पहले लोग संघ के काम पर हंसते थे, अब समाज में स्वीकार्यता बढ़ी- मोहन भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि पहले लोग आरएसएस के काम पर हँसते थे, पर अब समाज में इसकी स्वीकार्यता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि संघ की विचारधारा समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँच रही है और लोग स्वयंसेवकों के सेवा कार्यों से प्रभावित हो रहे हैं। भागवत ने समाज में सकारात्मक बदलाव का श्रेय संघ को दिया और युवाओं को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

मोहन भागवत। (फाइल)
जागरण संवाददाता,जयपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा, पहले लोग संघ के काम पर हंसते थे। हेडगेवार पर भी हंसते थे कि ऐसे बच्चे को लेकर यह राष्ट्र निर्माण करने चले हैं। इस तरह का उपहास होता था। विचार भी अमान्य था। अब समाज में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है। संघ का काम चर्चा और समाज के स्नेह का विषय बना हुआ है।
भागवत ने कहा, संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता है। इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति की आवश्यकता होती है, जो संघ के प्रत्यक्ष आने के बाद ही प्राप्त हो सकती है। भागवत रविवार को जयपुर में राजस्थान के दिवंगत प्रचारकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित ग्रंथ ''और यह जीवन समर्पित ''के विमोचन समारोह में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कई लोगों ने संघ की स्पर्धा में शाखाएं चलाने का उपक्रम किया। लेकिन, 15 दिन से ज्यादा किसी की शाखा नहीं चली। संघ की शाखा एक सौ साल से चल रही है और आगे बढ़ रही है, क्योंकि संघ स्वयंसेवकों के भाव-बल और जीवन बल पर चलता है।
डॉ. भागवत बोले कि संघ स्वयंसेवकों के भाव बल और जीवन बल से ही चलता है। मानसिकता से हर स्वयंसेवक प्रचारक हो जाता है। संघ अर्थात हम लोग स्वयंसेवक हैं। पहले यह कहा जाता था कि हिंदू संगठन मेंढ़क तोलने जैसी बात है, हो ही नहीं सकता।
हिंदू को काहे जगा रहे हो, मृत जाति है। अब डंके बज रहे हैं कि संघ के स्वयंसेवकों एवं प्रचारकों ने क्या-क्या किया है। पहले प्रचारक बनना मतलब अंधेरे में कूदना था, लेकिन एक भाव था,मेरी भारत माता के लिए मैं न करूं तो कौन करेगा। उस समय प्रचारक निकले और देशभर में गए।

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