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    पर्यावरणीय मंजूरी से जुड़े अपने आदेश पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शुरू की सुनवाई, रद किया था केंद्र का फैसला

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 02:00 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय मंजूरी से जुड़े अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर 40 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। कोर्ट ने पहले पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करनेवाली परियोजनाओं को पूर्वप्रभावी मंजूरी देने के केंद्र के फैसले को रद कर दिया था। क्रेडाई ने फैसले की समीक्षा की मांग की है। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलीलें पेश की।

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    रद किया था केंद्र का फैसला (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 16 मई को पर्यावरणीय मंजूरी से जुड़े अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर 40 याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार के उस फैसले को रद कर दिया था, जिसमें पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करनेवाली परियोजनाओं को पूर्वप्रभावी मंजूरी दी गई थी।

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    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां और के विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष कंफेडरेशन आफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलीलें पेश कीं।

    SC में 40 याचिकाएं दायर

    सुप्रीम कोर्ट की ये विशेष पीठ क्रेडाई और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी सेल की ओर से दायर 40 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिका में शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा या स्पष्टीकरण या सुधार की मांग की गई है। 16 मई को तत्कालीन न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति भुइयां ने पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और संबंधित प्राधिकारियों को पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करनेवाली परियोजनाओं को पूर्वप्रभावी मंजूरी देने पर रोक लगा दी थी।

    तत्कालीन न्यायमूर्ति ओका ने कहा था कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का हक मौलिक अधिकार का हिस्सा है।फैसले की आलोचना करते हुए रोहतगी ने कहा, ''यह फैसला बताता है कि ध्वस्तीकरण ही एकमात्र रास्ता है।'' उन्होंने उदाहरण देते हुए साबित करने का प्रयास किया कि केंद्र को पूर्वप्रभावी ईसी देने का अधिकार है और विवादित फैसले में इस पहलू को नजरअंदाज किया गया है।

    पीठ ने किया सवाल

    उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से जुर्माना अदा करने के बाद ईसी की पूर्वप्रभावी अनुमति का प्रविधान बनाया ही इसलिए गया है ताकि अन्य मंजूरियां होने की दशा में परियोजना को बचाया जा सके। इस पर पीठ ने सवाल किया कि क्या सरकार हत्या के मामलों में क्षमा देने का प्रविधान बना सकती है।

    रोहतगी ने जवाब दिया कि हत्या के दोषी को 14 साल बाद छोड़ दिया जाता है क्योंकि कानून सुधार की बात करता है न कि प्रतिशोधात्मक कदम उठाने का। रोहतगी ने कहा कि कई बार परियोजना प्रस्तावक को यह पता नहीं होता कि उसे पहले ईसी लेना होगा, ऐसी दशा में परियोजना को बचाना होगा। इस पर पीठ ने कहा कि कानून की जानकारी न होना कोई बहाना नहीं हो सकता है। मामले की सुनवाई गुरुवार को होगी।

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