सदन में वंदे मातरम् पर होगी विशेष चर्चा, प्रधानमंत्री भी रखेंगे पक्ष; दस घंटे का समय तय
संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा होगी। लोकसभा में इसके लिए दस घंटे तय किए गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ...और पढ़ें
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सदन में वंदे मातरम् पर होगी विशेष चर्चा , प्रधानमंत्री भी रखेंगे पक्ष; दस घंटे का समय तय (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एसआईआर विवाद पर चर्चा की विपक्ष की मांग पर गरमाई सियासत के बीच राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में इस सप्ताह विशेष चर्चा होने जा रही है। लोकसभा में गुरुवार या शुक्रवार को इसके लिए पूरे दस घंटे तय किए गए हैं।
इसे राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरक धरोहर को स्मरण करने का अवसर बताया जा रहा है। उम्मीद है कि दस घंटे तक चलने वाली इस विशेष बहस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक यात्रा और उसके सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करेंगे।
सरकार ने क्या कहा?
सरकार ने लोकसभा की कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में एसआइआर पर चर्चा की विपक्ष की मांग पर तो अभी हामी नहीं भरी मगर वंदे मातरम् पर चर्चा को प्राथमिकता देते हुए चर्चा का प्रस्ताव दे दिया। सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्मृति के लिहाज से मील का महत्वपूर्ण पत्थर बताया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने एसआइआर और चुनावी सुधारों पर व्यापक बहस की मांग दोहराई है।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार वंदे मातरम् की आड़ में मतदाता सूची से जुड़े सवालों से ध्यान बंटाना चाहती है। हालांकि, तृणमूल ने इस विशेष चर्चा का समर्थन करते हुए कहा है कि राष्ट्रगीत पर बहस संसद के लिए गौरव का विषय होना चाहिए।
वंदे मातरम् पर यह संसदीय विमर्श ऐसे समय में हो रहा है जब इसकी 150वीं वर्षगांठ पर केंद्र सरकार देशभर में कार्यक्रमों की श्रृंखला चला रही है। इसी माह दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय के आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी ने समारोहों की औपचारिक शुरुआत की थी। इस दौरान उन्होंने 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा मूल गीत के कुछ पद हटाए जाने की आलोचना भी की थी।
उनके इस बयान पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने तीखा जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं और उन्होंने कांग्रेस व रवींद्रनाथ टैगोर दोनों का अपमान किया है।राष्ट्रगीत की पृष्ठभूमि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से गहराई से जुड़ी है। बंकिम चंद्र चटर्जी ने इसे 1870 के दशक में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला में रचा था।
कब हुआ इसका प्रकाशन
7 नवंबर 1875 को 'बंगदर्शन' पत्रिका में इसका प्रकाशन हुआ और बाद में इसे उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया। 1950 में संविधान लागू होने पर इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रगीत का दर्जा मिला। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत विदेशी शासन के विरुद्ध प्रतिरोध और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन चुका था।
केंद्र सरकार ने वर्षगांठ के अवसर पर स्मारक सिक्का और विशेष डाक टिकट भी जारी किया है। संसद में प्रस्तावित यह विमर्श न सिर्फ इतिहास के अध्याय को नए सिरे से समझने का अवसर देगी, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी तीखी वैचारिक टकराहट को एक बार फिर सामने ला सकती है।

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