'संविधान में जानबूझकर...', प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस, केंद्र ने कहा- 'जानबूझकर कोई...'
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रेशीडेंशियल रिफरेंस का समर्थन करते हुए कहा कि संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधेयक पर निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान सभा की बहस का हवाला दिया। केरल और तमिलनाडु ने सुनवाई पर आपत्ति जताई लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रेशीडेंशियल रिफरेंस का समर्थन करते हुए उसमें उठाए गए संवैधानिक मुद्दों पर पक्ष रखा। केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान में विधेयक पर निर्णय लेने के संबंध में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए जानबूझकर कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता की बहस बुधवार को भी जारी रहेगी।
इससे पहले केरल और तमिलनाडु सरकार की ओर से सुनवाई पर आपत्ति जताई गई और कहा गया कि कोर्ट पहले ही जो फैसला दे चुका है उस पर रेफरेंस का कोई अर्थ नहीं। लेकिन मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि राष्ट्रपति ने रेफरेंस भेजकर राय मांगी है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। विधि अधिकारी सुप्रीम कोर्ट में प्रेसिडेंशियल रिफरेंस पर शरू हुई सुनवाई में अपना पक्ष रख रहे थे।
CJI की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने रिफरेंस में उठाए गए संवैधानिक मुद्दों पर पक्ष रखते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 में (विधेयकों पर निर्णय के बारे में) राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधा नहीं कहा जा सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए विधेयकों को डीम्ड एसेंट यानी मंजूर मान लेने का आदेश नहीं दे सकता। वेंकटरमणी तमिलनाडु के मामले में दिए फैसले का हवाला देते हुए यह दलील दे रहे थे।
राज्यपाल-राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं
केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी बहस शुरू कर दी है। मेहता ने अनुच्छेद 200 और 201 के बारे में संविधान सभा में हुई बहस और पुराने कानूनी इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान में जानबूझ कर विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है।
उन्होंने कहा कि संविधान में जल्दी से जल्दी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा कि वैसे हर संवैधानिक अथारिटी से उम्मीद की जाती है कि वह संविधान के मुताबिक अपना कर्तव्य निभाएंगे, लेकिन वे बाध्य नहीं हो सकते। कोर्ट कोई समय सीमा तय नहीं कर सकता।
राष्ट्रपति को समय सीमा में नहीं बांधा जा सकता
चीफ जस्टिस बीआर गवई की टिप्पणी थी कि संविधान सभा की बहस को देखने से लगता है कि एक तर्कसंगत समय की बात की गई है यहां तक कि कुछ सदस्यों को तो छह सप्ताह का समय भी ज्यादा लग रहा था। लेकिन मेहता ने कहा कि संविधान निर्माताओं का सोचना था कि राष्ट्रपति को समय सीमा में नहीं बांधा जा सकता। जबकि यहां मुद्दा ये है कि हमने इसे तीन महीने कर दिया है।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वह तमिलनाडु के फैसले पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं वे संविधान सभा में हुई बहस पर कह रहे हैं। मेहता की बहस बुधवार को भी जारी रहेगी।
केरल और तमिलनाडु ने दायर की याचिका
केरल और तमिलनाडु की ओर से पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी और केके वेणुगोपाल का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट के लिए रिफरेंस का जवाब देना जरूरी नहीं है। जो मुद्दे किसी जजमेंट में तय हो चुके हैं उन पर रिफरेंस में जवाब नहीं दिया जाता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अनुच्छेद 141 के तहत सभी पर बाध्यकारी होता है।
संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करते हैं ऐसे में ये रिफरेंस केंद्र का है। केंद्र ने उस फैसले के खिलाफ न पुनर्विचार और न ही क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है बल्कि रिफरेंस दाखिल करके जजमेंट को परोक्ष रूप से चुनौती दी है।
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