'कर्मचारियों से परामर्श न लेने मात्र से...', बायोमेट्रिक अटेंडेंस पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों से परामर्श न करने पर बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली अवैध नहीं होती। कोर्ट ने ओडिशा सरकार के फैसले को सही ठहराया, जिसमें कर्मचारियों से परामर्श किए बिना बायोमीट्रिक प्रणाली लागू की गई थी। कोर्ट ने कहा कि यह प्रणाली सभी हितधारकों के लाभ के लिए है और उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया। अब कर्मचारी भी इस प्रणाली के विरोध में नहीं हैं।

बायोमीट्रिक प्रणाली कर्मचारियों के लाभ के लिए
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली सिर्फ इसलिए अवैध नहीं हो जाती क्योंकि सरकारी कार्यालय के कर्मचारियों से परामर्श नहीं किया गया था। न्यायालय ने कहा कि यह प्रणाली सभी हितधारकों के लाभ के लिए है।
इसने ओडिशा के प्रधान महालेखाकार कार्यालय में इस प्रणाली को लागू करने के सरकार के फैसले को सही ठहराया और कर्मचारियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि परामर्श न लेना इसे अवैध बनाता है। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने केंद्र द्वारा 2015 में दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उड़ीसा उच्च न्यायालय के 21 अगस्त, 2014 के फैसले को चुनौती दी गई थी।
बायोमीट्रिक प्रणाली कर्मचारियों के लाभ के लिए
इस फैसले में कहा गया था कि बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली (बीएएस) शुरू करने वाले परिपत्र कर्मचारियों से पूर्व परामर्श किए बिना जारी किए गए थे और केंद्र सरकार के कार्यालयों के लिए इसकी स्थापना एवं प्रबंधन संबंधी संपूर्ण नियमावली के अनुरूप नहीं थे। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ओडिशा के प्रधान महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी) कार्यालय में एक जुलाई, 2013 से विभिन्न परिपत्रों के माध्यम से एक बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली (बीएएस) लागू की गई थी।
न्यायालय ने अपने 29 अक्टूबर के आदेश में कहा, ''मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर जब बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करना सभी हितधारकों के लाभ के लिए है, तो केवल इस आधार पर कि इसे लागू करने से पहले कर्मचारियों से परामर्श नहीं किया गया, इस प्रणाली को लागू करना अवैध नहीं हो जाता।''
परामर्श न लेना प्रणाली को अवैध नहीं करता
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद कर दिया और प्रधान महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी) कार्यालय को अपने विभिन्न परिपत्रों में उल्लिखित बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने की अनुमति दे दी।
इसने नोट किया कि इन परिपत्रों को शुरू में कर्मचारियों द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के समक्ष एक मूल आवेदन दायर करके चुनौती दी गई थी, लेकिन उस चुनौती को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि याचिका विचारणीय नहीं है क्योंकि यह सेवा शर्तों से संबंधित नहीं है।न्यायाधिकरण के आदेश से असंतुष्ट कर्मचारियों ने फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
जब 29 अक्टूबर को दस साल के अंतराल के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की याचिका पर सुनवाई की, तो केंद्र की ओर से उपस्थित वकील ने दलील दी कि केंद्र सरकार के कार्यालयों के लिए स्थापना और प्रशासन संबंधी नियमावली में कहीं भी ऐसे नियम नहीं हैं जिन्हें प्रधान महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी) के कार्यालय द्वारा तैयार और पालन किया गया हो और इसलिए इस प्रणाली की शुरूआत को विभाग के किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
उच्च न्यायालय का आदेश रद्द
वकील ने आगे कहा कि कर्मचारी अब बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने के विरोध में नहीं हैं क्योंकि यह कर्मचारियों और विभाग दोनों के समग्र हित में है। कर्मचारियों की ओर से पेश हुए वकील इस बात से सहमत थे कि अब कर्मचारी कार्यालय में बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने के विरोध में नहीं हैं।
पीठ ने कहा, ''जब कर्मचारियों को बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने पर कोई आपत्ति नहीं है, तो हमारा मानना है कि इस संबंध में कोई विवाद नहीं रह गया है और विभाग इस प्रणाली को लागू करने के लिए आगे बढ़ सकता है।'' पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा की गई यह कवायद पूरी तरह से अनावश्यक प्रतीत होती है।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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