विचाराधीन कैदियों को मताधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों के मताधिकार पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है, जो कुछ कैदियों को वोट देने से वंचित करती है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह धारा असंवैधानिक है और कैदियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। अदालत ने इस मामले में सरकार और चुनाव आयोग से अपना पक्ष रखने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की जेलों में बंद लगभग 4.5 लाख विचाराधीन कैदियों के मताधिकार को फिर मान्यता देने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की इस दलील पर गौर किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत लगाया गया वर्तमान पूर्ण प्रतिबंध संवैधानिक गारंटी और अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन करता है।
पटियाला की सुनीता शर्मा ने दायर की याचिका
पंजाब के पटियाला की रहने वाली सुनीता शर्मा की ओर से दायर याचिका में केंद्रीय मंत्रालय के जरिए केंद्र और चुनाव आयोग को वादी बनाया गया है।
याचिका में क्या मांग की गई?
इस याचिका में यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक दखल की मांग की गई है कि जिन कैदियों को चुनावी अपराधों या भ्रष्टाचार का दोषी नहीं ठहराया गया है, उन्हें मनमाने ढंग से उनके लोकतांत्रिक मताधिकार से वंचित न किया जाए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।