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    'बिल में 3 साल तक क्या ढूंढ रहे थे?' तमिलनाडु के राज्यपाल पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी; जानिए पूरा मामला

    Updated: Thu, 06 Feb 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु सरकार की राज्यपाल पर विधेयकों को रोके रखने का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने तीन वर्ष तक विधेयकों को रोके रखने पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा राज्यपाल ने कहा कि वह मंजूरी रोक रहे हैं लेकिन विधानसभा से बिलों पर पुनर्विचार के लिए नहीं कहेंगे।

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    जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ कर रही थी सुनवाई (फोटो: एएनआई)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधेयकों की मंजूरी लटकाए रखने पर सवाल उठाते हुए कहा कि लगता है तमिलनाडु के राज्यपाल ने अपनी ही प्रक्रिया अपना ली है।

    कोर्ट ने कहा कि विधेयकों को रोके रखना और विधानमंडल को नहीं भेजना अनुच्छेद-200 के प्रविधानों को विफल करने जैसा है। मामले में कोर्ट शुक्रवार को फिर सुनवाई करेगा।

    दो जजों की पीठ कर रही सुनवाई

    ये टिप्पणियां और सवाल गुरुवार को जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु सरकार की राज्यपाल पर विधेयकों को रोके रखने का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

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    कोर्ट ने इस मामले में विचार के लिए कई कानूनी सवाल भी तय किए हैं। पीठ ने राज्यपाल की ओर पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि आप हमें तथ्यात्मक रूप से यह दिखाएं कि राज्यपाल ने मंजूरी क्यों रोकी। इसके लिए या तो कुछ मूल फाइलें या कुछ अन्य दस्तावेज दिखाएं जिससे पता चले कि क्या चर्चा की गई। क्या खामियां थीं। आपको बताना होगा कि विधेयकों में ऐसा क्या गलत था।

    विधेयकों को रोकने पर की टिप्पणी

    • कोर्ट ने तीन वर्ष तक विधेयकों को रोके रखने पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा, राज्यपाल ने कहा कि वह मंजूरी रोक रहे हैं, लेकिन विधानसभा से बिलों पर पुनर्विचार के लिए नहीं कहेंगे। इसका क्या मतलब निकला कि हम मंजूरी रोक रहे हैं, लेकिन विधानमंडल को बिल वापस नहीं भेजेंगे क्या इससे संविधान के अनुच्छेद-200 के प्रविधान निरर्थक नहीं होते?
    • कोर्ट ने कहा कि वह यहां उस तरह से विचार नहीं कर रहा है, जैसे राज्य सरकार ने आरोप लगाए हैं। और न ही राज्यपाल की शक्तियों को तय कर रहा है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह यहां विधानसभा द्वारा पारित 12 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा रोकने और उनमें से दो विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजे जाने की जांच कर रहा है।

    अटॉर्नी जनरल ने रखा पक्ष

    अटॉर्नी जनरल ने तमिलनाडु सरकार की ओर से दी जा रही दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि राज्य सरकार की दलीलें यह साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि राज्यपाल बहुत ही तुच्छ और महत्वहीन हैं।

    इस पर पीठ ने कहा कि उन विधेयकों में ऐसी क्या चीज थी, जिसे ढूंढने में राज्यपाल को तीन वर्ष लग गए। पीठ ने कहा कि वह राज्यपाल की शक्तियों तय नहीं कर रही, वह यहां राज्यपाल की कार्रवाई की जांच कर रही है।

    विचार के लिए आठ सवाल किए तय

    • कोर्ट ने इस मामले में राज्यपाल के बिल रोककर रखने के कानूनी पहलू पर विचार के लिए आठ कानूनी सवाल तय किए हैं, उनमें पॉकेट वीटो (मनमर्जी) की अवधारणा और राज्यपाल की अथॉरिटी तथा बिलों की मंजूरी के मामले में उनका विशेषाधिकार शामिल हैं।
    • ये सवाल हैं- जब राज्य विधानसभा विधेयक पारित करके मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजती है और राज्यपाल मंजूरी रोक लेते हैं। लेकिन विधेयक दोबारा पारित करके राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो क्या उन्हें विधेयक दोबारा रोकने का अधिकार है?
    • क्या राज्यपाल को विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार कुछ खास मामलों तक सीमित है या कुछ निर्धारित विषयों से परे है? ऐसी क्या चीजें हैं जो राज्यपाल को विधेयक पर मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति को भेजने के लिए प्रभावित करती हैं? पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है और क्या भारत के संवैधानिक ढांचे में इसका कोई स्थान है।

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