'संवेदनशील होना चाहिए', पॉक्सो एक्ट के मामले की सुनवाई करते हुए SC ने क्यों की ऐसी टिप्पणी?
सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के एक मामले में एक व्यक्ति की सजा बरकरार रखते हुए असहाय महिलाओं पर यौन हमले के मामलों में संवेदनशील रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। पीठ ने निचली अदालत और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को उचित ठहराया। अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न पीड़िता की निजता और सम्मान का उल्लंघन करता है जिससे उसे गंभीर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक नुकसान होता है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पॉक्सो अधिनियम के एक मामले में एक व्यक्ति की सजा की पुष्टि करते हुए असहाय महिलाओं पर यौन हमले के मामलों में संवेदनशील बने रहने की आवश्यकता पर बल दिया।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दोषी को दी गई सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखने तथा उसकी पुष्टि करने का छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का निर्णय पूरी तरह से उचित था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसलों का दिया हवाला
पीठ ने कहा, ''असहाय महिला पर यौन उत्पीड़न के आरोपों से निपटते समय कोर्ट को संवेदनशील बने रहना चाहिए।'' सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उसके अपने पिछले फैसलों का हवाला दिया गया और कहा गया कि दुष्कर्मी ''न केवल पीडि़ता की निजता का उल्लंघन और उसके सम्मान पर आघात करता है, बल्कि इस प्रक्रिया में वह गंभीर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक नुकसान भी पहुंचाता है।''
पीठ ने अपने फैसलों का हवाला देते हुए कहा, ''दुष्कर्म सिर्फ शारीरिक उत्पीड़न नहीं है, बल्कि यह पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है।''
'पीड़िता के सबूत पूरी तरह विश्वसनीय'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता का साक्ष्य पूरी तरह से ''स्वाभाविक और विश्वसनीय'' था। पीड़िता ने अभियुक्त द्वारा उसके विरुद्ध किए गए अपराध के बारे में पूरी घटना का स्पष्ट विवरण दिया। पीठ ने कहा, ''उसकी गवाही पर अविश्वास करने और उसे खारिज करने का कोई ठोस कारण मौजूद नहीं है।''
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