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    मतांतरण कानूनों के विरुद्ध दायर याचिकाओं पर तुरंत सुनवाई से SC का इनकार, क्या है वजह? 

    Updated: Tue, 11 Nov 2025 09:11 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई दिसंबर में करने की बात कही। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों ने धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए हैं। अदालत ने पहले राज्यों से इन कानूनों पर जवाब मांगा था और अब उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है।

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    सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों द्वारा लागू मतांतरण विरोधी कानून पर रोक से संबंधित याचिकाओं की तत्काल सुनवाई से इनकार किया। याचिकाओं में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की पीठ ने याचिकाओं पर दिसंबर में सुनवाई की बात कही है। एक याचिकाकर्ता के वकील ने संबंधित कानूनों पर अगले सप्ताह तक रोक लगाने की गुहार की। 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है। मुझे तमाम फैसले लिखने हैं।

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    कई राज्यों में बने हैं मतांतरण से संबंधित कानून

    गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक ने अंतरधार्मिक विवाहों के कारण होने वाले मतांतरण को नियंत्रित करने के लिए ये कानून बनाया है। उत्तर प्रदेश का कानून न केवल अंतरधार्मिक विवाहों से संबंधित है, बल्कि सभी प्रकार के मतांतरणों से जुड़ा है।

    पीठ ने कई राज्यों से मांगा था जवाब

    वहीं, उत्तराखंड में मतांतरण कराने पर दो साल की सजा का नियम है। 16 सितंबर को पीठ ने तमाम राज्यों से संबंधित मतांतरण रोधी कानूनों पर रोक लगाने को लेकर जवाब मांगा था। नोटिस जारी करने के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट किया था कि राज्यों की तरफ से जवाब दाखिल किए जाने के बाद ही तय होगा कि ऐसे कानूनों को लागू करने से रोका जाए या नहीं।

    एससी ने दी चार हफ्ते का समय

    शीर्ष अदालत ने राज्यों को चार हफ्ते का समय भी दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता दो हफ्ते के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल कर सकते हैं। केंद्र ने पूर्व में इन कानूनों को चुनौती देने में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सिटिजंस फार जस्टिस एंड पीस के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए थे। एनजीओ ने याचिका में कहा है कि इस कानून से संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं।   

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