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    पूंजीगत खर्च के लिए पैसों का संकट, सब्सिडी पर खर्च हो रहा सारा राजस्व; राज्यों के लिए क्या सबक?

    By Gourav VallabhEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Mon, 10 Nov 2025 04:52 PM (IST)

    वित्त वर्ष 2023-24 में राज्यों ने राजस्व का बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन और सब्सिडी पर खर्च किया। कई राज्यों में प्रतिबद्ध खर्च राजस्व से अधिक है, जिससे विकास कार्यों के लिए धन की कमी हो रही है। पूंजीगत खर्च को बढ़ावा देने, बिजली वितरण में सुधार करने और लक्षित सब्सिडी प्रदान करने से राज्यों को वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद मिल सकती है। पुरानी पेंशन योजना की जगह एकीकृत पेंशन योजना लागू करना भी आवश्यक है।

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    राजस्व प्राप्तियों का लगभग 62 प्रतिशत पहले प्रतिबद्ध खर्च के लिए फिक्स हो जाता है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    गौरव वल्लभ। वित्त वर्ष 2023- 24 में राज्यों ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का लगभग 53 प्रतिशत वेतन और पेंशन पर खर्च किया और करीब 9 प्रतिशत सब्सिडी पर खर्च किया। यह देश के सभी राज्यों का औसत खर्च है। इस तरह से राज्यों की राजस्व प्राप्तियों का लगभग 62 प्रतिशत पहले प्रतिबद्ध खर्च के लिए फिक्स हो जाता है।

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    बिना एक भी स्कूल कालेज और सड़कें बने हुए। वहीं, कई राज्य जैसे पंजाब है, वहां राजस्व प्राप्तियों का 107 प्रतिशत प्रतिबद्ध खर्च में चला जाता है। इसका मतलब है कि पंजाब का वेतन, पेंशन ब्याज और सब्सिडी पर खर्च कुल राजस्व प्राप्तियों से भी अधिक हो गया और इसके लिए भी राज्य को कर्ज लेना पड़ता है।

    इसी तरह से हिमाचल प्रदेश वेतन, पेंशन ब्याज और सब्सिडी में राजस्व प्राप्तियों का करीब 85 प्रतिशत खर्च कर रहा है। तमिलनाडु इन मदों पर 77 प्रतिशत और केरल 75 प्रतिशत खर्च कर रहा है। इस तरह से कई राज्यों के पास बुनियादी सुविधाएं देने के लिए कोई पैसा ही नहीं बचता है। एक तरह से पैसा आता और वेतन, पेंशन ब्याज और सब्सिडी पर उनका पैसा चला जाता है।

    यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर राज्य पूंजीगत खर्च के मद में जैसे सड़कें बनाने पर एक रुपये खर्च करता है तो उसे इसका इकोनमिक आउटपुट 2.5 से 3 रुपया मिलता है। लेकिन पूंजीगत मद में खर्च करने के लिए राज्यों के पास पैसा ही नहीं है और जिन मदों में हम अभी खर्च कर रहे हैं वहां एक रुपया खर्च करने पर इकोनमिक आउटपुट एक रुपया ही मिलता है। इसका मतलब है कि इन मदों में खर्च से कोई पूंजी निर्माण नहीं हो रहा है।

    पूंजीगत खर्च से इकोनमिक आउटपुट में वैल्यू एडीशन होता है और इसके लिए राज्यों के पास पैसा ही नहीं बचता है। इसका प्रमुख कारण है वेतन और पेंशन। राज्यों का वेतन और पेंशन पर औसत खर्च राजस्व प्राप्तियों का करीब 35-40 प्रतिशत है। सब्सिडी पर खर्च लगभग नौ प्रतिशत है। इससे निजात पाने के लिए दो तीन सुझाव हैं। पहला है बिजली पर खर्च। कई राज्यों में बिजली वितरण में नुकसान 25 से 30 प्रतिशत है।

    इस नुकसान की भरपाई राजस्व से ही होता है। अगर राज्य इस नुकसान को खत्म करने पर काम करें तो राजस्व प्राप्तियों का 5-10 प्रतिशत इसी से बच सकता है। दूसरा, सबको सब्सिडी देने का मसला है। जैसे राज्य कह देते हैं सभी नागरिकों को 100 यूनिट बिजली मुफ्त। यह सब्सिडी सभी नागरिकों के बजाए सिर्फ उन्हीं लोगों या समूहों को मिलनी चाहिए जिनको इसकी वास्तव में जरूरत है या जो लोग आर्थिक तौर पर इसे वहन करने में सक्षम नहीं हैं।

    तीसरा मसला है पेंशन का। राज्यों को चुनाव से प्रभावित होकर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के बजाय यूनीफाइड पेंशन स्कीम को लागू करना चाहिए। ओल्ड पेंशन स्कीम आर्थिक तौर पर वहनीय नहीं है। जिन राज्यों ने अपना पूंजीगत खर्च जीडीपी के तीन प्रतिशत के आसपास रखा, जैसे उत्तर प्रदेश, गुजराज और तेलंगाना, उनको इसका फायदा इस रूप में मिला कि जब पूंजीगत खर्च बढ़ता है तो निजी निवेश भी आता है। इससे जीएसटी संग्रह भी बढ़ता है। जब पूंजीगत खर्च कम होता है तो निजी निवेश भी घट जाता है। इसके अलावा राज्यों को प्रोजेक्ट लागू करने की क्षमता में भी सुधार करने की जरूरत है।

    (लेखक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पीटी सदस्य हैं)