Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    'पड़ोसी देश में देखिए क्या हो रहा है', सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया नेपाल और बांग्लादेश का जिक्र?

    Updated: Wed, 10 Sep 2025 06:12 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के दौरान नेपाल और बांग्लादेश में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों का उल्लेख किया गया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने 12 अप्रैल के उस आदेश पर सुनवाई के दौरान ये बात कही जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय करने की बात थी।

    Hero Image
    सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया नेपाल और बांग्लादेश का जिक्र? (पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नेपाल और बांग्लादेश में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों का जिक्र आज राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में हुआ। कोर्ट में ये जिक्र उस सुनवाई के दौरान हुआ जो 12 अप्रैल के उस आदेश पर था जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपालों के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय की गई थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भारतीय संविधान का जिक्र करते हुए, जिसमें राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी मुद्दे पर, जो सार्वजनिक महत्व का हो या किसी भी तरह से जनता को प्रभावित करता हो, सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने का अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा, "हमें अपने संविधान पर गर्व है।"

    CJI ने किया नेपाल हिंसा का जिक्र

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देखिए हमारे पड़ोसी राज्यों में क्या हो रहा है। नेपाल, हमने देखा। उन्होंने हिमालयी राज्य में 48 घंटे पहले शुरू हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का जिक्र किया, जिसमें अब तक 21 लोग मारे जा चुके हैं और केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

    जस्टिस विक्रम नाथ ने दिलाई बांग्लादेश हिंसा की याद

    "हां, बांग्लादेश में भी..." जस्टिस विक्रम नाथ ने बीच में बोलते हुए पिछले साल उस देश में हुई चौंकाने वाली हिंसा की यादें ताजा कर दीं, जब छात्रों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के आधिकारिक आवास सहित प्रमुख सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया और तोड़फोड़ की।

    विरोध प्रदर्शनों में 100 से ज्यादा लोग मारे गए, जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देकर भागना पड़ा, और देश का नियंत्रण नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाले अभी भी सत्ता में मौजूद 'अंतरिम' प्रशासन को सौंप दिया गया।

    इस हफ्ते नेपाल और पिछले साल बांग्लादेश में हुई घटनाओं के बीच समानताएं नजरअंदाज करना मुश्किल है, जिसमें संविधान और कानून के शासन के पूरी तरह से ध्वस्त होने का बड़ा मुद्दा भी शामिल है।

    सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों का एक महीने से ज्यादा समय तक विधेयकों को सुरक्षित रखने के मामले में बचाव के बाद आई है।

    जब पीठ इस बहस पर विचार कर रही थी, तब न्यायमूर्ति नाथ ने टिप्पणी की कि देश पिछले 75 सालों से चल रहा है, चाहे कितने भी विधेयक पारित हुए हों या रोके गए हों। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि उनके पास ऐसे आंकड़े हैं जो ऐसी स्थिति की दुर्लभता को दर्शाते हैं।

    हम आंकड़े नहीं ले सकते- मुख्य न्यायाधीश

    हालांकि, मुख्य न्यायाधीश गवई इससे प्रभावित नहीं हुए। उन्होंने पूछा, "हम आंकड़े नहीं ले सकते... यह उनके (राष्ट्रपति के संदर्भ के खिलाफ बहस करने वाले राज्य) के साथ न्याय नहीं होगा। हमने उनके आंकड़े नहीं लिए। हम आपके आंकड़े कैसे ले सकते हैं?" उन्होंने कहा, "हम इसमें नहीं जाएंगे... पहले आपने उनके आंकड़ों पर आपत्ति जताई थी।"

    90 प्रतिशत विधेयकों को एक महीने में ही मंजूरी- सॉलिसिटर जनरल

    बिना किसी हिचकिचाहट के सॉलिसिटर जनरल ने घोषणा की कि किसी भी राज्य सरकार द्वारा पारित सभी विधेयकों में से 90 प्रतिशत को राज्यपाल एक महीने के भीतर मंजूरी दे देते हैं। मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि 1970 से 2025 तक केवल 20 विधेयक जिनमें तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित सात विधेयक भी शामिल हैं, जिन्हें राज्यपाल आरएन रवि ने विलंबित कर दिया था, जिसके कारण डीएमके ने कड़ा विरोध किया।

    गैर-भाजपा शासित राज्यों ने लगाए आरोप

    पहले भी, गैर-भाजपा शासित राज्यों तमिलनाडु, केरल और पंजाब ने अपने-अपने राज्यपालों पर राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर जानबूझकर सहमति न देने या राष्ट्रपति के पास भेजकर स्वीकृति में देरी करने का आरोप लगाया है।

    यह भी पढ़ें- Nepal Protest News: नेपाल मेंं गदर काट रहे युवाओं के लिए Bihar Police ने की ऐसी तैयारी, जोगबनी बार्डर तक पहुंची आगजनी की आंच