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    भारत रक्षा पर्व: जब पाकिस्तानी सेना में भर्ती हुआ भारत का एजेंट... लेकिन RAW की एक गलती ने बिगाड़ दिया 'ब्लैक टाइगर' का खेल

    Updated: Wed, 30 Jul 2025 05:45 PM (IST)

    रवींद्र कौशिक जिन्हें ब्लैक टाइगर के नाम से जाना जाता है एक भारतीय जासूस थे। रॉ ने उन्हें पाकिस्तान में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए भर्ती किया था। उन्होंने नबी अहमद शाकिर के नाम से पाकिस्तानी सेना में भर्ती होकर महत्वपूर्ण जानकारी भारत भेजी। 1983 में एक एजेंट की लापरवाही के कारण उनकी पहचान उजागर हो गई।

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    रवींद्र कौशिक अभिनय गॉड गिफ्ट में मिला था (फोटो: जेएनएन)

    लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान। जासूसी दुनिया में अनगिनत कहानियां दबकर रह जाती हैं, जबकि उन कहानियों के नायक असली हीरो होते है, सच्‍चे देशभक्‍त और मां भारती के अमर सपूत होते हैं। वे देश की खातिर गुमनामी में जिए। दुश्‍मन देशों में पकड़े जाने पर जुर्म और सितम सहे, लेकिन होठों को सिए रहे। भूखे-प्‍यासे,  निवालों और दो घूंट पानी का तड़पते हुए देश की सेवा में मर-मिटे, लेकिन तिरंगे की आन-बान और शान पर आंच नहीं आने दी। उन्‍हें न वीरता के तमगों से नवाजा गया और न सेना की परेड में सम्‍मानित किया गया।

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    भारत रक्षा पर्व की सीरीज में आज कहानी उस नायक की, जिसने वतन के लिए अपनी पहचान और परिवार छोड़ दिया। दुश्‍मन देश की सेना में शामिल हुआ और फिर रॉ एजेंट की एक गलती के चलते पकड़े जाने पर बेहद दर्दनाक मौत मिली, लेकिन उफ्फ तक नहीं की।

    वह नायक है- रवींद्र कौशिक। रवींद्र राजस्थान की धरती पर जन्मा वह युवक, जिसे उसकी काबिलियत के लिए ब्लैक टाइगर नाम दिया गया था। पाकिस्तान के ताने-बाने में पूरी तरह विलीन हो गया इस शख्स की धड़कन हर एक पल भारत के लिए धड़कती रही।

    रॉ ने की थी भर्ती

    वो 1970 और 80 का दशक था। भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के समय की कड़वाहट अब दुश्मनी में बदल चुकी थी। दोनों देशों का इतिहास एक जैसा था, इसलिए जासूसी का खेल शुरू हो चुका था। 1962 और 1965 की जंग के बाद भारत को एक खुफिया एजेंसी बनाने की जरूरत महसूस हुई और इसी क्रम में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW)  की नींव रखी गई।

    रॉ ने लोगों की भर्ती के लिए अपने एजेंट को काम पर लगाया हुआ था। ये लोग अलग-अलग कैंपस में जाकर युवाओं को उनकी क्षमता के आधार पर चुनते थे। रवींद्र कौशिक की जिंदगी भी इस तरह के मोड़ पर पहुंची। राजस्थान के श्रीगंगानगर इलाके से आने वाला रवींद्र कौशिक अभिनय गॉड गिफ्ट में मिला था।

    गॉड गिफ्ट में मिला था अभिनय

    • उनके मन में अपनी एक दुनिया थी, जिसने हमेशा उसे दूसरों से अलग बनाया। रवींद्र की एक खासियत थी। वह किसी भी लहजे में अपने आप को ढाल लेते थे। कॉलेज के दौरान जब वह मंच पर परफॉर्म करते थे, तो दर्शक तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाते थे। रॉ में भर्ती कराने वाले एजेंटों का ध्यान भी रवींद्र की तरफ भी इसी वजह से गया था।
    • रॉ को अपनी एजेंसी में ऐसे लोगों की जरूरत थी, जो पाकिस्तान के उन संस्थानों में जाकर भारत के आंख-नाक और कान बन सकें, जहां हर किसी की एंट्री नहीं हो पाती। रवींद्र कौशिक को इसके लिए चुन लिया गया। 70 के दशक के मध्य तक कई सीक्रेट ऑडिशन हुए, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया गया और फिर रवींद्र कौशिक को उनकी जिंदगी के सबसे बड़े अभिनय की जिम्मेदारी सौंपी गई।
    • रवींद्र कौशिक की सारी पहचान मिटा दी गई और उन्हें नए नाम, नए धर्म और नए देश के को आत्मसात करना पड़ा। रवींद्र कौशिक नया नाम मिला- नबी अहमद शाकिर। पहचान पक्की करने के लिए उनका खतना किया गया, इस्लामी धर्मशास्त्र को जुबानी याद कराया गया और इसके बाद बॉर्डर पार कर रवींद्र कौशिक उर्फ नबी अहमद शाकिर पाकिस्तान में दाखिल हुए।

    भारत को भेजी महत्वपूर्ण जानकारियां

    रवींद्र कौशिक ने कराची यूनिवर्सिटी में दाखिला किया और डिग्री पूरी कर पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गए। धीरे-धीरे उन्होंने अपने सीनियर और साथियों का विश्वास हासिल कर लिया और इस तरह उनकी रैंक भी बढ़ती चली गई।

    नबी अहमद शाकिर बने रवींद्र कौशिश ने निकाह किया और एक बच्चे के पिता बने, लेकिन इस पूरे दिखावटीपन में वह अपने देश के प्रति वफादारी निभाने से कभी पीछे नहीं हटे।

    उन्होंने भारत को कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां भेजीं, जो देश के लिए बेहद मददगार साबित हुईं। सिर्फ कुछ लोगों ही उनको असली नाम पता था और इसलिए उन्‍हें कोड नाम 'ब्लैक टाइगर' दिया गया। उनकी जानकारियां भारत के प्रधानमंत्री तक को अवाक कर देती थीं, लेकिन जासूसी की दुनिया जितनी रोमांचकारी दिखती है, उससे ज्यादा खौफनाक होती है। पकड़े जाने पर बेहद दर्दनाक मौत मिलती है। रवींद्र कौशिश के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ।

    एक फैसले ने खोल दिया भेद

    1983 का बसंत था। लंबे वक्त से रवींद्र कौशिक की तरफ से रॉ को कोई खुफिया जानकारी नहीं मिली थी। एजेंसी को शक हुआ कि कहीं रवींद्र ने कॉम्प्रमाइज को नहीं कर लिया है। इसके बाद दिल्ली में एक फैसला हुआ, जिसमें एक दूसरे व्यक्ति को बॉर्डर पार कर रवींद्र कौशिक से संपर्क करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन ये फैसला रवींद्र के लिए विनाशकारी साबित हुआ।

    रॉ ने जिस व्यक्ति को रवींद्र कौशिक से संपर्क करने के लिए भेजा था, वह कम अनुभवी और असावधान था। इस कारण पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने उसे पकड़ लिया और प्रताड़ित किए जाने पर उसने सारा सच उगल दिया। रवींद्र कौशिक को भेद भी खुल गया और उनका कोर्ट मार्शल कर मौत की सजा दे दी गई।

    (लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी)

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