'16 साल की मुस्लिम लड़की...', NCPCR की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की याचिका खारिज कर दी जिसमें 2022 के पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि 16 साल की मुस्लिम लड़की मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकती है भले ही वह पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत आती हो।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में 2022 के पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि एक 16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि यौवन पाने वाली या 15 साल से ज्यादा उम्र की लड़की यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण या पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपनी पसंद के शख्स से शादी करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि एनसीपीसीआर इस मुकदमे से अनजान है और उसे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने जावेद और आशियाना के साथ-साथ बच्चों को उन लोगों से सुरक्षा भी दी थी जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकते थे या फिर धमकी दे सकते थे।
खंडपीठ ने पूछा कि एनसीपीसीआर को धमकियों का सामना कर रहे जावेद और आशियाना के जीवन और स्वतंत्रता को सुरक्षा देने वाले हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती क्यों देनी चाहिए?
सॉलिसिटर जनरल ने क्या कहा?
बाल अधिकार संस्था की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी ने कहा कि अदालत संरक्षण प्रदान करना जारी रख सकती है, लेकिन कानून के मुद्दे को खुला रखा जाना चाहिए, अर्थात क्या 15 साल की लड़की के पास पर्सनल लॉ के आधार पर विवाह को कानूनी माना जा सकता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत नहीं था। अदालत ने कहा कि बच्चों को जीवन की सुरक्षा प्रदान करने वाले आदेश पर विचार करते समय 'कानून के प्रश्न' पर कोई चर्चा नहीं हो सकती। अदालत ने एनसीपीसीआर से कहा, "अगर आप इस प्रश्न पर बहस करना चाहते हैं... तो उचित मामले में संपर्क करें।"
उन्होंने बाल अधिकार संस्था से पूछा, "यहां कानून का कोई सवाल ही नहीं उठता... अगर हाईकोर्ट ने (संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत) आदेश जारी करने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए आदेश पारित किया है, तो आप इसे कैसे चुनौती दे रहे हैं? लड़की अपने पति के साथ रह रही है! और उसका एक बच्चा भी है। आपको क्या समस्या है?"
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