पीड़ित और समाज-केंद्रित दिशानिर्देश तय करने की केंद्र की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें जघन्य अपराधों में मौत की सजा पाए मामलों में पीड़ितों और समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए नए दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई मेरिट नहीं है। केंद्र सरकार ने पहले तर्क दिया था कि वर्तमान दिशानिर्देश केवल अभियुक्त-केंद्रित हैं, पीड़ितों पर नहीं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने जघन्य अपराधों में मौत की सजा पाए मामलों में पीडि़तों और समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए नए दिशानिर्देश बनाने की मांग की थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, 'हमें इस विविध आवेदन में कोई मेरिट नहीं दिखता।'केंद्र सरकार ने जनवरी, 2020 में शीर्ष अदालत में यह आवेदन दायर किया था और तर्क दिया था कि वर्तमान में मौत की सजा से जुड़े दिशानिर्देश केवल अभियुक्त और दोषी-केंद्रित हैं। उसने कहा था कि न्यायालय को ऐसे मामलों में, जो 'न्यायालय के सामूहिक विवेक को झकझोर देते हैं', पीडि़तों और समाज के हितों को भी ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश तय करने चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 31 जनवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने आवेदन की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी और विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रियाएं मांगी थी, जिनकी याचिका पर शीर्ष न्यायालय ने 2014 में मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों की फांसी से संबंधित दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। '
ये दिशानिर्देश 2014 में शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ मामले में निर्धारित किए गए थे। शीर्ष न्यायालय ने जनवरी, 2020 में स्पष्ट कर दिया था कि केंद्र की याचिका पर विचार करते समय शत्रुघ्न चौहान के मामले से जुड़े दोषसिद्धि और सजा के मुद्दे में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा था कि 2014 का मामला अंतिम निर्णय ले चुका है क्योंकि पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिकाएं दोनों पहले ही खारिज हो चुकी हैं।
केंद्र ने तर्क दिया था, 'मृत्युदंड की सजा पाए दोषी के लिए उपलब्ध कानूनी और संवैधानिक उपायों का लाभ उठाने की कोई समय सीमा नहीं है। अदालत को अब पीडि़त और समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसे दिशानिर्देश निर्धारित करने चाहिए जो अभियुक्तों के लिए पहले से निर्धारित दिशानिर्देशों को आगे बढ़ाएं।'
केंद्र ने यह कहते हुए आवेदन दायर किया था कि जघन्य अपराध के दोषी 'न्यायिक प्रक्रिया को धोखा' दे रहे हैं। 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म-हत्या मामले में चार दोषियों की फांसी में हुई देरी के बीच केंद्र ने शीर्ष अदालत से ब्लैक वारंट जारी होने के बाद दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समय सीमा तय करने का आग्रह किया था। कई महीनों तक पुनर्विचार, क्यूरेटिव और दया याचिकाएं दायर होने के कारण उस मामले में फांसी में देरी हुई थी।
शत्रुघ्न चौहान मामले में 2014 में जारी निर्देशों में संशोधन की मांग करते हुए केंद्र ने कहा था, 'सभी दिशानिर्देश अभियुक्त-केंद्रित हैं। ये दिशानिर्देश पीडि़तों और उनके परिवार के सदस्यों के अपूरणीय मानसिक आघात, पीड़ा, राष्ट्र के सामूहिक विवेक और मृत्युदंड के हतोत्साहित करने वाले प्रभाव को ध्यान में नहीं रखते हैं।'
(न्यूज एजेंसी पटीआआई के इनपुट के साथ)
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