तेलंगाना में पिछड़े वर्गों के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप से इनकार, सरकारी आदेश को दी थी चुनौती
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना सरकार के स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों को 42 प्रतिशत आरक्षण देने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करने में अनिच्छा व्यक्त की।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों को 42 प्रतिशत आरक्षण देने के तेलंगाना सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करने में अनिच्छा दिखाई। इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने हाई कोर्ट जाने की इजाजत मांगते हुए याचिका वापस ले ली।
पिछड़े वर्गों को दिया गया था 42 प्रतिशत आरक्षण
याचिकाकर्ता ने 26 सितंबर, 2025 को जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पिछड़े वर्गों को 42 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। याचिका में कहा गया था कि इससे स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण बढ़कर 67 प्रतिशत हो गया है। यह न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन है।
सीधे शीर्ष अदालत का रुख क्यों?
शुरुआत में पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि उन्होंने अनुच्छेद 32 के तहत सीधे शीर्ष अदालत का रुख क्यों किया, जो मौलिक अधिकार के उल्लंघन की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है। इस पर वकील ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने तेलंगाना हाई कोर्ट का रुख किया था, जिसने सुनवाई आठ अक्टूबर के लिए निर्धारित की थी।
कोर्ट का सरकारी आदेश पर रोक लगाने से इनकार
हाई कोर्ट ने सरकारी आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इस पर पीठ ने पूछा कि अगर हाई कोर्ट स्थगन आदेश नहीं देगा, तो आप अनुच्छेद 32 के तहत यहां आएंगे? याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए और हाई कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी जाए।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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