'समाज को संगठित करना जानता है संघ, किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना', एक कार्यक्रम में बोले भागवत
उन्होंने कहा कि संघ को प्रत्यक्ष अनुभव किए बिना उसके बारे में राय मत बनाइए। संघ से जुड़ने के लिए शाखा में आइए, जो आपको अनुकूल लगे वह काम कर सकते हैं। संघ पूरे समाज को संगठित करना जानता है। संघ किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना है। वह व्यक्ति के निर्माण का काम करता है।

'समाज को संगठित करना जानता है संघ, किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना'- भागवत (फोटो- एक्स)
जागरण संवाददाता, जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि विविधताओं को कैसे संभालना है, यह हमें दुनिया को सिखाना है, क्योंकि दुनिया के पास ऐसा तंत्र नहीं है जो भारत के पास है।
उन्होंने कहा कि संघ को प्रत्यक्ष अनुभव किए बिना उसके बारे में राय मत बनाइए। संघ से जुड़ने के लिए शाखा में आइए, जो आपको अनुकूल लगे वह काम कर सकते हैं। संघ पूरे समाज को संगठित करना जानता है। संघ किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना है। वह व्यक्ति के निर्माण का काम करता है।
भागवत गुरुवार को संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र को परम वैभव सम्पन्न और विश्वगुरु बनाना किसी एक व्यक्ति के वश में नहीं है। इस काम में नेता, पार्टी, सरकार, महापुरुष और संघ जैसे संगठन सहायक हो सकते हैं, लेकिन मूल कारण नहीं बन सकते। यह सबका काम है और इसके लिए सबको साथ लेकर चलना है।
सरसंघचालक ने कहा कि संघ की स्थापना किसी एक विषय को लेकर नहीं हुई। संघ संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार क्रांतिकारी थे। वह इंडियन नेशनल कांग्रेस के बहुत सक्रिय कार्यकर्ता थे। असहयोग आंदोलन में उन पर राजद्रोह का अभियोग लगा।
उन्होंने बचाव में पक्ष रखना चुना क्योंकि इससे दोबारा भाषण का मौका मिलता। उनके वक्तव्य को सुनकर जज को कहना पड़ा कि उनका बचाव भाषण पहले से भी अधिक राजद्रोही है। डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि समाज में डेढ़ हजार साल से जो दुर्गुण आ रहे थे, उन्हें दूर करना जरूरी है। उन्हें महसूस हुआ कि संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित किए बिना भारत इस पुरानी बीमारी से मुक्त नहीं होगा। इसलिए उन्होंने एक दशक तक विचार और प्रयोगों के बाद संघ की स्थापना की।
हिंदू शब्द सबको एक करने वाला
'भागवत ने कहा, भारत में हमारी पहचान हिंदू है। हिंदू शब्द सबको एक करने वाला है। हमारा राष्ट्र संस्कृति के आधार पर एक है, न कि राज्य के आधार पर। पुराने समय में जब राज्य अनेक थे तब भी हम एक देश थे, पराधीन थे तब भी एक देश थे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।