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    गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर की क्या है खासियत? जहां पीएम मोदी भी हुए नतमस्तक; 5 प्वाइंट में जाने पूरा इतिहास

    Updated: Sun, 27 Jul 2025 04:04 PM (IST)

    Gangaikonda Cholapuram Temple प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के दो दिवसीय दौरे पर हैं। उन्होंने तिरुचिरापल्ली के प्रसिद्ध गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के दर्शन किए जिसे चोल राजाओं ने बनवाया था। चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने गंगा नदी तक जीत हासिल करने के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 1987 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया।

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    तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम में पीएम मोदी। फोटो- पीटीआई

    डिजिटल डेस्क, चेन्नई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के दो दिवसीय दौरे पर हैं। इस दौरान पीएम मोदी ने तमिलनाडु के प्रसिद्ध गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के भी दर्शन किए। इस मंदिर को चोल राजाओं की विरासत के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु के अरियालूर में स्थित इस मंदिर की कहानी बेहद दिलचस्प और रहस्यमयी है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से...

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    मंदिर में 13 फीट की शिवलिंग

    गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर तमिलनाडु के अरियालूर में मौजूद है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने 1035 ईसवीं में करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में 13 फीट ऊंची शिवलिंग देखने को मिलती है।

    गंगईकोंडा चोलपुरम का मतलब

    गंगईकोंडा का अर्थ होता है - "गंगा को जीतने वाला"। दरअसल चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने उत्तर में गंगा नदी तक जीत हासिल की थी। इस जीत के बाद उन्होंने खुद को गंगईकोंडा की उपाधि दी और इसी जीत की याद में उन्होंने गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर का निर्माण करवाया था।

    देश से सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक

    गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर का नाम देश के सबसे ऊंचे और भव्य मंदिरों की फेहरिस्त में शुमार है। इस मंदिर के शिखर या विमान की ऊंचाई 55 मीटर है, जो इसे देश के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक बनाती है। यह मंदिर 341 फीट लंबा और 100 फीट चौड़ा है। वहीं, मंदिर के आंगन की लंबाई 170 मीटर और चौड़ाई 98 मीटर है।

    1987 में बनी यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट

    1987 में यूनेस्को (UNESCO) ने ग्रेट लिविंग चोला टेंपल को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। मंदिरों की लिस्ट में देश के सबसे बड़े मंदिर बृहदेश्वर मंदिर समेत गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर का नाम भी मौजूद था।

    मंदिर के नामपर बसा पूरा शहर

    राजेंद्र प्रथम ने चोल साम्राज्य की राजधानी भी तंजावुर से गंगईकोंडा चोलपुरम शिफ्ट कर दी थी। इसके बाद लगभग 250 सालों तक यही चोल साम्राज्य की राजधानी थी। इस पूरे शहर की किलेबंदी करवाई गई थी। इसकी बाहरी दीवारें 6-8 फीट चौड़ी थीं और ये युद्ध के दौरान शहर के लिए रक्षा कवच का काम करती थीं।

    आक्रमणों से फीकी पड़ी विरासत

    गंगईकोंडा चोलपुरम में ढेर सारे मंदिर थे। हालांकि, मध्यकाल में एक के बाद एक आक्रमण के कारण यह मंदिर नष्ट कर दिए गए। मगर, गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर आज भी मौजूद है। 2017 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था। इस दौरान मंदिर में ध्वजास्तंभ स्थापित हुआ और मंदिर में महा कुंभाभिषेकम परंपरा की शुरुआत हुई।

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