने बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) पार्टी बनाई। सैन्य तानाशाही के माध्यम से उन्हें सत्ता से हटाया गया। इसके बाद भी लंबे समय तक यह क्रम चला। 2001 से 2006 के बीएनपी-जमात सरकार के त्रस्त होकर लोगों ने विद्रोह किया। उस वक्त सेमी कू हुआ था। मैं उस वक्त वहीं था। पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी राजनीतिक दलों की मानसिकता ही ऐसी है कि कोई एक-दूसरे पर यकीन नहीं करता है। इसी वजह से वहां पाकिस्तान की तरह केयर टेकर सरकार बनी थी। फिर 2008 में भारी बहुमत से आवामी लीग सत्ता में लौटी और शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी थीं। अन्य सरकारों की तुलना में शेख हसीना ने आर्थिक पहलुओं के विकास पर बहुत जोर दिया। यही वजह है कि उनके नेतृत्व में बांग्लादेश, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकोनमी के रूप में उभरा। भारत के साथ ट्रेड बढ़ाकर 18
भविष्य में वहां राजनीतिक स्थिरता की क्या संभावना है? वहां की जनता क्या चुनाव करवाना चाहती है?
वहां की आम जनता तो चुनाव चाहती है, लेकिन राजनीतिक दल चुनाव करवाने को लेकर एकमत नहीं हैं। जमात ए इस्लामी (जमात) और एनसीपी (नेशनल सिटीजन पार्टी) आश्वस्त नहीं हैं कि चुनाव हुए तो वे जीत जाएंगे। यही वजह है कि बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी आवामी लीग के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। वहीं, बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) को लग रहा है कि इस बार वह सत्ता में लौट सकती है। यही वजह है कि वह आवामी लीग के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाए जाने का विरोध कर रही है। क्योंकि आवामी लीग के बगैर चुनाव हुआ तो दुनिया इसे निष्पक्ष चुनाव नहीं मानेगी और अस्थिरता बनी रहेगी।
पिछले चुनाव में हसीना सरकार पर भी तो निष्पक्ष चुनाव नहीं करवाने का आरोप था?
हां, बिलकुल। यह आरोप लगता रहा है, लेकिन उस समय बीएनपी ने खुद चुनाव का बहिष्कार किया था।
केयर टेकर सरकार और 2008 के उस चुनाव के दौरान आप वहीं पदस्थ थे, जब शेख हसीना की सरकार भारी बहुमत से सत्ता में लौटी थीं। आखिर भारत पर हमेशा बांग्लादेश की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का आरोप क्यों लगाया जाता है?
मुझे इस सवाल का सामना बहुत बार और बहुत ज्यादा करना पड़ा। मैं हमेशा यह कहता आया हूं कि शेख हसीना सरकार चला रही थी और हम उस सरकार के साथ काम कर रहे थे। चुनाव में शेख हसीना सही या गलत जिस भी तरीके से जीती हैं, उसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दल और वहां की व्यवस्थागत प्रणाली जिम्मेदार है। इसमें भारत की कोई भूमिका नहीं है।
जमात ने तो बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर्रहमान की मूर्तियों को तोड़ा, मुक्ति युद्ध की स्मृतियों को मिटा दिया, फिर वहां की जनता उन्हें वोट क्यों और कैसे देगी?
हमें यह मानना होगा कि 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान जमात को मानने वालों का एक वर्ग ऐसा था, जो पाकिस्तान से अलग नहीं होना चाहता था। इन्होंने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर लाखों बांग्लादेशियों पर अत्याचार किया था। सत्ता में आने के बाद वह अपने साथ जुड़े इस काले हिस्से को मिटा देना चाहते हैं। मुक्ति युद्ध लड़ने वाली पीढ़ी धीरे-धीरे सिमट रही है। जब नई पीढ़ी के सामने से मुक्ति युद्ध की सारी स्मृतियों को मिटा दिया जाएगा, तो वह इसे भूल जाएंगे। यह भी ध्यान रखना होगा कि जमात ए इस्लामी का सामाजिक दखल है। बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य करते हैं। कोचिंग सेंटर व मदरसा चलाते हैं। जिसके जरिये ‘ब्रेन वाश’ करते रहते हैं। यह सब योजनाबद्ध ढंग से चल रहा है
यदि चुनाव हुए तो क्या जेन-जी की भूमिका होगी? कहा जा रहा है नई पीढ़ी में ज्यादा कट्टरता है। क्या यह सही है?
जेन-जी की बड़ी भूमिका रहेगी। उसी के जोर पर जमात ए इस्लामी उछल रहा है। एनसीपी को भी लग रहा है, उन्हें भी वोट मिलेगा। हालांकि दोनों ही कभी 20-25 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं ला सके। जेन-जी को साधने के लिए ही जमात बहुत चतुराई से बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की सभी स्मृतियों को मिटाने में जुटा है। जहां तक कट्टरता की बात है तो मुझे लगता है कि पाकिस्तान या अन्य इस्लामिक देशों की तुलना में आम बांग्लादेशी ज्यादा प्रगतिशील है। ...इसलिए आने वाले समय में कुछ बेहतरी की उम्मीद है।
और चीन के साथ मिलकर यूनुस ‘चिकन नेक’ को काटकर पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की धमकी दे रहे थे। इसका हमारे पास क्या विकल्प मौजूद है?
मलक्का जलडमरूमध्य है। यह इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और मलय प्रायद्वीप के बीच स्थित एक महत्वपूर्ण समुद्री जलमार्ग अंडमान सागर (हिंद महासागर के सीमांत हिस्सा) और दक्षिण चीन सागर (प्रशांत महासागर का हिस्सा) को जोड़ता है। यह एशिया और मध्य पूर्व के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग है और विश्व के एक चौथाई व्यापारिक माल का यातायात इसी मार्ग से होता है। अंडमान-निकोबार के पास भारत ने सैन्य बेस इसलिए बनाया है। चीन का अधिकांश माल इसी कारिरोड से जाता है। चेक एंड बैलेंस के लिए सबके पास कुछ न कुछ विकल्प हैं।
बांग्लादेश, पाकिस्तान के साथ सैन्य गतिविधि बढ़ा रहा है। चीन से रिश्ते मजबूत कर रहा है। अमेरिका से हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं। ऐसे में भारत का परिदृश्य क्या है?
यह सही है कि पूर्वी हिस्से में भी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर हमारा मोर्चा खुल गया है, लेकिन आपरेशन सिंदूर के बाद दुनिया को साफ संदेश है कि भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी। पाकिस्तान-बांग्लादेश मिलकर दबाव बनाना चाहते हैं। अमेरिका और चीन का उद्देश्य सिर्फ भारत की ग्रोथ को रोकना है।

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