पीएम मोदी के कूटनीतिक दांव से बढ़ी ग्लोबल साउथ की धमक, पश्चिमी देश भी हो रहे हैरान
प्रधानमंत्री मोदी का एससीओ सम्मेलन में भाग लेना एक महत्वपूर्ण कदम था जिससे पश्चिमी देश चिंतित हैं। ट्रंप की नीतियों के कारण भारत रूस और चीन की बढ़ती निकटता वैकल्पिक विश्व व्यवस्था का संकेत दे रही है। चीन और भारत ने आर्थिक और रणनीतिक हितों को समझते हुए सहयोग बढ़ाया है। भारत को यह अहसास हुआ कि व्यापार में विविधता जरूरी है।

जेएनएन, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एससीओ सम्मेलन में जाना एक बड़ा कूटनीतिक दांव था। पीएम मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की एक फ्रेम में तस्वीरें देख कर पश्चिमी दुनिया बेचैन है।
अमेरिका और यूरोप के विशेषज्ञ और नेता इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को जिम्मेदार बता रहे हैं। ट्रंप टैरिफ के जवाब में भारत की रणनीतिक पैतरेबाजी से खुद अमेरिका हैरान है। भारत को लेकर आग उगल रहे ट्रंप और उनके सहयोगियों के सुर बदले हुए दिख रहे हैं। भारत, रूस और चीन की जुगलबंदी वैकल्पिक वर्ल्ड आर्डर का संकेत दे रही है।
चीन और भारत ने समझी व्यावहारिक जरूरत
चीन और भारत के संबंध दशकों से जटिल रहे हैं। इसका कारण दोनों देशों के बीच करीब चार हजार किलोमीटर सीमा का लेकर विवाद है। 2020 में गलवान संघर्ष के बाद यह संबंध बेहद खराब हो गए थे। हालांकि 2023 के बाद संबंधों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन ट्रंप 2.0 की नीतियों ने दोनों देशों को अहसास कराया कि बदली हुई परिस्थतियों में मतभेदों के बावजूद आर्थिक और दूसरे आपसी हितों के मुद्दों पर मिल कर काम करने की जरूरत है।
सारे अंडे एक टोकरी में रखने का जोखिम, व्यापार के मोर्चे पर भी विविधता जरूरी
ट्रंप के 50 प्रतिशत टैरिफ के बाद भारत में नीति निर्माताओं को अहसास हुआ कि सभी अंडे एक टोकरी में रखने का जोखिम क्या होता है। अमेरिका 30 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। निर्यात के लिए अमेरिका के बाजार पर भारत की निर्भरता काफी अधिक है।
व्यापार संतुलन बड़े अंतर से भारत के पक्ष में है। ट्रंप शायद इसी को हथियार बना कर भारत से अपनी शर्तों पर व्यापार समझौता करना चाहते थे। नीति निर्माताओं को समझ आया कि विविधता न सिर्फ रक्षा आपूर्ति में जरूरी है बल्कि व्यापार के मोर्चे पर भी किसी एक देश पर अधिक निर्भरता राष्ट्रीय हितों को जोखिम में डाल सकती है।
चीन 19 ट्रिलियन डालर के साथ दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन में निर्यात बढ़ाने की गुंजाइश भी है। चीन से आयात भी भारत जैसे तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था के लिए अहम है क्योंकि भारतीय उद्ममी चीन से कच्चा माल लेते हैं और उत्पाद बना कर निर्यात करते हैं।
आर्थिक विकास है साझा जरूरत
चीन का मकसद वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका को हटा कर उसकी जगह लेना है। ऐसे में उसे अगले 20 वर्ष तक शांति चाहिए। वहीं, भारत को 2047 तक खुद को विकसित देश बनाना है, जाहिर है शांति और स्थिरता के बिना इस लक्ष्य को हासिल करना कठिन होगा। रिश्ते सुधारने की पहल चीन की ओर से हुई और ट्रंप टैरिफ और ट्रंप के पाकिस्तान के प्रति नए उमड़े प्रेम ने ऐसे हालात पैदा हुए जिसमें भारत ने चीन के प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी शुरू की।
चीन में आयोजित किए गए एससीओ सम्मेलन में पीएम मोदी की मौजूदगी इसी प्रक्रिया की परिणित थी। उसी एससीओ सम्मेलन में जिससे पीएम मोदी ने कई वर्षों से दूरी बना रखी थी।
अमेरिका देने लगा रणनीतिक रिश्तों की दुहाई
ट्रंप और उनके सहयोगियों को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि टैरिफ के जवाब में भारत इस तरह की रणनीतिक पैतेरेबाजी कर सकता है। अमेरिका के रणनीतिकार रणनीतिक स्वायत्ता की भारत की नीति और उसकी अर्थव्यवस्था की गहराई को ठीक से समझ नहीं पाए। जब एससीओ सम्मेलन में मोदी, चिनफिंग और पुतिन एक साथ जुगलबंदी कर रहे थी, उसी समय भारत में अमेरिका का दूतावास भारत और अमेरिका के रणनीतिक रिश्तों और दोस्ती का बखान कर रहा था।
अमेरिका के नेता और विशेषज्ञ भारत जैसे सहयोगी को चीन और रूस के करीब ढकेलने के लिए ट्रंप को कोस रहे थे। फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब का बयान काबिलेगौर है। उन्होंने कहा है कि ग्लोबल साउथ खास कर भारत को लेकर विदेश नीति में ज्यादा गरिमापूर्ण होनी चाहिए वरना हम गेम हार जाएंगे।
इसलिए बेचैन हैं पश्चिमी देश
अमेरिका अब भी दुनिया की महाशक्ति है यह हकीकत है लेकिन यह भी हकीकत है कि अमेरिका का दुनिया पर अब पैसा प्रभुत्व नहीं है, जैसा दो दशक पहले हुआ करता था। यूरोप की अर्थव्यवस्था पहले से तबाह है। यूरोप लंबे समय तक अमेरिका की सैन्य शक्ति के कवर में खुद को सुरक्षित महसूस करता रहा है। ट्रंप की नीतियों से यूरोप में खुद असुरक्षा पैदा हो गई है। चीन
की आर्थिक और सैन्य शक्ति पश्चिमी दुनिया के पहले से चिंता का कारण है। ऐसे में इस बात की संभावना भी पश्चिमी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती बन जाती है, जहां भारत, रूस और चीन के साथ खड़ा हो। वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले ब्रिक्स और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंच इनकी असुरक्षा को बढ़ाने के लिए पर्याप्त ताकत रखते हैं।
(नोट: अमेरिका का रक्षा खर्च इसलिए ज्यादा है क्योंकि दुनिया के हर कोने में उसके सैन्य अड्डे हैं। सेनाओं की तैनाती पर उसे बड़े पैमाने पर खर्च करना पड़ता है।)
भारत, रूस, चीन की संयुक्त ताकत
अमेरिका की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पेंटागन चीन की बढ़ती लगातार चिंता सैन्य क्षमताओं पर जताता रहा है। ऐसे में भारत, रूस और चीन की संयुक्त सैन्य और आर्थिक ताकत अमेरिकी वर्चस्व को इतिहास की बात बना सकती है। अमेरिका भी यह समझता है।
- 33% योगदान करते हैं वैश्विक आर्थिक उत्पादन में भारत, चीन, रूस
- 20% हिस्सेदारी है कुल वैश्विक वस्तु निर्यात में तीनों देशों की
- 38% हिस्सा रहता है भारत, चीन और रूस में वैश्विक आबादी का
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