'ये तो उल्टी बात हो गई', सिब्बल ने धनखड़ के बयान पर किया तंज; सुप्रीम कोर्ट को ‘सुपर संसद’ कहने पर छिड़ी बहस
तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने नई बहस छेड़ दी। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कोर्ट को ‘सुपर संसद’ करार दिया जिसका कपिल सिब्बल ने विरोध किया। सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधेयकों को लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने सियासी हलकों में नई बहस छेड़ दी है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस फैसले पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट को ‘सुपर संसद’ करार दिया, जिसके जवाब में राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उन पर तंज कसा है।
सिब्बल ने कहा कि उपराष्ट्रपति को यह समझना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होता है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने क्या था?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ा एतराज जताया। उन्होंने कहा कि कुछ जज ‘कानून बना रहे हैं’ और ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे हैं।
जगदीप धनखड़ ने खास तौर पर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र किया, जिसमें राष्ट्रपति को निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा, “हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इस मसले पर बेहद संजीदा होना होगा।”
धनखड़ ने आगे कहा कि संविधान सुप्रीम कोर्ट को कानून की व्याख्या करने का हक देता है, लेकिन इसके लिए पांच जजों की पीठ की जरूरत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सिर्फ समीक्षा याचिका दाखिल करने या न करने का नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के लिए यह एक नाजुक वक्त है।
कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान को लेकर क्या कहा?
कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि धनखड़ को यह मालूम होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह-मशविरा के मुताबिक काम करते हैं।
“यह धनखड़ जी (उपराष्ट्रपति) को पता होना चाहिए, वह पूछते हैं कि राष्ट्रपति की शक्तियों को कैसे कम किया जा सकता है, लेकिन शक्तियों को कौन कम कर रहा है? मैं कहता हूं कि एक मंत्री को राज्यपाल के पास जाना चाहिए और दो साल तक वहां रहना चाहिए, ताकि वे सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकें, क्या राज्यपाल उन्हें अनदेखा कर पाएंगे?" कपिल सिब्बल, राज्य सभा सांसद और वरिष्ठ वकील
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, "यह असल में विधायिका की सर्वोच्चता में दखलंदाजी है, ये तो उल्टी बात है । अगर संसद कोई विधेयक पारित कर देती है, तो क्या राष्ट्रपति इसे लागू करने को अनिश्चित काल के लिए टाल सकते हैं? अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं भी किए गए, तो क्या किसी को इसके बारे में बात करने का अधिकार नहीं है?"
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा मामला तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधेयकों को कथित मंजूरी न देने के इर्द-गिर्द घूम रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए साफ किया कि राज्यपाल को विधानमंडल के फैसलों को अनदेखा करने का हक नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति को लेकर निर्देश दिया कि वह किसी भी बिल को लंबे वक्त तक रोक कर नहीं रख सकते हैं।
(एएनआई के इनपुट के साथ)
यह भी पढ़ें: 'आपने तो अपना ही नया कानून बना लिया...' मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से क्यों नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट?
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।